तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 सितंबर, 2001 को अपने नई दिल्ली स्थित निवास स्थान पर मिलने आए जनसमूह को संबोधित करते हुए आतंकवाद से संबंधित जो भाषण दिया था, उसका कुछ अंश यहां प्रकाशित कर रह्र हैं। -सम्पादक
…मैं जब अमेरिका गया था तो अमेरिका की कांग्रेस ने जो उनकी पार्लियामेंट जैसी संस्था है, मुझे भाषण देने के लिए बुलाया था, तकरीर करने के लिए बुलाया था। उस समय मैंने कहा था कि हम हिन्दुस्तान में दहशतगर्दी के शिकार हो रहे हैं, जम्मू-कश्मीर में खून खराबा हो रहा है, निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं, आप अपनी सहानुभूति हमें देते हो लेकिन और कुछ नहीं करते क्योंकि आप समझते हैं हिन्दुस्तान दूर है, जम्मू-कश्मीर दूर है, हम तो सात समुन्दर पार बसे हुए हैं, हमें कौन परेशान करेगा, हमें कौन हैरान करेगा, हमारे ऊपर कौन अंगुली उठायेगा?
और, मैंने कहा था कि यह दहशतगर्दी डिस्टेन्स नहीं देखती है, यह दूरी नहीं देखती है। कौन कितना दूर है और 11 सितम्बर को जो कुछ हुआ, आपने देखा। निर्दोष लोग मारे गये। अमेरिका में जो भी कांड हुआ है उसमें अनेक मुल्कों के लोग मारे गये हैं, अनेक मज़हबों के लोग मारे गये हैं, खासतौर से हिन्दुस्तान के सबसे ज्यादा मरने वालों में हैं क्योंकि हिन्दुस्तान के लोग सबसे ज्यादा अमेरिका में काम कर रहे हैं। कमा रहे हैं, अमेरिका को अच्छा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। और, खुद भी अपनी तरक्की के लिए प्रयत्नशील हैं। उस समय अमेरिकी कांग्रेस के मेम्बरों ने मेरी बात को गहराई से नहीं लिया था, आज क्या हो रहा है आप देख रहे हैं। लेकिन इस संकट की घड़ी में भी हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि लड़ाई मुसलमानों और गैर-मुसलमानों की नहीं है, लड़ाई इस्लाम के खिलाफ नहीं है, दहशतगर्दी कहीं भी फैल सकती है, दहशतगर्दी का कोई भी शिकार हो सकता है, दहशतगर्दी को कोई भी हथियार बना सकता है।
दहशतगर्दी दुधारा हथियार है, अगर एक तरफ चलेगा तो दूसरी तरफ भी मार कर सकता है, इसलिए दहशतगर्दी के खिलाफ लड़ना बहुत जरूरी है, अगर शिकायतें हैं, परेशानियां हैं, अगर मान लीजिए बेइन्साफी हो रही है तो बेइन्साफी से लड़ने का तरीका क्या है? क्या निर्दोष लोगों को मारा जाए? औरतों और बच्चों को निशाना बनाया जाए? कहीं लोग आराम से काम कर रहे हैं, शांति से अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं और अचानक उन्हें मौत के मुंह में डाल दिया जाए, यह तो बेइन्साफी से लड़ने का तरीका नहीं है। जो बेइन्साफी करता है उससे लड़ा जाए, यह मेरी समझ में आ सकता है, उससे भी लड़ने के और तरीके निकाले गये हैं।
जब जनरल मुशर्रफ हिन्दुस्तान आये थे और, मेरी और उनकी बात हो रही थी। लोग कहते हैं हमने बहुत लम्बी बातें कीं। मैंने कहा मसले ही ऐसे थे जिन्हें लम्बे तौर पर बयान करना जरूरी था। जब उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जो लोग आतंक फैला रहे हैं, लोगों को मार रहे हैं, वह दहशतगर्द नहीं हैं वो तो आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। तो मैंने उनसे कहा कि आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं तो आज़ादी के लिए हम भी लड़े थे। हिन्दुस्तान आज़ादी के लिए लड़ा था। गांधी जी ने हमें एक रास्ता दिखाया सत्याग्रह का। जिन्होंने सत्याग्रह के रास्ते को स्वीकार नहीं किया, जो और जद्दोजहद करना चाहते थे, उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया। मगर सारी अंग्रेजी कौम के खिलाफ दहशतगर्दी नहीं की। गांधी जी ने कहा अंग्रेजों से हमारा झगड़ा नहीं है। हम अंग्रेजी हुकूमत से लड़ रहे हैं। अन्याय से लड़ना एक बात है और जैसा मैंने कहा, अन्याय से लड़ने के और भी तरीके हो सकते हैं।
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