हल्दीघाटी

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 ई को लड़ा गया था 

हल्दीघाटीगोपेन्द्र नाथ भट्ट ==== हल्दीघाटी महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह अकबर की सेना के बीच हुए युद्ध के लिए इतिहास में  प्रसिद्ध है । अरावली पर्वत शृंखला में खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य हल्दीघाटी दर्रा है । यह राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है।

इसका नाम ‘हल्दीघाटी’ इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। यह दक्षिणी राजस्थान में एकलिंगजी मंदिर से 18 किलोमीटर और उदयपुर से 40 किमी की दूरी पर है ।

हल्दीघाटी का ऐतिहासिक  युद्ध मुग़ल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध  विनाशकारी तो था ही लेकिन इसे महाराणा प्रताप द्वारा मुगलों  की गुलामी स्वीकार नहीं करने की दृढ़ प्रतिज्ञा  और भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार के रूप में देखा जाता है ।

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई को खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य तंग पहाड़ी दर्रे से आरम्भ होकर खमनोर गांव के किनारे बनास नदी के निकट मोलेला गाँव तक कुछ घंटों तक चला था। युद्ध में निर्णायक विजय किसी को भी हासिल नहीं हो सकी थी। इस युद्ध मे महाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा का सहयोग रहा । इसी युद्ध में महाराणा प्रताप के सहयोगी झालामान, हकीम खान सूर, सहित कई सैनिक शहीद हुए। उनका प्रसिद्ध घोड़ा चेतक भी मारा गया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की रणनीति छापामार लड़ाई की रही थी।

ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद, राणा प्रताप मुगलों पर हमला करते रहे, जिसे गुरिल्ला युद्ध की तकनीक कहा जाता है। वह पहाड़ियों में रहे और वहाँ से मुगल सेनाओं को उनके शिविरों में परेशान करते रहे। उन्होंने यह निश्चय किया था कि मेवाड़ में मुगलों और उनके सैनिकों को न कभी पैर जमाने देंगे, न शांति से रहने देंगे।

प्रताप को पहाड़ों में उनके ठिकानों से बाहर निकालने के लिए अकबर की सेना ने तीन अभियान और चलाए, लेकिन वे सभी विफल रहे। उसी दौरान, राणा प्रताप को भामाशाह से वित्तीय सहायता मिली। भील आदिवासियों ने जंगलों में रहने के लिए अपनी विशेषज्ञता के साथ प्रताप को सहायता प्रदान की। युद्ध की अभिनव रणनीति से मेवाड़ के कई क्षेत्रों को प्रताप ने मुग़ल सेना से मुक्त करा लिया।

महाराणा प्रताप ने आखिरी समय तक अकबर से सन्धि की बात स्वीकार नहीं की और आत्म गौरव और स्वाभिमान के साथ जीवन व्यतीत करते हुए और आखिर में दीवेर युद्ध में मुगलों को हरा कर  कब्जा की गई भूमि को पुनः अपने अधिकार में लिया।

साल बीतते गए और 1597 में प्रताप की एक शिकार के दौरान हुई दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही महाराणा हारे। मुग़लों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू और समर्पित सैनिकों की ताकत थी।

हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास में राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा का प्रतीक है।