कविता के शब्दों को नृत्य की भाषा में प्रस्तुत कर रसिकजन को तंद्रामय कर देना किसी भी नृत्यांगना की नृत्य-साधना का पर्याय कहा जा सकता है और यह देखने को मिला कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य प्रस्तुति में।
दिल्ली में कथक केन्द्र के मंच पर सोमवार 30 सितंबर, 2020 को यह आयोजन संगीत नाटक अकादमी द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘यू ट्यूब ’ के लिए किया गया जिसमें शास्त्रीय नृत्यांगनाओं के नृत्य को लाइव प्रस्तुत किया गया।
आयोजन को प्रस्तुत करने का तरीका भी किसी सभागार में आयोजित कार्यक्रम की तरह था और जितने भी दर्शक इस लाइव कार्यक्रम को देख रहे थे, सभी ने उसकी सराहना की।
यहाँ बात करते हैं सोमवार को प्रस्तुत कथक नृत्यांगना और गुरू प्रेरणा श्रीमाली के नृत्य प्रदर्शन की।
सुश्री प्रेरणा श्रीमाली की प्रस्तुति एक जीवंत और दर्शकों को सवेरे की मधुर बयार की तरह प्रफुल्लित कर देने वाली प्रस्तुति थी।
कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने इस प्रस्तुति के द्वारा कथक के व्याकरण, अभिनय और भावाभिव्यक्ति से जयशंकर प्रसाद, पद्माकर और कबीर के काव्य का अनिर्वचनीय रसास्वादन कराया।
कविता को नृत्य में प्रस्तुत करते समय उसके शब्दार्थ को प्रस्तुत करना एक आम चलन है। यों कविता में शब्द दृश्य मात्र है किन्तु उसका संवेदन वास्तविक आनंद है। काव्य के संवेदन को नृत्य द्वारा रसिकजन को अहसास कराना अपने आप में विशिष्ट है और यह वही नृत्यकार कर सकता है जो काव्य को हृदयंगम कर लेता है।
जयशंकर प्रसाद के गीत को प्रस्तुत करना यों भी मुश्किल है क्योंकि उनके शब्द ही काव्य की भावधारा को वर्णनात्मक बना देता है और फिर धीरे से हृदय की गहराईयों में छोड़ देता है जिसे महसूस करके आप मन ही मन आनंदानुभूति में तंद्रामय हो जाते हैं।
‘अरुण यह मधुमय देश हमारा‘ गीत की चार पंक्तियाँ प्रस्तुत करके प्रेरणा श्रीमाली ने भारतभूमि के उस सौन्दर्य का अहसास कराया जिसे हम देखने के लिए तरसते हैं।
प्रसाद के गीत की ये पंक्तियाँ उनके नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से हैं। इस गीत को सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की पुत्री और ग्रीस की राजकुमारी कार्नेलिया ने गाया है। वह भारत के सौन्दर्य और यहाँ के निवासियों के निश्छल स्वभाव और प्रेमपूर्ण व्यवहार को देखकर गद्गद् है और भारत में ही बस जाना चाहती है।
यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि कार्नेलिया ने मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य से विवाह किया था और जिनका शासनकाल भारतीय इतिहास का अप्रतिम काल खण्ड रहा है।
प्रेरणा श्रीमाली ने ‘सरस तामरस गर्भ विभा पर’ पंक्ति को अभिनय द्वारा जो अर्थ दिया वह अपने नवस्फूर्त अनुभव था। इसमें कवि ने प्रातःकालीन सूर्य की लालिमा की तुलना कमल पुष्प के गर्भ भाग की लालिमा से किया है जोे अनिर्वचनीय है। इसमें नृत्यांगना ने हस्तकों का जो प्रयोग किया वह अपने आपमें दर्शनीय है।
पद्माकर और कबीर के काव्य को प्रेरणा श्रीमाली ने खूबसूरती के साथ संजोया है और अनेक बार देखने के बाद भी हर बार कुछ नया नया सा लगता है। वस्तुतः लंबे समय से नृत्य में तराशी जा रही पद्माकर और कबीर की काव्य-पंक्तियाँँ अब नृत्यांगना का अंगहार बन गईं हैं।
प्रेरणा श्रीमाली के साथ उनके संगतिकारों ने पूरे मनोयोग से रचनाओं को संगीत की धुनों से संजोया, संवारा और प्रस्तुत किया है। तबले की शानदार संगति, गायन में सहजता, सारंगी की लय के दिल की गहराईयों में उतारने की मासूमियत और सितार की झंकृत करने वाली लयात्मकता इस प्रस्तुति को शानदार बना देती है।
संगतिकारों में तबले पर श्रेष्ठ तबलावादक फतेह सिंह गंगानी, गायन में इमरान खान, सितार पर फतेह अली और सारंगी पर सैयुदर्रहमान ने खूबसूरती से साथ निभाया।
कोरोना-काल के दौरान शास्त्रीय नृत्य और संगीत के कलाकार जैसी त्रासदी भोग रहे हैं वह भी कम तकलीफ़देह नहीं है।
व्यावसायिक सिनेमा और मनोरंजन के इस काल में शास्त्रीय कलाओं को जीवंत बनाये रखना और उन परंपराओं को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना वैसे भी मुश्किल काम है किन्तु कोरोना-काल ने तो सभी स्तर के कलाकारों को मुश्किल में डाल दिया है। ऐसे समय में संगीत नाटक अकादमी का यह प्रयास निस्संदेह स्तुत्य है।
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