भोपाल, 8 जुलाई | बुंदेलखंड से लगता है प्रकृति ही रूठ गई है। कभी सूखा इस इलाके के लिए मुसीबत बन जाती है तो कभी अतिवर्षा रुला जाती है। सूखे से जूझते किसानों ने अच्छे मानसून की उम्मीद में खेतों को तैयार कर उड़द और सोयाबीन बोए थे और सुनहरे सपने संजोए थे, मगर बीते तीन दिनों की बारिश ने उनके सपने चूर कर दिए हैं। खेतों में पानी भर गया है, सोयाबीन और उड़द के बीज सड़ने का संकट खड़ा हो गया है।
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है और इसमें कुल 13 जिले आते हैं। छह जिले मध्य प्रदेश तथा सात उत्तर प्रदेश में हैं। कमोबेश समस्याएं दोनों इलाकों की एक जैसी ही है। बीते तीन वर्षो से अच्छी बारिश न होने से सूखा यहां की सबसे बड़ी समस्या बन गया है। लेकिन इस बार अच्दे मानसून के अनुमान के बाद यहां के लोग अच्छे भविष्य की आस लगा बैठे थे।
लेकिन मध्य प्रदेश के हिस्से के बुंदेलखंड में तीन दिनों में हुई बारिश ने यहां की तस्वीर बदल दी है। कभी सूखे और बंजर नजर आने वाले खेत पानी से भर गए हैं। उड़द और सोयाबीन की खेती के बर्बाद होने की आशंका पैदा हो गई है।
सागर संभाग के संयुक्त संचालक (कृषि) डी. एल. कोरी ने आईएएनएस को बताया, “संभाग के पांच जिलों सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना व दमोह में लगभग सवा तीन लाख हेक्टेयर में सोयाबीन व उड़द बोई गई है। कई जगह तो बीज अंकुरित भी हो गए हैं। भारी बारिश से इन दोनों फसलों को नुकसान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। खेतों में अगर ज्यादा दिन तक पानी भरा रहा तो अंकुरित बीज और बोए गए बीज दोनों के सड़ने का खतरा है।”
छतरपुर के सेवार निवासी अशोक कुमार कहते हैं कि उनके परिवार के पास लगभग 20 एकड़ जमीन है, जिसमें उन्होंने सोयाबीन और उड़द बोई थी। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार अच्छी पैदावार होगी, मगर तीन दिनों की बारिश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, क्योंकि उनके खेतों में पानी भर गया है और बोए गए बीज उखड़कर बह गए हैं।
नयागांव के राम विदेश प्रकृति को कोसते हैं। उन्होंने कहा कि एक तरफ सूखा ने बीते तीन सालों से उन्हें मुसीबत में डाला और इस बार तीन दिन में हुई बारिश ने उनकी मेहनत चौपट कर दी है। उन्होंने नौ एकड़ मे उड़द व सोयाबीन बो रखा था, जो पूरी तरह चौपट होने के कगार पर है।
पनया गांव के जलील की भी यही हालत है। उन्होंने दो एकड़ जमीन में पूरी ताकत लगाकर उड़द व सोयाबीन बोया, मगर पानी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है। वह समझ नहीं पा रहे है कि ऊपर वाला इस इलाके से इस तरह क्यों रूठा है।
जल-जन जोड़ो के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह के अनुसार, “बुंदेलखंड में औसत नौ सौ मिली मीटर बारिश होती है। पूरे मानसून के दौरान चार माह में औसतन हर माह दो सौ मिली मीटर बारिश होती है, जिससे खेती-किसानी अच्छी हो जाती है, मगर इस बार महज तीन दिनों में ही लगभग दो सौ मिली मीटर पानी बरस जाने से खेतों में पानी भर गया है और बोए गए बीज नष्ट होने के कगार पर हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “तीन दिनों में हुई भारी बारिश ने इस क्षेत्र के किसानों की हालत ‘दूबरे और दो आषाढ़’ जैसी कर दी है। एक तरफ सूखे ने तीन साल खेती चौपट की, किसानों ने जैसे-तैसे खेत तैयार किए, बीज बोए और अब भारी बारिश ने उड़द व सोयाबीन की खेती बर्बाद की दी है।”
एक तरफ भारी बारिश ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है, तो दूसरी तरफ पन्ना जिले में दो बांधों से भारी मात्रा में पानी रिसने से कई खेत जलमग्न हो गए हैं। इससे खेतों में लगी फसल नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है।
इस इलाके की प्रमुख नदियां -बेतवा, धसान, जामनी, जमड़ार, बीला, सुनार आदि- उफान पर हैं, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कई गांव और क्षेत्रों का संपर्क टूट गया है। तालाब भर गए हैं और खेत भी पानी में डूब गए हैं।-संदीप पौराणिक
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