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बन्दरों को मारने के हिमाचल सरकार के आदेश का कड़ा विरोध किया ध्यान फाउंडेशन ने

शिमला, 20 अप्रैल (जनसमा)। ध्यान फाउंडेशन ने हिमाचल सरकार के उस आदेश का कड़ा विरोध किया है जिसमें  बन्दरों को वरमिन’ अर्थात् नाशक जीव घोषित कर उन्हें मारने का आदेश दिया है । फाउंडेशन पूरी निष्ठा से इस घोषणा के विरोध में है तथा बंदरों के पुनर्वास के लिए अदालत की शरण ली है।

ध्यान फाउंडेशन के मार्गदर्शक योगी अश्विनी जी ने कहा  “बंदरों की हत्या, भगवान हनुमान के क्रोध को आमंत्रित करेगा। हम ऐसा नहीं कर सकते ।”

उपरोक्त जानकारी देते हुए एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि फाउंडेशन  योगी अश्विनी जी के मार्गदर्शन में देशभर में पशु संरक्षण के कार्य में संलग्न है| वर्ष 2014 में ‘हेल्प ए मंकी’ अभ्यान के तहत  बंदरों को भोजन कराना, उनका बचाव करना, उनकी पीड़ा से अधिकारियों को अवगत कराना तथा उनके हक़ में क़ानूनी कार्यवाही कराना आदि कार्यों का बीड़ा उठाया |

ध्यान फाउंडेशन के स्वयंसेवक मोहित शर्मा ने बताया “हम बंदरों को मकई, काला चना, और (कभी-कभी) केले का आहार देते हैं । साधारणतः 1000 किलो तक का राशन हम गोदाम में जमा रखते हैं”| शर्मा एक उद्योगपति हैं और इस भोजन अभ्यान की देखरेख के लिए लुधियाना से नियमित रूप से शिमला आते रहते हैं ।

फाउंडेशन ने 19 मई 2016 के दिन जाखू मंदिर (शिमला) में बंदरों को प्रतिदिन भोजन देने का अभ्यान शुरू किया। जब से जाखू पर बंदरों को खिलाना शुरू किया, तब से वहां के बंदरों के व्यवहार में भारी बदलाव देखा गया है | जाखू मंदिर के पुजारी का कहना है, “ध्यान फाउंडेशन का भोजन-अभ्यान बड़ी सहजता से चल रहा है। बंदर संतुष्ट और सुखी हैं, और बंदरों द्वारा हमलों की घटनाएँ काफ़ी कम हो गयी हैं ।”

जब सरकार ने बन्दरों को ‘वरमिन’ (अर्थात् नाशक जीव) घोषित कर उन्हें मारने का आदेश दिया तभी से ध्यान फाउंडेशन पूरी निष्ठा से इस घोषणा के विरोध में है तथा बंदरों के पुनर्वास हेतु अदालत की शरण ली है |

ध्यान फाउंडेशन  का मानना है “एक जानवर जो भूखा और बेघर है, वह जीवित रहने के लिए हर संभव प्रयास करेगा| ऐसे में उन्हें ‘वरमिन’ करार देना अनुचित है, विशेषतर तब जब हम इंसान ही उस जानवर की  दुर्गति के लिए जिम्मेवार हैं ! ‘वरमिन’ बन्दर नहीं, बल्कि वह ‘लैंड माफिया’ है जिसने जंगल भूमि को अवैध रूप  हड़प कर बंदरों को बेघर किया है । यदि बंदरों को भोजन मिलेगा, तो वे हमला नहीं करेंगे,” ध्यान फाउंडेशन की स्वयंसेविका, आभा चोपड़ा ने कहा।

सितंबर 2016  में, सरकार के बंदरों को मारने-वालों को पुरस्कृत करने के निर्णय के पश्‍चात, ध्यान फाउंडेशन ने हिमाचल प्रदेश में बंदर को बचाने के लिए 300 रुपये का पुरस्कार घोषित किया ।  “नकारात्मक कर्म को संतुलित करना आवश्यक है, संरक्षण हमारा कर्तव्य है ।

अपने प्राकृतिक घर (जंगलों) से निकाले जाने के कारण बंदर मर रहे है, उनपर कभी गाडी चढ़ाई जाती है तो कभी गोली चलाई जाती है, कभी पत्थर मारे जाते हैं तो कभी इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है…ध्यान फाउंडेशन उन्हें घर और भोजन प्रदान करता
है , जो निम्न प्रकार से हैं :

  • 400 बंदरों को रोज़ाना, वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में
  • 200 बंदरों को रोज़ाना, माँगर गाँव (दिल्ली) में
  • 120 बंदरों को रोज़ाना, जाखू मंदिर (शिमला) मे
  • 50 बंदरों को साप्ताहिक तीन बार, शिव मंदिर (केसरगूट्टा, हैदराबाद) में
  • 40 बंदरों को साप्ताहिक एक बार, अल्पीरी वन (तिरुपति) में
  • 30 बंदरों को साप्ताहिक दो बार, चामुंडी हिल्स (मैसूर) में