नई दिल्ली, 23 फरवरी (जनसमा)। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा कि स्पेशल एग्रीकल्चर जोन की तरह ही ‘पेरी अर्बन एग्रीकल्चर’ को योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में गाॅवों से शहर की तरफ रोजगार के लिए आने वाले लोगों के लिए यह सुविधाजनक रहेगा। पेरी अर्बन ऐरिया को पर्यावरण अनुकूल बनाया जाय जिससे उनको अच्छी सुविधाएं दी जा सकेगी। पेरी अर्बन ऐरिया के विकसित होने से बाढ़ और पानी के जमाव की परेशानी से निपटा जा सकेगा। शहरों के पास पड़ी जमीन का खेती के लिए उपयोग करके रोजगार के साधन बढ़ाये जा सकते है। केरल सहित दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में पेरी अर्बन ऐरिया में कृषि को लेकर बहुत काम हुआ है।
बुद्धवार को गोरखपुर एनवायरन्मेन्टल एक्शन ग्रुप, राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान, भारत सरकार एवं रूफा संस्थान, नीदरलैण्ड के संयुक्त तत्वाधान में इण्डिया इन्टरनेशनल सेन्टर में पेरी अर्बन एग्रीकल्चर एंड इकोसिस्टम विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला के पहले दिन मुख्य अतिथि के रूप में कृषि एवं उद्यान आयुक्त नई दिल्ली डा. एस. के. मल्होत्रा ने कहा कि पिछले दशक में खेती के क्षेत्र में भारत में बहुत तरक्की की है। पिछले वर्ष सबसे अधिक उत्पादन किया गया। इसके बाद भी दाल, तेल और सब्जी के दामों में तेजी आयी जिसका कारण जनसख्या का बढ़ाता दबाव है। गाँवों से शहरों की तरफ आने वाले लोगों की तादात बढ़ाती जा रही है। 2020 तक यह संख्या 60 प्रतिशत होने का अनुमान है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इन चुनौतियों को समझते हुए कृषि उत्पादन के साथ साथ खाने में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की है। पेरी अर्बन एरिया का भी उपयोग करने की नीति तैयार की गयी है। पेरी अर्बन एरिया में कृषि को बढ़ावा देने के लिए 500 वर्ग फुट से लेकर 5000 वर्ग फुट से अधिक के पाॅली हाउस बनाकर खेती की जा सकती है।
अन्तराष्ट्रीय पर्यावरणविद् एवं अध्यक्ष, गोरखपुर एनवायरन्मेन्टल एक्शन ग्रुप, डाॅ. शीराज़ वजीह ने कहा कि विश्व में नगरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। जहाँ 20वीं शताब्दी के आरम्भ में विश्व के नगरीय क्षेत्रों में आबादी 15 प्रतिशत थी वहीं 2007 में विश्व की नगरीय आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से भी ज्यादा हो गई। अनुमान है कि 2050 तक विश्व की तीन चैथाई जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में होगी।
उन्होंने बताया कि नगरीय परिक्षेत्र आम तौर पर शहर के एक ऐसे भौगोलिक क्षेत्र के रूप में चिन्हित किये जाते हैं जो खाद्य सुरक्षा व जीवनयापन हेतु आवश्यक है और ये नगर के भूमि, जल, उर्जा, श्रम आदि जैसे संसाधनों पर आधारित होते हैं। नगरीय परिक्षेत्र कृषि हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण है और एक अनुमान के अनुसार विश्व की लगभग 80 करोड़ आबादी ऐसी कृषि के साथ जुड़ी हुई है। ऐसी कृषिगत गतिविधियों में सब्जी, फल, बागवानी, पशुपालन, वन जैसे कार्यकलाप प्रमुख हैं। तेजी से बढ़ते नगर ऐसे प्राकृतिक संसाधनों के सामने चुनौती बन रहे हैं और वर्तमान में उपलब्ध कृषि भूमि व हरित क्षेत्र घट रहे हैं जो शहर के श्वसन तंत्र की भूमिका के साथ ही खाद्य उत्पादन व आजीविका उपलब्ध कराने में भी सहायक होते हैं।
बैग्लोर की डाॅ. सुमिती पहवा ने कहा कि पेरी अर्बन एग्रीकल्चर में सब्जियों की खेती और फूलों एवं फलों की ख्ेाती किसानों के लिए उनकी आजीविका का एक प्रमुख साधन है। दक्षिण भारत के राज्यों की चर्चा करते हुए कहा कि यहाॅ रहने वाले लोग विदेश जाने के बाद भी अपने संस्कृति को भूल नहीं पाते। एैसे लोग अपने देश वापस आ कर खेती जैसे व्यवसाय से जुड़ना पसन्द करते है। तकनीकि जानकारियों और साधनों के प्रयोग से पेरी अर्बन एरिया रहने वाले किसानों को पहले से अधिक फायदा होने लगा है।
भारत में भी नगरीकरण तेजी से हो रहा है। भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी, अमृत सिटी जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं द्वारा शहरों की स्थिति में सुधार के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिये है। इस दिशा में नगरीय परिक्षेत्र(पेरी अर्बन) क्षेत्रों पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। नगरीय परिक्षेत्र(पेरी अर्बन क्षेत्र) कृषि शहर के कमजोर वर्ग की आबादी हेतु बड़ा सहारा होती है साथ ही परिक्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन नगरों को जलवायु परिवर्तन प्रभावों से निपटने में अपना योगदान देते हैं। बढ़ते बाढ़, जल जमाव, तापमान की बढ़ोत्तरी, सूखा, जल की कमी आदि जैसी परिस्थितियों से नगरों को सशक्त करने में इनकी अहम भूमिका होती है। नगरीय विकास के साथ ही इन नगरीय परिक्षेत्रों में कृषि व पारिस्थितिकी तंत्रों को बनाये रखने हेतु वांछित नीतियों, परिक्षेत्रों में अन्य अवसरों को चिन्हित करने और नगरीय खाद्य उत्पादन व पोषण सुरक्षा को सशक्त करने जैसे आयामों पर परिचर्चा इस कार्यशाला में की गयी।
इस कार्यशाला में मुख्य रूप से प्रो. जगन शाह निदेशक राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान, भारत सरकार, सुश्री प्रियानी अमरसिंघे रिजनल समन्वयक रूफा संस्थान, नीदरलैण्ड, प्रो.उषा रघुपति, राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान, डाॅ. ज्योतिराज पात्रा, निवेदिता मणी, के.के.सिंह, विजय पाण्डेय, अजय सिंह, शैलेन्द्र सिंह, जितेन्द्र द्विवेदी एवं शिक्षाविद्, जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे लोगों, विभिन्न विभागों व शोध संस्थनों से विशेषज्ञों ने भाग लिया।
Follow @JansamacharNews