अपनी खोई सिंचाई क्षमता फिर से हासिल करने में जुटा झारखंड

रांची, 23 जून | झारखंड अपनी खोई सिंचाई क्षमता को फिर से हासिल करने में जुट गया है। किसानों में इसे लेकर खासा उत्साह है। सिंचाई परियोजनाएं एक बार फिर सरकारी एजेंडे में हैं।

राज्य ने बीते कुछ सालों में कई बार सूखे का डंक झेला और इसी ने शायद सरकार की नींद तोड़ दी है। अब सरकार जाग चुकी है और सिंचाई के क्षेत्र में राज्य को उसकी पुरानी स्थिति में लाने का प्रयास कर रही है।

जल संसाधन विभाग में प्रधान सचिव सुखदेव सिंह ने आईएएनएस से कहा, “हमने चरणबद्ध तरीके से राज्य की खोई हुई सिंचाई क्षमता को फिर से वापस पाने का प्रयास शुरु कर दिया है। 102 में से 30 सिंचाई परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया है। इससे 56,742 हेक्टेयर इलाके को सिंचित करने में मदद मिलेगी।”

सिंह के मुताबिक उनके विभाग ने 15 सिंचाई परियोजनाओं पर एक डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार किया है, जिनके माध्यम से 39,340 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। विभाग ने इस परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 2017-18 तक का समय रखा है।

अन्य परियोजनाओं के लिए डीपीआर भी तैयार किए जा चुके हैं और इनके लिए काम पूरा करने की समय सीमा 2019 रखी गई है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक राज्य में अभी सिंचाई की स्थिति काफी खराब है। खेतीयोग्य कुल भूमि के 22 फीसदी हिस्से की ही सिंचाई की व्यवस्था है। इसका मतलब यह है कि राज्य के अधिकांश किसान पानी के लिए बारिश पर निर्भर हैं।

बकौल सिंह, “तीन से चार दशक के भीतर कुल 102 सिंचाई परियोजनाएं पूरी की गई हैं लेकिन खराब रख-रखाव के कारण सिंचाई की क्षमता का ह्रास हुआ है। आज की तारीख में 218,065 हेक्येयर जमीन में से सिर्फ 82,065 हेक्टेयर भूमि की ही सिंचाई की व्यवस्था है।”

झारखंड की अधिकांश सिंचाई परियोजनाएं उस समय तैयार की गई थीं, जब वह बिहार का हिस्सा था लेकिन साल 2000 में बिहार से अलग होने के बाद राज्य में सिंचाई के नाम पर अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं लेकिन इस दिशा में देखने लायक काम नहीं हुआ है जबकि इनको पूरा करने की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है।

उदाहरण के तौर पर राज्य की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना-स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना (एएमपीपी) की स्थापना 1973 में हुई थी। साल 1978 में इसके निर्माण की कीमत 128.99 करोड़ रुपये तय किया गया था लेकिन 2011 में इसे बढ़ाकर 6613.74 करोड़ रुपये कर दिया गया। फरवरी 2015 तक इसमें कुल 3575 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

बीते तीन दशक से आठ बड़े और 18 मध्यम दर्जे की परियोजनाओं पर काम जारी है लेकिन उनमें लगातार देरी हो रही है। इससे इनकी लागत बढ़ती जा रही है और साथ ही साथ इनके समय से पूरा नहीं हो पाने के कारण किसानों की हालत भी लगातार खराब होती जा रही है।

ऐसे में जबकि सरकार ने अपनी खोई सिंचाई क्षमता को फिर से हासिल करने की पहल शुरू कर दी है, राज्य के किसानों के चेहरों पर खुशी आना लाजिमी है। —आईएएनएस