हरिदेव जोशी – दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल वागड़ अंचल में बांसवाड़ा ज़िले के एक छोटे से गाँव खांदू में एक साधारण ब्राह्मण परिवार पन्नालाल जोशी (ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान) और श्रीमती कमला जोशी के घर जन्मे एवं राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री एवं असम मेघालय और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे हरिदेव जोशी, देश और प्रदेश के उन गिने चुने राजनेताओं में से एक थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी चुनाव नहीं हारा।
उन्होंने बचपन से ही स्वतंत्रतता सेनानी के रूप में आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और देश की आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1995 में अपने देहांत तक राजस्थान विधानसभा के लिए लगातार दस चुनावों में विधायक के रूप में निर्वाचित हुए और एक ऐसा असाधारण रिकॉर्ड बनाया जिसे आगे तोड़ पाना असंभव होगा ।
वे राजस्थान के लौह पुरुष और दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य वागड़ अंचल में माही गंगा का पानी लाने वाले ‘भगीरथ’ एवं ‘वागड़ के बाबूजी’ के नाम से विख्यात हुए।
== गोपेन्द्र नाथ भट्ट ==
17 दिसंबर 1921 को जन्मे हरिदेव जोशी अपने गृह जिले बाँसवाड़ा में स्थित त्रिपुरा सुन्दरी माता के अनन्य भक्त थे। उनका जन्म बेशक बाँसवाड़ा में हुआ लेकिन वास्तव में उनकी कर्म स्थली डूंगरपुर जिला रहा।
अपने जीवन के आरम्भिक काल में जोशीले जोशी जी ने डूंगरपुर में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रह कर ब्रिटिश हकूमत और राजशाही की चूलें हिला दी थी ।
डूंगरपुर में उनकी निरन्तर सक्रियता के कारण उन्हें आज़ादी के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने डूंगरपुर से टिकट दिया और उन्होंने यहाँ से ही अपने राजनैतिक जीवन की अविजित पारी और अभूतपूर्व यात्रा शुरू की।उनका विवाह भी डूंगरपुर के ब्राह्मण कुल में सुभद्रा जी से हुआ।
वह ऐसा वक्त था जब अपने आपको उच्चकुलीन कहलाने वाले ब्राह्मण उन्हें अपने घर की बेटी देने में भी कतराते थे लेकिन बाद में परिस्थितियाँ बदलीं और जोशी जी सभी ब्राह्मणों के शिरोमणी बन उभरें।
हरिदेव जोशी और श्रीमती सुभद्रा जोशी के दो पुत्र दिनेश जोशी और सुरेश जोशी तथा एक पुत्री उषा जोशी हुई। उनकी सबसे बड़ी पोती दिनेश जोशी और श्रीमती जयन्ती जोशी की ज्येष्ठ पुत्री प्रीति केरल के मुख्य सचिव डॉ विश्वास मेहता की धर्मपत्नी हैं।
वहीं उनके छोटे पुत्र सुरेश जोशी की पत्नी श्रीमती वीरबाला जोशी राजस्थान लेखा सेवा के सर्वोच पद से सेवानिवृत हुई है। परिवार के अन्य सदस्य भी प्रतिष्ठित जगह हैं।
हरिदेव जोशी एक कुशल संगठनकर्ता, प्रखर प्रशासक, ओजस्वी वक्ता, संवेदनशील नेता और आध्यात्मिक जननायक थे । बचपन में हुई एक दुर्घटना में अपना बायां हाथ खो जाने के बावजूद उनमें इतना अधिकआत्म विश्वास था कि एक हाथ से ही तेज स्पीड में न केवल गाड़ी चला लेते थे वरन कपडे पहनने सहित अपनी धोती भी मजबूती से बाँध लेते थे। साथ ही बिना किसी के सहयोग से अपनी दैनिक दिनचर्या के सारे काम स्वयं ही किया करते थे।
सफ़ेद धोती कुर्ता, काले रंग के धागे से लटकी रहने वाली जेब घडी और सिर पर सफ़ेद टोपी उनकी विशेष पहचान थी ।
अटूट कीर्तिमान
राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी लगातार दस विधानसभा चुनाव जीतने वाले राजस्थान केएकमात्र विधायक रहे। उन्होंने पहला चुनाव डूंगरपुर सामान्य सीट से 1952 में जीता। तब देश में कुछ सीटों परदो विधायक चुने जाते थे । डूंगरपुर भी उनमें से एक थी। लेकिन इसके बाद यह व्यवस्था समाप्त हो गई औरडूंगरपुर में उनसे वरिष्ठ नेता वागड़ गाँधी भोगीलाल पंड्या के होने के कारण जोशी जी को अगले चुनाव के लिएअपने गृह ज़िले बांसवाड़ा की ओर रुख करना पड़ा।
वे 1957 और 1962 में बांसवाड़ा ज़िले की घाटोल सीटसे चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 1967 से लेकर 1993 तक वे बांसवाड़ा नगर सीट से लगातारसात बार विधायक चुने गए।
राजनीति में राजनीतिक दलों और नेताओं की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा जनता काविश्वास जीतने की होती है। वर्तमान दौर में इस परीक्षा में अधिकांश राजनीतिज्ञ असफल हो रहे है, लेकिनआदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले में हरिदेव जोशी सहित कतिपय राजनेता ऐसे हुए, जिन्होंने जनता का ऐसाविश्वास जीता कि ‘हार’ उनसे कोसों दूर रही।
इन राजनेताओं में हरिदेव जोशी सबसे आगे रहे । बांसवाड़ाजिले में मामा बालेश्वरदयाल की समाजवादी पार्टी का गढ़ रही कुशलगढ़ सीट पर सर्वाधिक छह बारचुनाव जीते। फतेहसिंह, जोशी जी के एक ही सीट से चुनाव जीतने के रिकार्ड की बराबरी करने के नजदीक थे, लेकिन 2013 के चुनाव में वे हार गए । इसके कारण वे लगातार छठी बार चुनाव नहीं जीत पाए ।
इससे पूर्व फतेहसिंह ने 1990 से लेकर 2008 तक हुए पांच विधानसभा चुनाव जनता दल के प्रत्याशी के रूप में लगातार जीते थे और 1980 में लोकदल के टिकट पर भी विधायक बने थे ।
जोशी जी के इस प्रकार अविजित रहने का सबसे मुख्य कारण जोशी जी का अपने चुनाव क्षेत्र की जनता के साथ हमेशा जीवंत संपर्कहोना रहा । फिर एक जमाने में देश के सबसे पिछड़े माने जाने वाले आदिवासी क्षेत्र बांसवाड़ा- डूंगरपुर में जनप्रतिनिधि के रूप में उन्होंने विकास की ऐसी गंगा बहाई कि देखने वाले दंग रह गए ।
हरिदेव जोशी जीके मन में बचपन से ही अपने वागड़ अंचल के अत्यंत पिछड़े होने और कुछ अन्य बातें कांटे की तरह चुभा करतीथी । तभी से उन्होंने मन ही मन संकल्प लिया कि वे अपने इलाके की सूरत और सीरत बदल कर रहेंगे, क्योंकि मानसून में बांसवाड़ा में बहने वाली माही नदी भारी तबाही मचाया करती थी और राजस्थान के चेरापूंजी के नाम से विख्यात पूरा जिला वर्षा के मौसम में देश दुनिया से पूरी तरह कट कर टापू बन कर रह जाता था ।
गुजरात और मध्यप्रदेश से जुड़े इस अंचल में न तो आवागम के साधन थे , न सड़कें थीं ,न अस्पताल थे, न स्कूल- कॉलेज । यहाँ के बाशिंदों के सामने रोजगार और दूषित पानी के कारण नारू जैसे रोगों जैसी कईविकट समस्याएं हमेशा मुँह खोले रहती थी। रोजगार के लिए अन्यत्र पलायन करना पड़ता था।
काली उपजाऊमिट्टी से भरपूर खेतों में पानी की कमी के कारण अक्सर लोगों को सूखे और अकाल का सामना करना पड़ताथा । आखिर श्री हरिदेव जोशी के दृढ संकल्प की वजह से ही बांसवाड़ा और वागड़ अंचल की तकदीर बदलीऔर अंचल में विकास के नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अकाल राहत कार्यों के अन्तर्गत ‘हर खेत पर एक कुआँ’ कार्यक्रम भी शुरू किया था ताकि उसमें वर्षा जल का संचय हो सकें।
वागड़ के भगीरथ
हरिदेव जोशी को वागड़ के भगीरथ कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । जोशी जी के अथक प्रयासों से मानसून में तूफ़ान लाने वाली माही नदी पर एक बड़ा बाँध बांधने के लिए 1971 में राजस्थान ,मध्य प्रदेश और गुजरात के बीच एक अंतर राज्यीय बहु उद्देशीय माही बजाज सागर जल और विद्युत परियोजना समझौता हुआ।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के निकट माही नदी पर न केवल विशाल बाँध बनावरन दो जल विद्युत परियोजनाएं भी शुरू हुईं । इसकी वजह से आज बांसवाड़ा ज़िले के 1 .50 लाख हेक्टर सेभी अधिक क्षेत्र में प्यासी भूमि को नहरों से पानी मिल रहा है वहीं सम्पूर्ण वागड़ अंचल निर्बाध बिजली केप्रवाह से भी रोशन हो रहा है ।
माही गंगा का पानी ‘भीखा भाई नहर परियोजना’ के द्वारा डूंगरपुर जिले के कुछक्षेत्रों में भी जा रहा है। सूखे खेतों में पानी जाने से यहाँ के किसानों के खेत अब सोना उगल रहे हैं और प्रायःअकाल पीड़ित रहने वाले इस अंचल में अब किसान केश क्रोप सहित एक साल में तीन- तीन फसलें ले रहे हैं ।
हर वर्ष कैश क्रॉप्स लेने के कारण इनकी हैसियत में भी रात और दिन जैसा बदलाव देखा जा सकता हैं । श्री हरिदेवजोशी के सतत प्रयासों से ही आज क्षेत्र की माही, सोम,जाखम तथा अन्य नदियों पर एनिकटस,बड़े- बड़े पुल ,नेशनलऔर स्टेट हाई- वे ,अन्तर जिला सड़कें , कई कपड़ा और अन्य मीलें,हर क्षेत्र में स्कूल ,कॉलेज ,प्राथमिकस्वास्थ्य केंद्र,हवाई पट्टियां सहित अन्य लगभग सभी मूलभूत सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ हैं। उनकीसबसे बड़ी कामयाबी माही बजाज सागर परियोजना के अलावा यूनीसेफ के सहयोग से अंचल में लागू की गई”नारू उन्मूलन योजना ” को कहा जा सकता हैं ।
इसके अंतर्गत गांव- गांव में लगाए गए हेण्डपम्पों और खुलीबावड़ियों के प्रबंधन के फलस्वरूप सम्पूर्ण वागड़ अंचल ‘नारू रोग’ से पूरी तरह मुक्त हो गया वरना नारू(गिनीवोर्म) की वजह से अंचल के लोगों को भारी पीड़ा से गुजरना पड़ता था। लोग शरीर के किसी भी हिस्से से निकलने वाले सफ़ेद धागे की तरह के इस कीड़े से असह्य पीड़ा भोगने को मजबूर थे। क्षेत्र के बड़ेआदिवासी नेता और राष्ट्रीय एसटीएससी आयोग के अध्यक्ष और सांसद रहे भीखाभाई भील भी इस रोग से बचनहीं सके थे ।
इस योजना की सफलता को देखते हुए बाद में इसे पश्चिम राजस्थान में भी लागू किया गया जिसकी वजह से आज सम्पूर्ण राजस्थान भी ‘नारू- मुक्त’ हो गया हैं ।
जनता लहर में हुई अग्नि परीक्षा
देश में 1977 की देशव्यापी कांग्रेस विरोधी लहर में हुए चुनावों में श्री हरिदेव जोशी की असली अग्नि परीक्षाहुई । वयोवृद्ध कांग्रेस कार्यकर्ता बताते हैं कि बांसवाड़ा में कई कार्यकर्ताओं ने उस वक्त उन्हें चुनाव नहीं लडऩेकी सलाह दी थी। तब श्री जोशी ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में चुनाव नहीं लडऩे से पार्टी कार्यकर्ताओं मेंभारी निराशा होगी,इसलिए मैं चुनाव लडूंगा भले ही हार जाऊ , लेकिन मुझे अपने मतदाताओं के साथ अपनेसंबंधों पर पूरा भरोसा है।
पूरे चुनाव में हरिदेव जोशी रात दिन गांव-गांव पैदल घूमकर जन संपर्क करते रहेऔर कार्यकर्ताओं में जोश भी भरते रहें । सुबह शाम होते-होते उनके पैर सूज जाया करते थे। उनकी अपार लोकप्रियता का आलम यह था कि गांव-गांव, गली-गली में श्री जोशी को पैदल देखकर महिलाएं उनकीबलाइयां लेती थीं और जोशी जी द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को उनके नाम से पुकारे जाने से उनमें दुगना उत्साह भर जाता था । अंतत: वे विजयी रहे और ऐसे वक्त में सही अर्थों में एक ‘जन नायक’ के रूप में उभरें, जबकिदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांघी सहित बड़े बड़े बरगद जनता लहर के तूफ़ान में धराशायी होगए थे ।
तेरह वर्ष लगातार संगठन में काम करने के बाद बनें मंत्री
आजादी के आंदोलन के दौरान अपने पड़ोसी डूंगरपुर ज़िले में युवातुर्क स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में सक्रिय रहने के बाद जब देश आजाद हुआ तो कांग्रेस के ज्यादातर वरिष्ठ नेता प्रदेश में गठित सरकार का हिस्सा बने।युवाओं को संगठन में जगह मिली।
जोशी जी को भी इसी क्रम में मौका मिला और 1950 में वे नए बने राजस्थान प्रांत के प्रदेश महासचिव बन गए। फिर सूबे में पहले चुनाव हुए और हरिदेव जोशी डूंगरपुर सीट से चुनाव लड़ बन गए राजस्थान विधान सभा के विधायक और अगली 9 विधानसभाओं के दौरान लगातार विधायक रहे।
तेरह वर्ष लगातार संगठन में धैर्य पूर्वक काम करने के बाद उन्हें 1965 में राजस्थान के तत्कालीन बहुचर्चित मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया। तब 1971 मेंप्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने मोहनलाल सुखाड़िया को मुख्यमंत्री पद से पदच्युत कर हज यात्रा के लिएविदेश जा रहे बरकतुल्लाह खान उर्फ प्यारे मियां को यात्रा से वापस बुला कर मुख्यमंत्री बनाया।
दरअसल पान और ताश के शौकीन बरकतुल्लाह खान की सरकार उनकी कैबिनेट में सबसे सीनियर मंत्री के रूप में हरिदेव जोशी ने ही चलाई।
जोशी अक्सर उनके कई रोचक किस्से भी सुनाया करते थे। जोशी जी माही-परियोजना की फाइल योजना आयोग में मंजूरी के लिए भिजवाने का जिक्र करते हुए बताते थे कि बरकतुल्लाह खान से फाइल पर साइन करवाने उनके टॉयलेट में पेन और फाइल खिसकाई गई थी । यदि समय रहते फाइल दिल्ली नहीं पहुँचती तो यह महत्वाकांक्षी योजना बांसवाड़ा की रेल – परियोजना की तरह अधर में लटक कर रह जाती।
राजनीति में देखे कई उतार चढाव
हरिदेव जोशी ने अपने राजनैतिक जीवन में कई उतार चढाव देखें । डूंगरपुर -बांसवाड़ा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं भोगी लाल पंड्या , गौरी शंकर उपाध्याय,भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी, भीखा भाई भील के साथ ही प्रतिपक्ष के नेताओं डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह ,मामा बालेश्वर दयाल आदि के साथ राजनैतिक प्रतिस्पर्धा रही वहीं उन्हें नटवर लाल भट्ट, प्रभा शंकर पण्ड्या, पवन कुमार रोकड़िया, रमेश पण्ड्या,प्रभुलाल रावत, नतवरलाल त्रिवेदी, बृजमोहन द्विवेदी, बंसीलाल शाह, चंदू लाल गुप्ता, शिवलाल कोटडिया, हीरालाल कंसारा , हीरालाल उपाध्याय जय हिंद , किशनलाल गर्ग , गोविन्दलाल याज्ञनिक , शमशेर सिहं , सोहनलाल मेहता, शाबाश खान, श्रीमती सारिया खान, जगतसिंह चेलावत, कृष्ण कांत उपाध्याय, राम नारायण शुक्ला, कांति नाथ भट्ट, कान्ति शंकर शुक्ला, शंकर लाल जोशी आदि और क्षेत्रीय सांसदों ,विधायकों,न्यायविदों,अभिभाषको, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों आदि का ज़बर्दस्त सहयोग भी मिला।
मिर्धा जी को मात दे बने सीएम
वर्ष 1973 में हार्ट अटैक के कारण बरकतुल्लाह खान का निधन हो गया । अब सबसे वरिष्ठ मन्त्री होने के नाते हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री के लिए स्वाभाविक दावा बन गया था। सबकी नजरें प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी पर थी। पिछली बार बरकतुल्लाह खान की दिल्ली से सीएम चुनने वाली इंदिरा जी बोलीं- विधायकदल खुद अपना नेता चुने।दरअसल इंदिरा जी की पसंद उनके गृहराज्य मंत्री और सूबे के बड़े जाट नेता रामनिवास मिर्धा थे ।
अब मिर्धा जी और जोशी जी आमने-सामने थे।विधायक दल की वोटिंग हुई और हरिदेव जोशी मिर्धा जी को 13 वोटों से हरा कर विधायक दल के नेता बन गए। इस प्रकार जोशी जी की राजस्थान के मुख्यमंत्री केरूप में पहली ताजपोशी हुई। बाद में वे दो बार और प्रदेश के सी एम रहें,लेकिन दुर्भाग्य से मुख्यमंत्री के रूप में वे एक भी बार अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पायें।
मुख्यमंत्री के रूप में हरिदेव जोशी के पहले कार्यकाल में कई काम हुए । उन्होंने सबसे पहले जिस माही नदी के कारण उनका जिला पूरे देश और प्रदेश से कट जाता था, उस पर कई पुल बनवाए।इसके अलावा राज्य में कोटा, अजमेर और बीकानेर में तीन नये विश्वविद्यालय भी शुरू करवायें।
आपातकाल और संजय गांधी के पाँच सूत्री कार्यक्रम
फिर वह समय आया जब एक ओर उनके छोटे पुत्र सुरेश जोशी की शादी हो रही थी और दूसरी और प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी का दिल्ली से बुलावा आ गया।
घोड़ी पर चढ़ चुके बेटे को उसके होने वाले ससुराल की ड्योढ़ी तक पहुँचा कर वे उन्हें लेने पहुँचे मध्यप्रदेश के सी एम के साथ सीधे नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए। 1975 में इंदिरा जी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस दौरान जोशी जी को अपनेपार्टी हाई कमान और केन्द्र सरकार के आदेशानुसार प्रतिपक्ष के नेताओं और मीडिया को साधने के साथ ही संजय गांधी और उनके पांच सूत्री कार्यक्रम को लागू करने की अतिरिक्त चुनौतियों को भी पूरा करना पड़ा।
मगर 1977 में जेपी आन्दोलन की छाया में सभी प्रमुख विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी के सामने उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी कांग्रेस पहले लोकसभा में और फिर कुछ महीने बाद विधानसभा चुनावों में पराजित हो गई ।
हरिदेव जोशी अब पूर्व मुख्यमंत्री हो गए। कांग्रेस ढाई तीन सालवनवास में रही और जनता पार्टी में हुए बिखराव के बाद 1980 में जब कांग्रेस सत्ता में लौटी तो प्रदेश का ताज श्री संजय गांधीके ख़ास बन चुके श्री जगन्नाथ पहाड़िया के सिर सज गया।
संजय गांधी की एक विमान हादसे में असामयिक मृत्यु हो गई और उसके एक साल बाद जानी मानीकवियत्री श्रीमती महादेवी वर्मा पर श्री पहाड़िया के विवादास्पद बयान के बाद जब वे मुख्यमंत्री पद से हटे तो शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री बन गए।. मगर हरिदेव जोशी हमेशा की तरह अपनी पार्टी और निर्वाचन क्षेत्र मेंलगातार सक्रिय रहें। इस दौरान उनका सपना भी सच हुआ और स्वयं श्रीमती इन्दिरा गांधी माही बांध काउद्घाटन करने के लिए बाँसवाड़ा दौरे पर आई।
दूसरी बार मुख्यमंत्री बने
माही बजाज सागर परियोजना के शुभारम्भ के कुछ समय पश्चात पंजाब में चल रहे आतंकवाद की पृष्ठ भूमिमें श्रीमती इन्दिरा गांधी की उनके ही एक अंग रक्षक ने गोलियों की बोछारें करते हुए हत्या कर दी।
ग़ुस्से और गमगीन माहौल के बीच राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।राजस्थान में उन दिनों शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री थे। वे राजीव गांधी के भी विशवास पात्र बन गए थे. लेकिन 1985 केविधानसभा से पहले भरतपुर के पूर्व महाराजा सात बार विधायक रहें मानसिंह द्वारा मुख्यमंत्री के हेलिकोप्टर को क्षतिग्रस्त किए जाने को लेकर एक पुलिस अधिकारी के पिस्तल की गोली से मानसिंह कीमृत्यु होने की घटना के बाद गर्माए राजनैतिक माहौल में शिव चरण माथुर का इस्तीफा के लिया गया और उदयपुर संभाग के नेता हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक सीएम बनाया गया।
इसके बाद हुए विधानसभा चुनावमें कांग्रेस फिर से चुनाव जीत गई और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को प्रदेश का मुख्यमंत्रीबनाया।
मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी पारी में जोशी जी ने आरम्भ से ही कई नई चुनौतियों की झेला।पंजाब में आतंकवाद के चलते पूर्व लोकसभाध्यक्ष बलराम जाखड़ और राजीव गांधी के गृह मन्त्री बूटा सिंह और राजेश पायलट आदि कई नेताओं को पार्टी हाई कमान ने राजस्थान को सुरक्षित मानते हुएचुनाव लड़वाया।
जोशी ने राजस्थान में आए इन बाहरी नेताओं द्वारा प्रदेश को अपनी राजनीति का चारागाह बनाने का विरोध किया। इस बीच केन्द्रीय मन्त्रीपरिषद में राज्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बन कर आयें।
दुर्भाग्य से बूटासिंह और उनके साथियों का एक ग्रूप जोशी जी का विरोधी होने से वे राजनीतिक मुश्किलोंमें घिरे गए। उन्ही दिनों देवराला सती कांड भी हुआ । पार्टी के विरोधी गुट उनको हटाने की मांग तेज करने लगें। राजीव गांधी की जनवरी 1986 में रणथंभौर और 18-19 दिसंबर, 1987 को हुयी सरिस्का यात्रा में नरेंद्रसिंह भाटी और अन्य दिग्गज विरोधियों के कारण हुई गलतफहमियों से मामला और बिगड़ गया।
राजीव गांधी ने जोशी जी को इस्तीफा देने के लिए कहा और 18 जनवरी, 1988 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह शिवचरण माथुर फिर सीएम बन गए।
राजनैतिक घटनाक्रम ने एक बार फिर से करवट बदली।1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान की पच्चीस में एक भी सीट नही मिली और राजीव गांधीने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक गहलोत और सीएम शिवचरण माथुर के इस्तीफे माँग लिए लेकिन दिक्कत ये थी कि राज्य में चार महीने बाद विधानसभा चुनाव था,ऐसे में राजीव गांधी को हरिदेव जोशीकी जो कि असम में राज्यपाल थे।
जोशी जी नेअपनी वृद्ध माताजी के साथ गुवाहटी से उड़ान भरी तब देश में वी पी सिंह पी एम बन गए थे।कांग्रेस के जो नेता गवर्नर हाउस में थे उन्हें इस्तीफा दे अपने घर लौटना ही था। लेकिन फर्क इतना था कि जोशी जी राज्यपाल का पद छोड़ते ही पुनः राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने वाले थे।
2 दिसंबर, 1989 को जोशी विधायक दल का नेता चुन लिए गए और 3 दिसंबर 1989.को राजस्थान के राजभवन. में जब नए मुख्यमंत्री की शपथ की तैयारी चल रही थी और निर्वाचित मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेने से पहले कांग्रेस के ऑफिस में पहुंच चुके थे। तिलक लगाकर उनका स्वागत किया गया।
निर्वाचित मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी वहां से शपथ के लिए राजभवन भी रवाना हो गए।तभी मुख्य सचिव ने एक एनाउंसमेंट किया- मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह अपरिहार्य कारणों से स्थगित कर दिया गया है।अगले कार्यक्रम की सूचना आपको जल्दी ही दी जाएगी.। राजभवन में बैठे लोग अवाक रह गए।
राज्यपाल ने 3 दिसंबर को जोशी जी को इसलिए शपथ नहीं दिलवाई, क्योंकि तब तक बतौर असम राज्यपाल उनका इस्तीफा महामहिम राष्ट्रपति वेंकटरमण ने मंजूर नहीं किया था। शाम तक इस्तीफा स्वीकृत हुआ और फिर 4 दिसंबर 1989 को हरिदेव जोशी तीसरी बार प्रदेश के सीएम बने।
चार महीने बाद प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव जीत नही पाई और भाजपा के भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बन गए। पाँच साल बाद दिसंबर 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सहित किसी दल को बहुमत नही मिला।
हरिदेव जोशी को त्रिशंकु विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुन लिया गया। लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के कारण इसमें थोड़ा विलम्ब हुआ और इस तकनीकी त्रुटि को पकड़ निवर्तमान मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने राजभवन में राज्यपाल बलिराम भगत के सामने धरना लगा कर हरिदेव जोशीको चौथी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने से रोक दिया।
तब राजीव गांधी की नृशंस हत्या के बाद केन्द्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई थी । इस कश्मकश में कांग्रेस हाई कमान ने हरियाणा से भजनलाल को प्रदेश में सरकार गठन में मदद के लिए जयपुर भेजा। लेकिन कांग्रेस के ही बागी निर्दलियों की मदद से भैरों सिंह शेखावत पुनः मुख्यमंत्री बन गए।
इसके एक बरस बाद मुंबई के एक अस्पताल में ब्रेन हैमरेज से 28 मार्च 1995 को 74 वर्ष की उम्र में हरिदेवजोशी का निधन हो गया।
मन में रहा अधूरे सपनों का मलाल
हरिदेव जोशी के मन में सबसे बड़ा मलाल अपने पुत्र दिनेश जोशी को एक भी बार विधायक नही बना पाना रहा। हालाँकि उन्होंने उन्हें मंत्री दर्जा प्राप्त राजस्थान स्वायत्त संस्था संघ का अध्यक्ष बनाया था। दिनेश जोशी बाँसवाड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष भी रहे ।
उनके लिए दूसरा बड़ा दुःख अपने जीते जी बाँसवाड़ाको रेल लाइन से नही जोड़ पाना रहा। जोशी जी बताते थे कि यदि तत्कालीन रेल मंत्री जगन्नाथ मिश्रा की एक दुर्घटना में मृत्यु नही होती तो बाँसवाड़ा के बहुत वर्ष पहले ही रेल की सिटी सुनने में कामयाब हो जाते।
जोशी जी का यह सपना आज भी अधूरा है। पिछले सालों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने श्रीमती सोनियागांधी के हाथों डूंगरपुर -बाँसवाड़ा और रतलाम रेल लाइन का शिलान्यास करवाया था। लेकिन यह योजना भीकेन्द्र और राज्य के झगड़ें में उलझ गई।
अपने जीवन के उत्तरार्ध में जोशी जी राजनीति में आ रही गिरावट और अपने ही लोगों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने से बहुत दुःखी हुए। राज्यपाल बना कर उन्हें जब अपनी जन्म भूमि और प्रदेश से बहुत दूर असम भेज दिया गया तो चट्टान जैसे मजबूत इरादों वाले इस लोह पुरुष का दर्द कई बार उनके उद्ग़ारो और नम आखों मेंझलक आता था। लोगों ने जोशी जी इतना भावुक इससे पहले कभी नहीं देखा।
जोशी जी के मन में बाँसवाड़ा के पास परमाणु बिजलीघर की स्थापना , गैस पाइप लाइन, माही परियोजना के अधूरे काम और अन्य कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएँ शुरू करवाना था।
वे कहते थे कि मेरा मोक्ष अपने लोगोंकी सेवा करते हुए मर जाने में ही है और अन्तिम समय तक माँ त्रिपुरा सुन्दरी और माही का यह पुत्र लोगों कीसेवा करते हुए अनन्त यात्रा के लिए चला गया। हाँ उनकी पुण्य आत्मा को यह मलाल ज़रूर रहा होगा कि क्योंकर उनके देहान्त के बाद हुए उप चुनाव में उनके पुत्र और राजनैतिक उत्तराधिकारी दिनेश जोशी को जिताने के लिए क्षेत्र की जनता ने वह कृतज्ञता नहीं दर्शायी जिसके वे हक़दार थे।
परिवार के बापा …
दिवंगत हरिदेव जोशी को परिवार के सदस्य ‘बापा’के सम्बोधन से पुकारते थे। जोशी की सबसे बड़ी पोती प्रीति उनकी बहुत लाड़ली थी। उस पर उन्हें बहुत विश्वास था और घर का प्रबंधन एवं मेहमानों का देखभाल की ज़िम्मेदारी में वह पूरी गम्भीरता के साथ हाथ बटाती थी। जोशी जी के खानपान और दवाइयों आदि का ख्याल भी रखती थी। प्रीति बताती है कि बापा से हम सभी ने जीवन में अनुशासन का पाठ सिखा।
वे बताती है कि बापा को अपने अति व्यस्त जीवन में भी परिवार के सभी सदस्यों विशेष कर बच्चों की बहुत फ़िक्र रहती थी। वे जीवन की ऊचाइयों तक पहुँचे लेकिन रसोई की चौखट पर बैठ कर परदादी के हाथ से बना खाना खाना उन्हें बहुत प्रसन्न था।मेरी शादी और अन्य भाई बहनों की शादी के लिए योग्य वर ढूँढने का काम भी बापा स्वयं करते थे।
उल्लेखनीय है कि विश्वास मेहता के साथ प्रीति की शादी की ज़िम्मेदारी उन्होंने बाँसवाड़ा के तत्कालीन पीआरओ और विश्वास मेहता के फूफेरे भाई गोपेंद्र भट्ट को सौंपी थी।विश्वास आज केरल के मुख्य सचिव है।
जब वे पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तो शपथ ग्रहण के पहली रात घर के सभी सदस्यों को अपने कमरें में एकत्रित कर सभी को शपथ दिलवाई कि वे कोई ऐसा काम नहीं करेंगे कि उनकी प्रतिष्ठा और परिवार की साख पर कोई आँच आयें।
प्रीति बताती है कि परिवार ने उनके इस वचन को निभा कर उन्हें गौरवान्वित किया।
ऐसे थे वागड़ के भगीरथ और जन सेवा को समर्पित जन प्रतिनिधि हरिदेव जोशी, जिन्होंने राजस्थान की ज़मीन पर विकास के जीवंत चित्र उकेर कर उसे सँवारा, समृद्ध बनाया।
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