जननेता अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस 25 दिसंबर पर विशेष स्मरण:
युगपुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधान मंत्री के रूप में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, 2000 को दिल्ली में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था –
“वह वक्त गया, वह दौर गया,जब दो कौमों का नारा था,
वे लोग गए इस धरती से, जिनका मकसद बंटवारा था।”
आईये उनके जन्म दिन पर आज हम उनके उस संबोधन को पढ़ें और विचार करें कि हम इस संदर्भ में कितने आगे बढ़े हैं।
अटल जी के संबोधन का मूल पाठ : “आज़ादी की सालगिरह पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। आप जहां कहीं भी हैं, फिर वह हिमालय की चोटी हो या हिंद महासागर का किनारा, राजस्थान का तपता बालू हो या पूर्वांचल के हरे-भरे जंगल, मेरी बधाई आप सब तक पहुंचे। आज रक्षा बंधन का भी त्यौहार हैं स्नेह की शक्ति एक साधारण कच्चे धागे को भी अटूट रिश्ते में बदल देती है। इस मौके पर हम सभी देशवासियों को, विशेषकर बहनों को शुभकामनाएं देते हैं।
नई शताब्दी का पहला स्वतंत्रता दिवस
इस वर्ष का 15 अगस्त नई शताब्दी का पहला स्वतंत्रता दिवस है। बीती सदी पर एक नजर डालकर हमें नई सदी की चुनौतियों को अवसर में बदलना है। हमें इस आज़ादी को अमर बनाना है। देश की रक्षा के संकल्प को आज दोहराना है। आज पुण्य स्मरण का दिन है। आत्म-निरीक्षण का अवसर है। हम सभी ज्ञात और अज्ञात शहीदों को अपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हैं। उनकी शहादत की याद हमारे हृदय में हमेशा जीवित रहेगी। उनका बलिदान हमें सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
आज के दिन हम महात्मा गांधीजी को विशेष रूप से याद करते हैं। वे स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अग्रणी नेता तो थे ही, बीसवीं सदी के महानतम व्यक्तियों में से भी एक थे।
आज के पावन दिन पर हम विश्व के सभी देशों के लोगों को अपनी शुभेच्छा भेजते हैं। हम कामना करते हैं कि इक्कीसवीं शताब्दी पूरे विश्व में शांति, बंधुत्व, सहकार तथा उत्तरोत्तर प्रगति की सदी का संदेश लेकर आए। आज हम विदेशों में रह रहे लाखों भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं। जहां कहीं भी वे रह रहे हैं, वे भावनात्मक रूप से भारत से जुड़े हैं। हम उनकी सफलता और खुशहाली की कामना करते हैं।
नए राज्यों की रचना
आज उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के राज्यों के पुनर्गठन के पश्चात् भारत के नक्शे पर तीन जो नए राज्य उभरे हैं, उनके निवासियों को भी मैं बधाई देता हूं। हमे विश्वास है कि छत्तीसगढ़, उत्तरांचल तथा झारखण्ड के नए राज्य शीघ्र ही भारत संघ में अपना समुचित स्थान प्राप्त कर लेंगे। हम इन राज्यों के निर्माण के अपने वायदे को पूरा करने में सफल हुए हैं। हमें इन राज्यों के निर्माण, निर्माण के साथ विकास के लिए मिलकर काम करना है जिससे वे सफलता के उदाहरण बन सकें।
युवकों की शताब्दी
नई शताब्दी युवकों की शताब्दी है। हजारों साल से चला आ रहा भारत आज युवा राष्ट्र बन गया है। हमारी कुल आबादी में लगभग सत्तर प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनकी आयु पैंतीस वर्ष से कम है। ये युवक और युवतियां पहले की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वाकांक्षी, जागरूक और सक्रिय हैं। वे न केवल बड़ी-बड़ी कल्पनाएं ही करते हैं बल्कि उन्हें साकार करने के लिए जी-तोड़ मेहनत भी करते हैं। भारत की युवा पीढ़ी में मुझे पूरा विश्वास है। हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपने युवक-युवतियों की पूरी-पूरी सहायता करें, ताकि वे अपना भविष्य बनाने के साथ-साथ, देश का भविष्य भी बना सकें।
कारगिल विजय
पिछले वर्ष जब मैंने लाल किले की इसी प्राचीर से आपको संबोधित किया था तो उस समय देश में एक असामान्य परिस्थिति थी। लोकसभा भंग कर दी गई थी और नए संसदीय चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। ऐसी परिस्थिति में कारगिल में आक्रमण का सामना करना पड़ा। भारत उसमें विजयी हुआ। एक साल बाद देश में जनतंत्र और मजबूत हो गया है। भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ी है। दुनिया की राजधानियों में अब हमारी बात गौर से सुनी जाती है। भारत आगे बढ़ रहा है। आत्म-विश्वास से भरा भारत प्रगति की ओर अग्रसर है। एक ऐसा भारत जो सभी तरह की विषम परिस्थितियों में उसी तरह विजयी होने के लिए कृतसंकल्प है, जिस तरह से हमारे बहादुर जवानों तथा वायु सैनिकों ने दुश्मन की फौज को खदेड़ दिया था। कारगिल युद्ध तथा उससे पहले की सभी लड़ाइयों के वीर सेनानियों के प्रति हमारे हृदय में जो कृतज्ञता का भाव है, वह सदा प्रज्ज्वलित रहेगा।
कश्मीर – भारत का एक अटूट अंग
पाकिस्तान की भयंकर भूल होगी यदि वह इस भ्रम में रहे कि वर्तमान अघोषित युद्ध के द्वारा वह कुछ भी हासिल कर सकता है। कश्मीर भारत का अटूट अंग है और रहेगा। हमारे पड़ोसी को यह समझ लेना चाहिए कि वक्त की घड़ी को पीछे घुमाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान के शासकों और अवाम को भी मैं हमारे एक विख्यात शायर साहिर लुधियानवी की पंक्तियों पर गौर करने की सलाह देना चाहता हूँः
पंक्तियां इस प्रकार हैं:-
वह वक्त गया, वह दौर गया, जब दो कौमों का नारा था,
वे लोग गए इस धरती से जिनका मकसद बंटवारा था।
अब एक हैं सब हिन्दुस्तानी, अब एक हैं सब हिन्दुस्तानी,
यह जान ले सारा हिन्दुस्तान यह जान ले सारा जहान।
यह जान ले सारा जहान।
इक्कीसवीं सदी हमें इस बात की इजाज़त नहीं देती कि मज़हब के नाम पर या तलवार के जोर पर देश की सीमाएं बदली जाएं। यह विवादों को सुलझाने का युग है, न कि झगड़ों को लम्बे समय तक उलझाए रखने का। जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख की जनता खून-ख़राबे से तंग आ गई है। वह अमन चाहती है। जम्मू-कश्मीर के घायल जिस्म पर भाईचारे का मरहम लगाने की जरूरत है। इसीलिए हाल ही में मैंने कहा था कि भारत इंसानियत के दायरे में कश्मीर के दर्द की दवा करना चाहता है। दुनिया ने देखा है कि हाल में कश्मीर में लड़ाई बंद करने और शांति की प्रक्रिया शुरू करने में किसकी ओर से अड़चन हुई। किसने इन प्रयासों में सुरंग लगाई।
पाकिस्तान को चेतावनी
पाकिस्तान एक ओर तो बातचीत में भाग लेने के लिए उत्सुकता दिखाता है। दूसरी ओर वह हिंसा, हत्या व सीमापार आतंकवाद में लगातार लगा हुआ है। आतंकवादियों की गतिविधियों और शांति वार्ता के प्रस्ताव साथ-साथ नहीं चल सकते। हिंसा, आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगाववाद से निपटने के लिए भारत की इच्छा-शक्ति अथवा सामथ्र्य को कम नहीं आंका जाना चाहिए।
हमें एक महान भारत का निर्माण करना है। विश्व में कोई ऐसा प्राचीन देश नहीं है जिसका इतना बड़ा आकार हो, इतनी बड़ी आबादी हो तथा विविधता से इतना परिपूर्ण हो और अपने लोकतंत्र, अपनी एकता एवं संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए एक खुशहाल और आधुनिक राष्ट्र के रूप में उभर रहा हो। हमने इस दिशा में सफलता भी प्राप्त की है। इस सफलता में समाज के सभी वर्गों का योगदान शामिल है।
सुरक्षा और विकास
इस समय भारत को दो बड़े उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहना है। ये हैं सुरक्षा और विकास। ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। सुरक्षा के बिना विकास असंभव है और विकास के बिना सुरक्षा अधूरी है।
अब हमें आर्थिक चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना है। हमें विकास की प्रक्रिया को अधिक तीव्र और व्यापक बनाना है ताकि भारत माता की कोई भी संतान भूखी न रहे, बेघर न रहे, बेरोजगार न रहे, बे दवा न रहे। हमें क्षेत्रीय तथा सामाजिक असंतुलनों को दूर करना है। हमें दलित, अनुसूचित जन-जाति, पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यक बंधुओं को विकास की यात्रा में भागीदार बनाना है। इसलिए आइए हम सब मिलकर यह संकल्प करें कि इस दशक को हम विकास का दशक बनाएंगे।
इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमने निश्चय किया है कि हम अगले दस वर्षों में भारत की प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करेंगे।
इस महत्त्वाकांक्षी संकल्प को साकार करने के लिए हमें अपनी अर्थव्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण सुधार लाने होंगे। साथ ही साथ प्रशासन, न्यायपालिका, शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों में भी आवश्यक सुधार करने होंगे।
सुधार प्रक्रिया
सुधार समय की मांग है। उदाहरण के तौर पर पिछले पचास वर्षों में दुनिया भी बदली है और देश भी बदला है। विश्व भर में दूरगामी राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। परिवर्तन की अनिवार्यता को प्रगति की दिशा में मोड़ने का ही अर्थ है सुधार। आर्थिक सुधार का अर्थ है सबके जीवन में सुधार।
उदाहरण के तौर पर बिजली क्षेत्र में केन्द्र और कई राज्यों द्वारा चलाए जाने वाले सुधारों से विद्युत बोर्डों का घाटा कम होगा, बिजली की चोरी रोकी जाएगी तथा उद्योग और रोजगार बढ़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध की जा सकेगी।
इसी तरह दूरसंचार के क्षेत्र में हम जो सुधार ला रहे हैं इससे देश के सभी भागों में सस्ते से सस्ते दाम में टेलीफोन, मोबाइल फोन तथा इंटरनेट की सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी। आर्थिक सुधारों को लेकर न किसी के मन में गलतफहमी होनी चाहिए और न कोई डर। मुझे याद है कि हरित क्रांति के समय में भी कुछ लोगों ने ऐसे ही डर व्यक्त किये थे जो बाद में बेबुनियाद साबित हुए। हमारी आर्थिक सुधार की परिकल्पना अपनी परिकल्पना है। आप जानते हैं कि लगभग सभी राजनीतिक दल समय-समय पर केन्द्र तथा अलग-अलग राज्यों में और अलग-अलग प्रकार से, इस सुधार प्रक्रिया को अपनाते आ रहे हैं।
मैं किसानों, मजदूरों, अन्य उत्पादकों और उद्योगपतियों के अलावा देश के तमाम बुद्धिजीवियों से भी यह आग्रह करता हूँ कि आर्थिक सुधारों के प्रति आम सहमति को बनाने में योगदान दें।
इस संदर्भ में, मैं देश के सभी केन्द्रीय मजदूर संगठनों की विशेष रूप से सराहना करता हूँ। जब तीन दिन पहले मैं उनके नेताओं से मिला तो अत्यन्त रचनात्मक माहौल में हमारी बातचीत हुई। उन्होंने अपनी घोषित देश-व्यापी हड़ताल को वापस ले लिया। आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में मजदूरों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
आर्थिक और सामाजिक विकास की गति को तीव्र करने और अधिक से अधिक लोगों तक इसका लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार इस वर्ष कई बड़े और महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है।
राश्ट्रीय कृषि नीति
मैं भारत के किसानों को बधाई देना चाहता हूँ कि उन्होंने हमारी जनसंख्या में भारी वृद्धि होने के बावजूद देश में अन्न की कमी नहीं होने दी है। आज हमारे देश में अन्न की कमी नहीं है बल्कि उसे सुरक्षित रखने के लिए भण्डारों की कमी है।
हमने आज़ादी के बाद पहली बार एक राष्ट्रीय नीति बनाई है। इस नीति का मूल उद्देश्य हर साल चार प्रतिशत की दर से कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी हासिल करना है। कृषि क्षेत्र में गिरते हुए पूँजी निवेश को रोकने तथा उसे बढ़ाने हेतु ठोस कदम उठाए जाएंगे।
ग्रामीण सड़क सम्पर्क
पहली बार केन्द्र सरकार ने ग्रामीण सड़कें बनाने का एक सुनिश्चित और समयबद्ध कार्यक्रम तैयार किया है। शत-प्रतिशत केन्द्रीय अनुदान द्वारा ‘‘प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना’’ के अंतर्गत अगले तीन सालों के अन्दर एक हजार से ज्यादा आबादी के सभी गांवों को पक्की बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाएगा। इसी तरह अगले सात सालों में पांच सौ से ज्यादा आबादी के सभी गांवों को पक्की बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाएगा। इस परियोजना के केन्द्र सरकार पहले वर्ष के लिए पांच हजार करोड़ रुपये का प्रावधान करेगी। इसका शुभारंभ गांधी जयंती के अवसर पर किया जाएगा।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना एक महत्वाकांक्षी कदम है। दिल्ली-मुंबई-कलकत्ता-चेन्नई को जोड़ने वाले महामार्गों का सन् 2003 से पहले एक चतुर्भुज सा दृश्य देखने को मिलेगा। इसको पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर-दक्षिण के महामार्ग से जोड़ने का काम सन् 2007 तक संपन्न हो जायेगा।
खादी ग्रामोद्योग, कुटीर उद्योग और छोटे उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। हम चाहते हैं कि इन क्षेत्रों को भी आर्थिक सुधारों का लाभ मिले। इसी माह 30 तारीख को छोटे और कुटीर उद्योगों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें सरकार के अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा की जाएगी।
सूचना प्रौद्योगिकी
थोड़े से समय में ही भारत सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक जबरदस्त ताकत के रूप में उभरा है। केवल साॅफ्टवेयर निर्यात के माध्यम से ही भारतवर्ष की आय वर्ष 2008 तक बढ़कर दो लाख करोड़ से अधिक हो सकती है। इससे लाखों सुशिक्षित लोगों को भारत के अन्दर और विदेश में भी आकर्षक रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकेंगे।
इन्फोर्मेशन टेक्नोलाॅजी का लाभ आम जनता तक पहुंचे इस उद्देश्य से सरकार ने पिछले दो सालों में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं तथा आगे और भी लेने वाली है। मैं चाहता हूं कि कम्प्यूटर और इन्टरनेट की सुविधा कम से कम समय में हरेक स्कूल और हरेक गांव तक पहुंच जाए।
स्वास्थ्य और शिक्षा
हम देश में सभी ग्रामीण बस्तियों में अगले चार वर्षों में स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने के लिए कृत संकल्प हैं। इस वर्ष इस क्षेत्र के लिए लगभग दो हजार करोड़ रुपये का आवंटन बढ़ाकर इस कार्यक्रम पर ज्यादा जोर दिया गया है।
इस साल के अंत तक सरकार एक समग्र स्वास्थ्य नीति बनाएगी जिसका लक्ष्य होगा ‘‘सभी के लिए स्वास्थ्य’’। इसके अन्तर्गत प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाओं को हर नागरिक को उपलब्ध कराया जाएगा। आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी को समुचित स्थान दिया जाएगा।
हाल के वर्षों में तेजी से फैल रहा एचआईवी/एड्स हमारे देश के सामने एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। मैं समाज के सभी वर्गों से आग्रह करता हूं कि वे इस महामारी के बारे में जन-जागरूकता लाने के कार्य में पूरी तरह से हिस्सा लें और इस बीमारी की रोकथाम के लिए अपने व्यवहार में आवश्यक बदलाव भी लाएं। भारत के भविष्य निर्माण में सबसे बहुमूल्य पूंजी, जिसका निवेश हम कर सकते हैं, वह है बच्चों की शिक्षा।
हमने यह निश्चय किया है कि सन् 2010 तक आठवीं कक्षा तक सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा मिले। हमने इसके लिए सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया है। काॅलेज स्तर तक लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसका लाभ सभी गरीब परिवारों को उठाना चाहिए।
विज्ञान और टेक्नोलाॅजी आर्थिक विकास के प्रमुख इंजन बन गए हैं। आर्थिक विकास के हरेक वाहन को इस इंजन से हमें जोड़ना होगा। इसके लिए उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच के फासले को दूर करने के लिए सरकार ठोस योजना बना रही है।
एक उज्ज्वल भविष्य भारत के द्वार पर दस्तक दे रहा है। लेकिन हम इस भविष्य को उतना ही हासिल कर पायेंगे जितनी मात्रा में हम अपनी राष्ट्रीय एकता, पंथनिरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव तथा अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली को और सुदृढ़ करने में सक्षम होंगे।
भारत की अनेकता में एकता
भारत विविधताओं वाला देश है। यहां भौगोलिक विविधताएं, भाषा और बोली की विविधताएं, रीति-रिवाज और परम्पराओं की विविधताएं तथा धार्मिक विविधताएं विपुल मात्रा में हैं। इन विविधताओं के बावजूद और शायद इन्हीं के कारण भारत हमेशा से एक रहा है।
हम एक में अनेक हैं, और अनेक में भी एक हैं। पूरा विश्व इस बात पर आश्चर्य करता है कि भारत ने केवल आज, बल्कि पिछली कई सहस्त्राब्दियों से इस जादू को बरकरार रखने में सफल रहा है। दुनिया के लिए तो यह जादू हो सकता है पर हिन्दुस्तानियों के लिए यही जीवन है।
धार्मिक असहिष्णुता तथा घृणा का भारत की उदार संस्कृति में कोई स्थान नहीं है। मेरी सभी पंथ तथा जाति के लोगों से अपेक्षा है कि हम कल्पना के शत्रु खड़े न करें और अपनी तलवार से ही स्वयं को घाव पहुंचाने का रास्ता न अपनाएं।
हाल ही में कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं ने कुछ स्थानों पर साम्प्रदायिक शांति और सद्भाव के माहौल को बिगाड़ दिया है। सरकार किसी ऐसे संगठन की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगी जो साम्प्रदायिक विद्वेष की भावना फैलाते हों अथवा हिंसा में शामिल हों।
सामाजिक न्याय और समरसता
जैसा डाॅ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा है, सामाजिक न्याय के बिना स्वतंत्रता अधूरी होती है। नई सदी में भारत को अधिक सामाजिक न्याय की जरूरत है। परन्तु ऐसे सामाजिक न्याय की जरूरत है जिसमें सामाजिक समरसता हो।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के आरक्षण सामाजिक न्याय की गारंटी देने वाला एक प्रमुख तत्व है। आरक्षण में बैकलाॅग की समस्या काफी दिनों से थी। हाल ही में हमने संविधान में संशोधन करके इस समस्या को हल किया है।
महिलाएं हमारी संस्कृति और हमारी सामाजिक प्रणाली की मुख्य आधार हैं। भारत के भविष्य का हमारा सपना तभी साकार हो सकता है जब महिलाओं को शिक्षित किया जाए, आर्थिक दृष्टि से उनका विकास किया जाए, उन्हें राजनीतिक दृष्टि से
अधिकार संपन्न बनाया जाए तथा समाज में उन्हें बड़ी भूमिका निभाने के अवसर दिए जाएं। संसद और विधान मण्डलों में महिलाओं को आरक्षण देने का हमने वादा किया है। इस क्रांतिकारी आशय को अमल में लाने के लिए आम राय बनाने के प्रयत्न में तेजी लानी होगी। ग्राम पंचायतों और नगरपालिकाओं में आरक्षित स्थानों पर चुनकर आई अनेक महिला सदस्यों और अध्यक्षों से मिलने का मुझे अवसर मिला है। उन्होंने अपने कार्य-निष्पादन से यह साबित कर दिया है कि वे जनतांत्रिक प्रक्रिया और प्रशासन में पुरुषों से किसी भी तरह कम नहीं हैं।
उत्तर-पूर्व क्षेत्र का विकास
उत्तर-पूर्व के राज्य राष्ट्रीय जीवन और भारत के विकास में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन राज्यों की विकास योजनाओं के कार्यान्वयन में कई बाधाएं रही हैं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए तथा विकास की गति को तेज करने के लिए, अब
प्रधान मंत्री कार्यालय में एक विशेष विभाग बनाया गया है, जो पूर्वोत्तर में विकास कार्यों की बारीकी से माॅनीटरिंग करेगा। इस क्षेत्र की राज्य सरकारों तथा वहां की जनता के सहयोग से परिस्थिति में सुधार हो रहा है।
यह दुःख की बात है कि पूर्वोत्तर के तीव्र विकास के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट, यहां के कुछ भागों में हिंसा और उपद्रव बढ़ाने वाले उग्रवादी तत्व हैं। मैं ऐसे संगठनों के नेताओं तथा समर्थकों से आग्रह करता हँू कि वे इस खतरनाक और निरर्थक रास्ते को छोड़ दें। सरकार पूर्वोत्तर राज्यों में शांति तथा विकास की प्रक्रिया को बहाल करने के लिए कुछ संगठनों के साथ बातचीत कर रही है। मुझे विश्वास है कि इन प्रयासों को सफलता मिलेगी।
केन्द्र – राज्य सहयोग
भारत एक संघ राज्य है। विकास की गंगा घर-घर तक पहुंचे, इसमें राज्य सरकारों की भूमिका बहुत महत्व रखती है। हम सत्ता के विकेन्द्रीकरण के हामी हैं। हमने राज्यों को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार देने का फैसला किया है। हम पंचायती राज संस्थाओं को भी सत्ता के विकेन्द्रीयकरण का हकदार बनाकर सक्षम और सुदृढ़ बनाना चाहते हैं। इस दिशा में हमने ठोस कदम भी उठाए हैं।
पिछले ढाई सालों में केन्द्र और राज्य सरकारों में बातचीत और समन्वय बढ़ाने के लिए हमने सतत् कोशिश की है। और इसमें सभी राज्यों से हमें सहयोग मिला है। इससे सहकार और सौहार्दता बढ़ी है। हमारे दृष्टिकोण और उद्देश्य में एकरूपता आ रही है। इसके लिए मैं सभी राज्य सरकारों तथा मुख्य मंत्रियों को धन्यवाद देना चाहता हूं।
ऊँचे पदों पर विद्यमान भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने अभियान को हम और तेज करेंगे। प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में शुचिता लाए बिना देश, विकास की दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं कर सकता।
जनता की भागीदारी
हमारे राष्ट्रीय जीवन की एक बड़ी कमी यह रही है कि लोग उन समस्याओं का समाधान करने के लिए भी सरकार पर ही निर्भर रहते हैं, जो उनके सामूहिक प्रयासों के जरिए आसानी से हल की जा सकती हैं। सरकार के पास संसाधन सीमित हैं। इसके अलावा, अनुभवों से यह पता चलता है कि वे कार्यक्रम जो जनता की भागीदारी के बिना चलाए जाते हैं उनमें अपेक्षित परिणाम कम ही मिलते हैं।
मिसाल के तौर पर, जनसंख्या में स्थिरता हो या प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला, पानी-बिजली की बचत हो या सार्वजनिक स्थलों को स्वच्छ और सुंदर रखने की बात, ऐसे सभी उद्देश्य तभी सफल हो सकते हैं जब सभी नागरिक उत्साह से और संगठित ढंग से अपना योगदान दें।
उज्ज्वल भविष्य की ओर
हमें अतीत के उज्ज्वल पक्षों से प्रेरणा लेनी है। लेकिन हमें भूतजीवी नहीं बनना है। मैं इस बात पर बल देता आ रहा हूं कि भारत को भविष्य की चुनौतियों तथा सुअवसरों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। विगत के विवादास्पद मुद्दों में नहीं उलझना चाहिए।
आइए, अब भविष्य की ओर देखें। हमें एक समृद्ध, स्वावलम्बी और स्वाभिमानी भारत का निर्माण करना है। हम इस दिशा में चल पड़े हैं। हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। सफल राष्ट्रो की पंक्ति में हमारी गिनती होने लगी है। हमें रुकना नहीं है। रफ्तार को और तेज करना है। मैं किसानों, मजदूरों, कारीगरों, कर्मचारियों, नौजवानों और भारत के तमाम नागरिकों से सुखी व सम्पन्न भारत के निर्माण में अपना योगदान देने का आह्वान करता हूँ। मैं देश के आयोजकों से आग्रह करता हूँ कि देश के निर्माण में वे अपनी योग्यता और क्षमता की पताका फहरायें और दुनिया को दिखा दें कि भारत के उद्योगपति किसी भी प्रतिस्पर्धा में कम नहीं हैं।
मैं अनिवासी भारतीयों से अपील करता हूँ कि वे इस महान् उद्देश्य में अपना भरपूर योगदान दें। मैं भारत के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से आग्रह करता हूं कि वे ज्ञान-विज्ञान के नए क्षितिज को छूकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करें। मैं भारत के खिलाड़ियों से भी अपील करता हूं कि वे दुनिया के खेल के मैदानों में तिरंगे को बुलंदी तक पहुंचाएं। अगले महीने सिडनी में होने वाले ओलम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता के लिए, पूरा देश उन्हें शुभकामनाएं देता है।
आइए, हम सब एक परिश्रमी भारत, पराक्रमी भारत, विजयी भारत के निर्माण में अपना-अपना योगदान दें। चिरकाल से हमारा उद्घोष रहा है:
सम् गच्छद्वम्
सम् वदद्वम्
सम् वो मनासी जानताम्
यानि हम एक होकर चलें, मिलकर चलें, सबको मिलाकर चलें। हमें सबके साथ आगे बढ़ना है औरों को भी आगे बढ़ाना है। इस इक्कीसवीं शताब्दी को भारत की शताब्दी बनाना है। यही हमारा संकल्प है। यही हमारी आकांक्षा है।
धन्यवाद, जयहिंद।
(दर्पण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित तथा बृजेन्द्र रेही द्वारा संपादित पुस्तक ‘अटल जी ने कहा’ से साभार। यदि पुस्तक खरीदना चाहें तो darpanprakashan2@gmail.com पर ईमेल भेजें )
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