मनोज पाठक रांची से =====
ये पीएचडी हैं पर गुजारे के लिए बाल भी काटते हैं। एक ओर जहां देश की राजनीति में ऊंचे-ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों की शैक्षणिक डिग्री पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं झारखंड की राजधानी रांची में पीएचडी डिग्री धारक और कॉलेज में विजिटिंग प्रोफेसर का काम करने वाले एक व्यक्ति को अपने परिवार का पेट पालने के लिए फुटपाथ पर सैलून चलाना पड़ रहा है।
रांची के महात्मा गांधी रोड के किनारे फुटपाथ पर अपनी सैलून चलाने वाले रामनगर निवासी अशरफ हुसैन इस दुकान पर खुद ग्राहकों की दाढ़ी और बाल काटते हैं। नाई का काम करने वाले डा. अशरफ न केवल परा स्नातक (एमए) की पढ़ाई पूरी की है, बल्कि ‘ए कम्परेटिव एंड एनालिटिकल स्टडी आफ साऊथ उर्दू स्टोरी रायटर इन झारखण्ड’ विषय पर शोध भी कर चुके हैं।
अशरफ बताते हैं कि वर्ष 2015 से मौलाना आजाद काॅलेज में बतौर ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ बच्चों को पढ़ा रहे हैं, परंतु कॉलेज से मिलने वाले प्रतिमाह तीन हजार रुपये से घर नहीं चलता इसलिए पैतृक व्यवसाय हजाम का भी काम करना पड़ता है।
क्षेत्र में ‘डॉक्टर’ के नाम से प्रसिद्घ अशरफ कहते हैं कि वह भले ही फुटपाथ पर दो कुर्सी और एक आइना लेकर दुकान चलाते हों परंतु उनके पास ग्राहकों की कोई कमी नहीं है। उनके पास इतने ग्राहक आ जाते हैं जिनसे मिले पैसे से उनके परिवार का गुजारा चल जाता है।
अशरफ कहते हैं कि अगर वह चाहते तो उन्हें निजी कम्पनी में नौकरी मिल जाती लेकिन नौकरी में सिमट कर रह जाने के डर के कारण उन्होंने विरासत में मिले इस नाई के काम को करना पसंद किया।
अशरफ ने कहा कि बचपन से ही उन्हें उच्च शिक्षा पाने की लालसा थी लेकिन पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बिना कुछ कमाए अपनी पढ़ाई कर सकते थे। इस कारण वह अपने पिता की हजामत की दुकान पर ही अपना जीवन गुजारने लगे लेकिन उनमें पढ़ाई की ललक कम नहीं हुई। काम करते हुए ही उन्होंने 2011 में पीएचडी की उपाधि हासिल की।
इन्होंने अनवरी बेगम और सबूही तारिक जैसी झारखण्ड की महिलाओं पर किताब भी लिखी है। किताब प्रकाशित करवाने को जब उनके पास पैसे नहीं थे तब इन्होंने दोस्तों से मदद मांगी और तब जाकर इस किताब की 500 कॉपी छपवाई गई। अशरफ का दावा है कि इस विषय पर लिखी उनकी यह किताब अपने आप में पहली है।
डी-लिट् की उपाधि हासिल करने की चाहत रखने वाले अशरफ के पिता ने कभी स्कूल का रुख नहीं किया लेकिन अपने बच्चों को अच्छी तालीम दी। 1989 में इंटर की परीक्षा के बाद अशरफ के सिर पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। लगभग दस सालों तक किताबों से नाता टूट गया फिर इन्होंने 2002 में स्नातक किया और फिर तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए पीएचडी तक की।
अशरफ को हिन्दी भाषा से भी बहुत लगाव है। यही कारण है कि वह अपने पुत्र को हिन्दी विषय में शोध कराना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि उनका पुत्र अभी मदरसा में रहकर पढ़ाई कर रहा है परंतु वह हिन्दी में उसे शोध कराना चाहेंगे, जिससे घर में उर्दू और हिन्दी का संगम हो सके।
ग्राहक भी अशरफ के पास बाल बनवाकर और सेविंग कराकर खुश होते हैं। ग्राहकों का मानना है कि इतने शिक्षित व्यक्ति से सेविंग करा कर वे खुद गौरवान्वित महसूस करते हैं।
Follow @JansamacharNews