नई दिल्ली, 11 अक्टूबर | त्रिपुरा के एक छोटे से गांव से ओलंपिक के फाइनल तक का सफर तय करने वाली भारतीय जिमनास्ट दीपा करमाकर करोड़ों हिंदुस्तानियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं। गरीबी के बीच संघर्ष करते हुए दीपा ने अपनी मेहनत से हर उस एक खिलाड़ी के मन में अलख जगा दी है जो जिमनास्टिक में कुछ करना चाहते हैं। दीपा कहती हैं कि अब लोग जिमनास्टिक को गंभीरता से लेने लगे हैं और अब इसे सर्कस से जोड़कर देखना बंद कर दिया गया है।
रियो ओलंपिक में 52 साल बाद कोई भारतीय जिमनास्ट के फाइनल तक पहुंचने में सफल रहा। हालांकि, दीपा कोई पदक नहीं जीत पाई, लेकिन 23 साल की इस लड़की की मेहनत को भरपूर सराहा गया। दीपा ने एक कार्यक्रम से इतर आईएएनएस के साथ बातचीत में अपने संघर्ष की कहानी बयां की।
दीपा ने आईएएनएस को बताया, “मैं जिस जगह से आई हूं वहां संसाधनों की कमी है। शुरुआत में जिमनास्टिक को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। हर जगह से तरह-तरह की बातें सुनने को मिलती थी, लेकिन मन में एक जुनून था कि आलोचकों को सफलता से ही चुप कराया जा सकता है।”
यह पूछने पर कि इस उपलब्धि के बाद उनके जीवन में क्या बदलाव आया है। इसके जवाब में वह कहती हैं, “बदलाव तो आया है, लेकिन मेरी दिनचर्या नहीं बदली है। अच्छा लगता है कि मेरी वजह से लोग जिमनास्टिक को गंभीरता से लेने लगे हैं। अब एक सेलीब्रेटी के तौर पर प्यार मिलने लगा है, लेकिन मेरा ध्यान पूरी तरह से करियर पर है और मैं अब भी कड़ी मेहनत कर रही हूं।”
दीपा आगे कहती हैं, “मेरे कोच बिशेश्वर नंदी के पास जिमनास्टिक की ट्रेनिंग लेने काफी बच्चे आ रहे हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या सबसे अधिक है। यह सब देखकर लगता है कि कोई मुझसे भी प्रेरणा ले रहा है।”
दीपा अपने करियर की सफलता और उपलब्धि का हर श्रेय अपने कोच बिशेश्वर नंदी को देती हैं। उनकी दिनचर्या, प्रशिक्षण का समय और हर कार्यक्रम उनके कोच ही तैयार करते हैं। यह पूछने पर कि क्या वह अपनी पेशेवर जिंदगी में हर काम अपने कोच के दिशानिदेर्शो के अनुरूप करती हैं? इस पर दीपा कहती हैं, “मैं आज जिस पड़ाव पर हूं उसका श्रेय सिर्फ मेरे कोच नंदी सर को जाता है। वह मेरे सभी कार्यक्रम तैयार करते हैं। अगर मैं कभी उनकी बात नहीं मानती हूं तो मुझे डांट भी खूब पड़ती है जो मुझे अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करती है। वह मेरे द्रोणाचार्य हैं।”
दीपा ने आईएएनएस को बताया, “खेलों में अनुशासन बहुत जरूरी है। मैं चाहती हूं कि लोग जिमनास्ट को गंभीरता से लें। एक दिन ऐसा भी होगा जब हमारे देश में जिमनास्टिक में भी कई खिलाड़ी पदक लेंगे।”
यह पूछने कि ओलम्पिक के फाइनल तक पहुंचने पर वह कुछ अंकों से पदक से चूक गई। कहां कमी रह गई? इसका जवाब देते हुए दीपा कहती है, “ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करना ही बहुत मुश्किल है। जिमनास्टिक में एक.एक अंक से हार का सामना करना पड़ता है। मैंने अपना 100 फीसदी दिया, लेकिन कभी-कभी सब कुछ हमारे हाथ में नहीं होता, मेरे नसीब में जो लिखा था वही हुआ।”
टोक्यो ओलंपिक को लेकर वह क्या तैयारियां कर रही हैं? इसका उत्तर देते हुए दीपा कहती हैं, “मैं अभी फिटनेस पर ध्यान दे रही हूं। हालांकि, मैंने अभी प्रैक्टिस शुरू नहीं की है। मैं दुर्गा पूजा के बाद ही प्रैक्टिस शुरू करूंगी क्योंकि हम बंगालियों में दुर्गा पूजा अहम होती है।”
दीपा ने जीवन में काफी संघर्ष किया है। इंटरनेट पर उनके शुरुआती जीवन के बारे में तमाम तरह की बातें लिखी जा रही हैं कि वह गरीबी के बीच संसाधनों की कमी से जूझते हुए इस मुकाम तक पहुंची हैं, लेकिन दीपा का जवाब एक उम्मीद जगाता है।
वह कहती हैं, “हां, मेरी अब तक की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही है, लेकिन इससे मेरा हौसला ही बढ़ा है। चुनौत्तियां और समस्याएं हमें मजबूत बनाती हैं। मैं किस दौर से गुजरते हुए यहां तक पहुंची, उसके बारे में अब नहीं सोचती। अभी काफी दूर जाना है।”
दीपा ने 31वें ओलम्पिक खेलों में वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में चौथे स्थान पर रहीं थी। वह महज कुछ अंकों के साथ कांस्य पदक से चूक गईं थी लेकिन इसके बावजूद वह इतिहास रच गईं। दीपा ने पहले प्रयास में 8.666 और दूसरे प्रयास में 8.266 अंक हासिल किए थे।
रीतू तोमर===
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