अब, जाति-नस्ल देखकर फिल्मों में रोल नहीं मिलता : फ्रीडा पिंटो

संदीप शर्मा===  नई दिल्ली, 19 अप्रैल | वे जमाने गए जब विभिन्न देशों के कलाकारों को उनकी जाति-नस्ल के आधार पर भूमिकाओं के लिए चुना जाता था। यह कहना है कि अमेरिका में रही भारतीय अभिनेत्री फ्रिडा पिंटो का। उनका यह भी कहना है कि दुनिया के वर्तमान फिल्म परिदृश्य में किसी कलाकार को ‘अमेरिकी’, ‘ब्रिटिश’ या ‘भारतीय’ नाम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

31 वर्षीय अभिनेत्री ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 2008 में ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ फिल्म से की थी। उनका कहना है कि यह अनोखा है किसी कलाकार को उनकी राष्ट्रीयता से जुड़ी भूमिकाएं ही दी जाए।

फ्रीडा आजकल पेप्सी के लिए एक शार्ट फिल्म ‘ब्लैक नाइट डिकोडेड’ में काम कर रह हैं। उन्होंने आईएएनएस को बताया, “अगर कलाकार फिल्मी दुनिया में आने के बाद कहें कि वे अपनी जाति-नस्ल के आधार पर ही अपने पूरे कैरियर में भूमिकाएं निभाएंगे तो यह थोड़ा अनोखा है, क्योंकि फिर वे कई मायनों में सीमित हो जाएंगे।”

उन्होंने कहा, “मैं समझती हूं कि जाति-नस्ल को लेकर मेरा अपना नजरिया है। मैं अमेरिका में पिछले सात सालों से रह रही हूं और जब मैं अपने चारों तरफ देखती हूं तो लोगों का उपहास नहीं कर सकती कि ये एक अमेरिकी है, या यह ऑस्ट्रेलियाई है या वो एक अंग्रेज है। आखिरकार सभी एकाकार हो जाते हैं क्योंकि आप राष्ट्रीयता या जातियता के संदर्भ में ऐसा करना बंद कर देते हैं।”

बाफ्टा के लिए नामित इस अभिनेत्री ने बताया, “हम ऐसे समय में हैं जब विभिन्न जाति-नस्लों के कलाकार सभी तक की भूमिकाएं निभा रहे हैं। तो मैं सचमुच यह नहीं समझती कि क्यों कोई किसी खास अल्पसंख्यक जाति-नस्ल के कलाकार को उनके समूह पर आधारित भूमिकाएं ही निभाने को दी जाती है। अब ऐसा होना बंद हो गया है। मुझे खुशी है कि मैं उन टीवी और फिल्मों में काम कर रही हूं जहां लोग अमेरिकी या अंग्रेज होने को लेकर चिंतिंत नहीं होते।”

फ्रीडा ने भारतीय नस्ल होने के बावजूद अपने छोटे से कैरियर में अभी तक ‘मिराल’, ‘डे ऑफ फाल्कन’, ‘इर्मोटल्स’, ‘डेसर्ट डांसर’ और ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ जैसी विश्व सिनेमा की फिल्में की है।

अभिनेत्री ने बताया कि वे काफी भाग्यशाली हैं कि उन्हें अलग-अलग प्रोडक्शन हाउस के साथ काम करने का मौका मिला।(आईएएनएस)