नई दिल्ली, 26 फरवरी (जनसमा)। लोकसभा में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2015-16 के आर्थिक सर्वे को पेश करते हुए कहा कि इस वर्ष आर्थिक समीक्षा ऐसे समय में आ रही है जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक माहौल में असामान्य रूप से खलबली मची हुई है। निराश से भरी इस पृष्ठभूमि में भारत आज स्थिरता और अवसरों की आश्रय स्थली दिखाई देरही है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत का आर्थिक विकास विश्व की उच्चतम विकास दर वाले देशों में शामिल है। अब हमारे सामने यह काम है कि अनुकूल स्थितियों को मौजूदा अधिक कठिन वैश्विक माहौल में बनाए रखना है।
सर्वे में कहा गया है कि देश की यह उपलब्धि कई तरह के सुधारों के क्रियान्वयन के कारण हुआ है। ऐसी स्पष्ट भावना देखने में आ रही है कि केन्द्र के स्तर पर भ्रष्टाचार को ठीक से काबू करने के कारण सार्वजनिक संपत्तियों की नीलामी में पारदर्शिता आई है।
व्यापार करने की लागत को आसान बनाया गया है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी सभी स्तरों पर उदारीकृत बनाया गया है। कर निर्णय के मामले में स्थिरता और संभावना को बनाए रखा गया है। इसकी झलक विदेशीकंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) के समझौतों में मिलती है।
देश के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ बनाने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक निवेश किया गया है।
कृषि क्षेत्र में बड़े स्तर पर फसल बीमा योजना कार्यक्रम लाया गया है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत करोड़ लोगों के बैंक खाते खोले जाने पर भी आर्थिक सर्वे में प्रकाश डाला गया है।
एलपीजी और सरकारी कार्यक्रमों और रियायत के बारे में दुनिया में सबसे अधिक सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने का जिक्र भी इस सर्वे में किया गया है।
सर्वे में बताया गया है कि 1510 लाख लाभपात्रों ने इस योजना के तहत 29,000 करोड़ रुपए का लाभ दिया गया। अन्य सरकारी कार्यक्रमों और रियायत के लिए जन धन आधार मोबाइल (जेएएम) के लिए बुनियादी संरचना बनाई जा रही है।
सर्वे में जीएसटी बिल पर चिंता जताई गई है।
विनिवेश कार्यक्रम का लक्ष्य घट रहा है और अगले चरण के सब्सिडी को युक्तिंगत बनाने का काम प्रगति पर है। निजी क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में कारपोरेट और बैंकों की बैलेंसशीट तनाव पैदा कर रही है।
आगे कहा गया है कि यह चिंता शायद इस बात की ओर इशारा करती है कि भारतीय अर्थ व्यवस्था अपनी पूरी संभावनाओं को साकार नहीं कर पा रही है।
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि यह बात निश्चित है कि भारत में अपार संभावनाएं हैं। देश की दीर्घकालिक संभावित विकास दर अभी भी लगभग 8-10 प्रतिशत है। इस संभावना को साकार करने के लिए कम से कम तीन मोर्चों पर प्रयास करने की जरूरत है।
साथ ही इस बात का भी जिक्र किया गया है कि आगामी बजट आर्थिक नीति को मोटे तौर पर असामान्य रूप से चुनौतीपूर्ण ओर कमजोर विदेशी माहौल का सामना करना होगा।
इसमे सुझाव दिया गया हे कि एशिया में चीन के मुद्रा समायोजन करने की दशा में भारत को भी इसकी योजना जरूर बनाना होगा।
सर्वे में कहा गया है विदेशी मांग के कमजोर रहने की आशंका है।
इसके लिए घरेलू मांग के स्रोत को बढ़ाना होगा और कमजोरी को रोकने के लिए इसे सक्रिय करना होगा।
केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा हालिया जारी सकल घरेलू उत्पाद के अग्रिम अनुमानों में स्थिर बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2014-15 में 7.2 प्रतिशत से 2015-16 में बढ़कर 7.6 प्रतिशत होने का अनुमान है। इसका मुख्य कारण निजी अंतिम उपभोग व्यय की गति का तेज होना है। इसी प्रकार जोड़े गए सकल घरेलू उत्पाद (जीवीए) की वृद्धि दर 2014-15 में 7.1 की तुलना में 2015-16 में 7.3 प्रतिशत होने का अनुमान है। घरेलू लेखा घाटे में कमी आई है और यह सुखद स्थिति में है।
विदेशी मुद्रा भंडार फरवरी 2016 के शुरू में 351.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
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