संदीप पौराणिक===
सूखे को लेकर देश और दुनिया में चर्चित बुंदेलखंड में पानी का संकट दिन-प्रतिदिन गंभीर रूप लेता जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी के लिए कई किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। इन हालात से जूझते लोग कम मेहनत और कम समय में घरों तक ज्यादा पानी लाने के लिए नवाचार (इनोवेशन) कर रहे हैं। इन्हीं में से एक है ‘पानी गाड़ी’।
छतरपुर जिले के बम्हौरी खुर्द गांव में पानी की गाड़ी पर रखे चार मटके और उन्हें आसानी से ले जाता युवक नवाचार की कहानी कह जाता है। यह गाड़ी पूरी तरह लोहे से बनी हुई है, जिसमें एक तरफ पकड़ने का डंडा लगा हुआ है, तो साथ ही बर्तन रखने के खांचे बनाए गए हैं, जिससे बर्तन हिलता-डुलता नहीं है और नुकसान का भी खतरा कम होता है।
इसमें नीचे लगे पहिए स्कूटर के बराबर हैं। इन पहियों में बगैर ट्यूब के रबर वाले टायर लगाए गए हैं, जिनके पंक्च र होने का खतरा नहीं रहता। इतना ही नहीं, पहियों में बैरिंग होने के कारण गाड़ी को चलाने में भी ज्यादा श्रम नहीं लगता है।
बम्हौरी खुर्द के शैलेंद्र सिंह चौहान ने आईएएनएस को बताया कि इस गांव के कई हिस्से ऐसे हैं जहां से लगभग एक से दो किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद ही पीने का पानी हासिल हो पाता है। ऐसे में पानी गाड़ी एक बड़ा सहारा बन गई। इस गाड़ी में एक साथ चार बर्तन या मटके रखे जा सकते हैं, जिनमें लगभग डेढ़ से दो सौ लीटर तक पानी आ जाता है।
इसी गांव की गुड्डी लुहार पानी की गाड़ी आने से काफी खुश हैं। उनका कहना है कि इस गाड़ी के आ जाने से जहां एक ओर उनको हैंडपंप के कई चक्कर नहीं लगाना पड़ते, वहीं थकान भी कम होती है। यह गाड़ी उनके लिए बड़ा सहारा बन गई है।
बुंदेलखंड के एक दर्जन से ज्यादा गांव में पानी गाड़ी उपलब्ध कराने वाले परमार्थ समाजसेवी संस्था के सचिव संजय सिंह ने बताया कि यह गाड़ी उपलब्ध कराने का मकसद महिलाओं के सिर पर पानी ढोने से पड़ने वाले बोझ को काम करना है और उन्हें इसके कारण शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से बचाना है। साथ ही समय की बचत करना भी है।
बुंदेलखंड मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बनता है। इनमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर, दमोह और दतिया आते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा और चित्रकूट इसमें शामिल हैं।
ये वे इलाके हैं, जहां घर के पानी का इंतजाम करने की जिम्मेदारी मुख्य तौर पर महिलाओं और बेटियों पर होती है। यह गाड़ी महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है।
छतरपुर जिले के सेंवार गांव के अशोक असाटी बताते हैं कि उनके गांव में आई पानी की गाड़ी उस बस्ती के लोगों के लिए ज्यादा लाभदायक साबित हो रही है, जिनके घरों से जलस्रोत काफी दूरी पर है। यह गाड़ी एक साथ कई लोग मांगते हैं, लिहाजा उन्हें क्रम के आधार पर इसे उपलब्ध कराया जाता है।
ललितपुर जिले के उदगुवां की सिर कुंवर का कहना है कि इस गाड़ी से उनके गांव के सरकारी विद्यालय को सबसे ज्यादा लाभ होगा, क्योंकि बच्चे मध्याह्न् भोजन के बाद बर्तन साफ करने की बात कहकर घरों को चले जाते है और लौटकर आते ही नहीं हैं। विद्यालय में पानी का स्रोत नहीं है और पानी काफी दूर से लाना पड़ता है। अब इस गाड़ी से विद्यालय तक पानी आसानी से पहुंचाया जा सकेगा।
इसी जिले के जमालपुर की सरोज गांव में गाड़ी आने से काफी खुश हैं। वे कहती हैं कि इस गाड़ी ने जहां उनके श्रम को कम किया है, वहीं समय की बचत भी होने लगी है। इस गाड़ी की वजह से वे एक बार में इतना पानी ले आती हैं, जितना वे पहले चार बार या उससे ज्यादा बार में ला पाती थीं।
पानी को ढोने के लिए किया गया यह नवाचार मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों के लिए एक ऐसा उदाहरण है, जिससे वे इस तरह की गाड़ी को गांव-गांव तक पहुंचाकर उन लोगों को राहत दे सकती हैं, जिन्हें कई किलोमीटर का रास्ता तय करके पीने का पानी लाना पड़ रहा है। इस गाड़ी की लागत भी बहुत कम है इसलिए इसे उपलब्ध कराना भी ज्यादा कठिन नहीं होना चाहिए। –आईएएनएस
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