दक्षिण भारत कलात्मक मंदिरों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। खासकर तमिलनाडु के भव्य मंदिरों की बात ही क्या? यहां के कलात्मक मंदिर सैलानियों और श्रद्धालुओं को बरबस ही खींच लेते हैं।
आज बात करते हैं मदुरै के मीनाक्षी मंदिर की। यह मंदिर दक्षिण के कलात्मक मंदिरों में विशिष्ट स्थान रखता है।
पांड्य राजाओं के शासनकाल में 1150 से 1300 ईस्वी के बीच मदुरै में मंदिर निर्माण कला को बहुत बढ़ावा मिला। इसमें भी मदुरै के मीनाक्षी मंदिर में अनेक प्रकार के निर्माण के काम समय-समय पर किए गए।
भगवान सुन्दरेश्वर और उनकी पत्नी मीनाक्षी को समर्पित यह मंदिर दक्षिण में ही नहीं देश के सबसे अधिक स्तंभों वाले मंदिरों में से एक माना जाता है। लगभग 2000 स्तंभों वाले इस मंदिर की वास्तुकला को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाएगा।
एक विशाल परपोटे से घिरे चार विशाल प्रवेशद्वारों वाले इस मंदिर में 11 गोपुरम बने हुए हैं। प्रत्येक द्वार के ऊपर बना एक गोपुरम आसमान छूता हुआ दिखाई देता है और उस पर बनी हुई मूर्तियां एक चुम्बकीय आकर्षण प्रदान करती हैं।
पूरब की ओर बने मुख्य प्रवेशद्वार से मंदिर में प्रवेश किया जाता है। फिर एक गलियारे से दूसरे प्रवेशद्वार की ओर जाते हैं। इसके बीच में विशाल सभा मंडप है। भीतर के प्रवेशद्वार के ऊपर भी एक छोटा गोपुरम बना हुआ है जो बाहर से भी दिखाई देता है। मंदिर के भीतर का अहाता एक छत से ढंका हुआ है इसी में तीन कक्ष हैं।
मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के सामने निर्मित एक भवन है जिसे पदुमंडप कहा जाता है। इसके स्तंभों और दीवारों पर की गई कलात्मक नक्काशी को देखकर हर कोई वाह-वाह कर उठता है। इसी पदुमंडप में 10 आदमकद चित्र हैं जो नायक राजवंश के राजाओं के हैं।
मंदिर के परपोटे के भीतर एक खूबसूरत सरोवर है जिसके चारों ओर विशाल गलियारा बना हुआ है। कहते हैं कि कभी इस सरोवर में कुमुदनी के फूल खिला करते थे।
एक कक्ष गर्भगृह है जिसमें सुन्दरेश्वर और देवी मीनाक्षी की मूर्तियां प्रतिष्ठापित हैं किन्तु मीनाक्षी को समर्पित इस मंदिर में उन्हीं की पूजा अर्चना प्रमुखता से की जाती है।
मंदिर में बने सभा भवनों की दीवारों पर बने कलात्मक भित्तिचित्र एक चमत्कार पैदा करते से जान पड़ते हैं। पांड्यकाल की वास्तुकला का प्रतीक यह मंदिर शिल्पकला की दृष्टि से एक बेजोड़ मंदिर है।
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