अफ्रीकियों का दर्द : अपने ही भाइयों से मिले तिरस्कार से तकलीफ

आनंद सिंह व रुचिका कुमारी===

नई दिल्ली, 12 जून | वे सड़कों पर, गलियों में तिरस्कार, दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं, लोग उनसे बात करने से बचते हैं, स्थानीय लोग उनके साथ मेट्रो में नहीं बैठते और कई बार तो उनकी पिटाई भी कर दी जाती है। राजधानी दिल्ली में रहने वाले अफ्रीकी समुदाय के अधिकांश विद्यार्थियों को लगता है कि इन सभी बातों की प्रकृति ‘नस्लीय’ है।

फोटो: अफ्रीकियों पर बढ़ते हमलों के संबंध में 31 मई, 216 को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलकर बाहर आते अफ्रीकी छात्र। (फोटो: आईएएनएस)

दिल्ली में रहने वाले अफ्रीकियों के अनुसार, समाज का व्यवहार उनके प्रति ‘बेहद अनुचित’ है। यहां तक कि पुलिस विभिन्न मामलों में उन्हें अपना पक्ष भी नहीं रखने देती।

दक्षिणी दिल्ली में पिछले चार साल से रहने वाले 25 वर्षीय नाइजीरियाई छात्र सैमुअल जैक ने आईएएनएस से कहा, “हम जब भी बाहर निकलते हैं, हमें हमले की आशंका होती है। हमारी स्थिति पुलिस के रवैये के कारण और भी दयनीय हो जाती है, जो हमें अपना पक्ष तक नहीं रखने देती।”

जैक भारत में अफ्रीकी समुदाय के छात्रों के संघ के सचिव हैं।

उन्होंने कहा, “यहां ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनका हम सामना करते हैं। इनमें रहने के लिए जगह ढूंढ़ने के साथ-साथ नस्लीय दुर्व्यवहार भी शामिल है, क्योंकि हम यहां छात्र हैं। मैं आपसे यह सब अफ्रीकी छात्रों की ओर से कह रहा हूं, न कि अफ्रीकी समुदाय की ओर से।”

पिछले करीब पांच वर्षो से यहां पढ़ाई कर रहे लीबियाई छात्र इब्राहिम जिद (25) का कहना है कि भारत में अफ्रीकी समुदाय के खिलाफ हमलों की वारदात के बाद उनका परिवार नहीं चाहता कि अब वह यहां रहें।

इब्राहिम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के छात्र हैं। वह वर्ष 2011 से यहां रह रहे हैं।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, “हम यहां सुरक्षित महसूस नहीं करते। हम जब भी घर से बाहर निकलते हैं, यहां के लोग हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं। यहां लोग हमारे रंग के आधार पर हमसे भेदभाव करते हैं। हमारे साथ इस तरह का व्यवहार करने वाले कोई और नहीं, बल्कि हमारे ही भाई (ब्राउन ब्रदर्स) हैं, जो हमारे ही जैसे भूरे रंग वाले हैं। यह हमें अधिक तकलीफ देता है।”

इब्राहिम के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में एक कांगो निवासी की छोटे से विवाद के बाद पीट-पीटकर हत्या किए जाने सहित अफ्रीकी समुदाय के खिलाफ हाल के दिनों में हुए हमलों के बाद उनके परिसर के छात्रों ने उनकी भी उपेक्षा शुरू कर दी है।

यह पूछे जाने पर कि क्या कोई छात्र संघ उनके समर्थन में आया, जैक ने कहा, “कोई भी नहीं..कोई भी हमारे साथ नहीं आया।”

भारत में निजी संस्थानों द्वारा ‘शोषण’ के बारे में इब्राहिम ने कहा, “मैं एक निजी संस्थान में पढ़ाई करता हूं, जहां वे केवल पैसे के बारे में सोचते हैं और यदि आप अफ्रीकी छात्र हैं तो आपसे दोगुना फीस ली जाती है।”

उन्होंने कहा, “हमें 3,600 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना होता है, लेकिन यदि आप स्थानीय छात्र हैं तो आपको सिर्फ एक लाख रुपये देने होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कॉलेजों में हमें चिकित्सा मद में 500 अमेरिकी डॉलर देना होता है, क्योंकि वे सिर्फ पैसा चाहते हैं। इसके बाद हमारी फिक्र कोई नहीं करता।”

जैक के अनुसार, “कुछ विश्वविद्यालयों ने हमारा बस शोषण किया है। उनके पास हमारे लिए उचित सुविधाएं तक नहीं हैं। यही वजह है कि पिछले करीब दो महीनों में यहां दाखिला कम हुआ है।”

इब्राहिम की योजना आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने की है, क्योंकि उनके माता-पिता नहीं चाहते कि वह अब और समय तक भारत में रहें। वह कहते हैं, “मेरे माता-पिता मुझे पढ़ने के लिए यहां भेजने पर खुद को दोषी महसूस करते हैं। वे चाहते हैं कि मैं लौट जाऊं लेकिन मैं बीच में पढ़ाई छोड़कर नहीं जा सकता।”

अफ्रीकी छात्रों के हितों की आवाज उठाने वाली एसोसिएशन फॉर कम्युनिटी रिसर्च एंड एक्शन के अध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने आईएएनएस से कहा, “यहां दोनों समुदायों के बीच संवाद और संस्कृति को लेकर बड़ा अंतर है। हम अंतर-सांस्कृतिक उत्सव आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “पहले चरण में हमने फूड फेस्टिवल के आयोजन की योजना बनाई है, जहां अफ्रीकी और भारतीय समुदाय अपने-अपने खानपान की संस्कृतियों को दर्शाएंगे। हमने महत्वपूर्ण भारतीय और अफ्रीकी दिवसों को साथ मिलकर मनाने की भी योजना बनाई है, ताकि एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझा जा सके।”

बकौल सिद्दीकी, “हमने नस्लवाद के खिलाफ सोशल मीडिया पर ‘डू आई लुक डिफरेंट’ (क्या मैं अलग दिखता हूं) नाम से एक अभियान भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य लोगों में जागरूकता फैलाना है और अफ्रीकी समुदाय के छात्रों ने इस पर सहमति भी दी है।”

उन्होंने कहा कि 25 जून को अफ्रीकी छात्रों का ‘ग्रैजुएशन डे’ साथ मिलकर मनाया जाएगा।

‘डू आई लुक डिफरेंट’ अभियान के बारे में जैक ने कहा, “हम भारतीय समाज का हिस्सा बनना चाहते हैं, हम उस प्रत्येक कदम का समर्थन करेंगे, जिससे सामुदाय के निर्माण, विकास और शांति में मदद मिले।”    –आईएएनएस