ढेंकी पद्धति

ढेंकी पद्धति से छत्तीसगढ़ में चावल उत्पादन को बढ़ावा देने पर जोर

Dhenki methodरायपुर 8 जनवरी।  छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  ने  ढेंकी चावल  उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये गांव के हर घर में इस परंपरागत ढेंकी पद्धति (Dhenki method) को अपनाने पर जोर दिया है।

ढेंकी पद्धति (Dhenki method) पैर से धान कूटने की एक  पद्धति है जिसमें  ग्रामीण महिला धान कूटने के यंत्र को पैरों से चलाती है।

उन्होंने कहा कि इससे लोगों को घर बैठे रोजगार के साथ-साथ  पोषक तत्वों से परिपूर्ण विशुद्ध चावल भी मिलेगा।

मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल ने विगत दिनों जिले के भ्रमण के दौरान इड़हर की सब्जी के साथ ढेंकी चावल का स्वाद लिया। उन्हें यह भोजन बहुत भाया और मुख्यमंत्री ने इसकी तारीफ करते हुए ढेंकी चावल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये गांव के हर घर में इस परंपरागत पद्धति को अपनाने पर जोर दिया।

Image ढेंकी पद्धति से धान कूटती एक ग्रामीण महिला

मुख्यमंत्री ने ग्राम दानीकुंडी में विविध सुविधा सह मूल्य संवर्धन केन्द्र में संचालित केन्द्र में ढेंकी चावल प्रसंस्करण इकाई का अवलोकन कर प्रसंस्करण कार्य में जुटी वनधन महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं से बातचीत भी की।

महिलाओं ने उन्हें बताया कि वर्तमान में वे मोटे किस्म के चावल का ढेंकी से कुटाई कर रही है। वन विभाग द्वारा 30 रूपये से 35 रूपये किलो तक धान खरीद कर उन्हें दिया जाता है। कुटाई के बाद तैयार चावल की कीमत 60 से 65 रूपये प्रति किलो होती है।

महिलाओं को चावल कुटाई का 10 रूपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जाता है तथा चावल बनने के बाद धान के भूसों को महिलाएं बेचती हैं और मुनाफा कमाती है।

प्रत्येक महिला प्रतिदिन 15 से 18 किलो तक धान कुट लेती है। कुटाई के बाद चावल की सफाई और पैंकिंग का कार्य भी इन्हीं महिलाओं के जिम्मे होता है।

ढेंकी चावल प्रसंस्करण कार्य से 70 परिवारों को रोजगार मिल रहा है ।

ढेंकी पद्धति से चावल प्रसंस्करण कार्य में दानीकुंडी एवं आसपास के 70 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। वन धन महिला स्व-सहायता समूह की 20 महिलाएं ढेंकी से चावल कुटाई और पैंकिंग का कार्य करती है।

वहीं गांव-गांव से धान एकत्र कर और उसे साफ-सुथरा कर वन प्रबंधन समिति दानीकुंडी को पहुंचाने के कार्य में लगभग 50 महिलाएं लगी हुई हैं।

तैयार चावल को वन समिति द्वारा बाजार में 90 रूपये किलो के भाव से उपलब्ध कराया जाता है। इससे जो मुनाफा होता है वह समूह, धान उत्पादन करने वाले कृषक और वन समिति को मिलता है।