अमेरिका के साथ समझौते से भारत को बेहद लाभ होगा

नई दिल्ली, 28 मई| अमेरिका के साथ सैन्य साजोसामान के आदान-प्रदान से संबंधित समझौते का विपक्ष के विरोध को दरकिनार करते हुए रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि इस समझौते से भारत को बेहद लाभ होगा, क्योंकि इससे वह दुनिया भर में अमेरिकी सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेगा और इस समझौते का युद्ध से कोई लेना-देना नहीं है।

पर्रिकर ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में सीमा पार से हो रही गोलीबारी तथा घुसपैठ के मामलों से निपटने के लिए सेना को पूरी छूट देने से ऐसे मामलों की संख्या में कमी आई है और घुसपैठ के समय मारे जानेवाले घुसपैठियों की संख्या बढ़ी है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि समझौते में कोई युद्धक आदान-प्रदान शामिल नहीं है।

रक्षामंत्री ने कहा, “इस समझौते से उनके सैनिक युद्ध के लिए हमारी भूमि का इस्तेमाल नहीं कर सकते। यह केवल ईंधन उपलब्ध कराने, पानी और खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति तक सीमित है।” उन्होंने कहा कि इसके बदले में हम पूरी दुनिया में उनके सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे।

पर्रिकर ने कहा कि सैन्य साजोसामान समझौते को अमेरिका के रक्षामंत्री एश्टन कार्टर के हाल के भारत दौरे के दौरान दोनों पक्षों द्वारा सैद्धांतिक मंजूरी दी गई थी, जो केवल ईंधन, पानी व खाद्य सामग्री की आपूर्ति पर केंद्रित है।

मंत्री ने यह भी कहा कि यह वह समझौता नहीं है, जिसपर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान सहमति जताई गई थी। पर्रिकर ने कहा कि इसपर आगे बढ़ने से पहले ही संप्रग सरकार के हाथ-पांव सुन्न पड़ गए थे।

पर्रिकर ने कहा, “उन्होंने (संप्रग) हर मुद्दे पर सहमति जता दी, लेकिन वे उसे कैबिनेट में लेकर नहीं गए। उनके हाथ-पांव सुन्न पड़ गए थे। लेकिन हम उनके समझौते को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। हमने एक नया समझौता किया है, जो केवल साजोसामान के आदान-प्रदान पर केंद्रित है।”

मंत्री ने कहा, “हमारा समझौता किसी भी तरह की अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता के लिए है। हम एक-दूसरे की सुविधाओं का फायदा उठा सकते हैं। इसका किसी युद्ध से संबंध नहीं है, अगर ऐसा होगा तो मामलों के आधार पर मंजूरी की जरूरत होगी।”

मंत्री ने कहा, “हम दुनिया भर में उनके सैन्य अड्डों से यही फायदा उठाएंगे। मान लीजिए, बहरीन में उनका कोई सैन्य अड्डा है, तो उस इलाके में जाने वाले हमारे किसी भी युद्धपोत को टैंकर ले जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे बहरीन में उस टैंकर को बदल देंगे। इससे हमें लाभ ही होगा। 10 वर्ष पहले की बात करें, तो भारतीय जहाज बहुत ज्यादा दूरी तक सफर नहीं करते थे। लेकिन अब आप हमारे चार से पांच जहाजों को दूसरे देशों के बंदरगाहों पर देखते हैं। वास्तव में इससे हमारे नाविकों के अनुभव में इजाफा हो रहा है। हमें कई जगहों पर सुविधाओं की जरूरत होती है और उनकी इन्हीं जरूरतों को हम पूरा करेंगे।”

उन्होंने कहा कि ये सुविधाएं मुफ्त में नहीं मिलेंगी, बल्कि इसके लिए भुगतान करना होगा।

केंद्र सरकार के दो साल पूरा होने के मौके पर पर्रिकर ने कहा कि जब से भारतीय सेना को नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी का करारा जवाब देने के लिए कहा गया है, सैनिकों को दी गई स्वतंत्रता का असर साफतौर पर दिख रहा है।

मंत्री ने कहा, “इस वक्त सीमा पार से गोलीबारी औसत से भी कम हो गई है। शुरुआत में घटनाएं बढ़ी थीं और मैं इनसे इनकार नहीं कर रहा हूं। अक्टूबर, 2014 से फरवरी, 2015 के बीच घटनाओं में काफी इजाफा हुआ था। लेकिन जबसे हमने कड़ा रुख अपनाना शुरू किया, इसमें काफी हद तक कमी दर्ज की गई।”

मंत्री ने सीमा पर मारे जाने वाले घुसपैठियों की बढ़ती संख्या और भारतीय जवानों के हताहत होने की घटती संख्या पर भी प्रकाश डाला।

भारतीय वायुसेना में लड़ाकू स्क्वाड्रन की कमी के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा कि इसपर ध्यान दिया जा रहा है।

भारत में वर्तमान में 34 स्क्वाड्रन हैं, जबकि यह संख्या 42 होनी चाहिए।

लड़ाकू विमानों की संख्या को लेकर पूछे जाने वाले सवाल पर पर्रिकर ने कहा कि तेजस एलसीए पुराने हो चुके मिग-21एस की जगह लेगा और दो से तीन साल के भीतर मानक संख्या पूरी हो जाएगी।