‘अयोध्या के गांधी’ कहे जाते थे हाशिम, अमन के थे पैरोकार

लखनऊ/अयोध्या, 20 जुलाई | राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में मुसलमानों के मुख्य पैरोकार हाशिम अंसारी भले ही इस मामले में मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े पैरोकार थे लेकिन हिंदू संतों व जनता के बीच भी उनका काफी सम्मान था। सही मायने में वह अमन-चैन के असली पैरोकार थे। शायद इसीलिए उन्हें अयोध्या का गांधी भी कहा जाता था।

हाशिम अंसारी का अयोध्या में बुधवार को निधन हुआ। अंसारी कहते थे कि अयोध्या भगवान राम का है और उन्हें अब आजाद हो जाना चाहिए। कुछ माह पहले उन्हांेने ये भी कहा, “मैं मरने से पहले अयोध्या विवाद का फैसला होते हुए देखना चाहता हूं।”

एक बार उन्होंने यहां तक कहा था, “हमें शांति चाहिए देश में। ले जाओ बाबरी मस्जिद। हमें बाबरी मस्जिद नहीं, हमें शांति चाहिए।”

कुछ समय पहले उन्होंने कहा था, “अयोध्या में रामलला तिरपाल में रहें और नेताजी लोग राजमहलों में रहें! ” यही नहीं आगे भी बोले, “तिरपाल में रामलला अब बर्दाश्त नहीं हैं। अयोध्या पर हो चुकी जितनी सियासत होनी थी, अब तो बस यही चाहता हूं कि रामलला जल्द से जल्द आजाद हों।”

उन्हें लोग अयोध्या का गांधी कहते थे। राम जन्मभूमि मुद्दे के हल के लिए वह जीवन भर प्रयासरत रहे। अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के साथ मिलकर उन्होंने ही इस मामले में सुलह-समझौते की पहल शुरू की थी।

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी वह समझौते को लेकर बातचीत का दौर चलाते रहे। इस बीच कुछ लोग उच्चतम न्यायालय चले गए। फिर भी उन्होंने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। हिंदुओं का कोई बड़ा संत अयोध्या आता तो वह उनका बड़ा सम्मान करते थे।

इसके अलावा उनका जीवन बड़ा ही सादगीपूर्ण था। अपने पुराने और जर्जर मकान में ही उन्होंने अभावग्रस्त जीवन जिया। समय-समय पर उन्हें तमाम प्रलोभन मिले, लेकिन वह डिगे नहीं। प्रलोभनों को उन्होंने ठुकरा दिया।

हाशिम अंसारी का नाम अयोध्या विवादित मामले से साल 1949 में ही जुड़ गया था। उस वर्ष 22-23 जनवरी की रात विवादित ढांचे में रामलला के प्रकट होने की घटना को अयोध्या कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर ने दर्ज कराया था। गवाह के रूप में हाशिम अंसारी सबसे पहले सामने आए थे।

इसके बाद 18 दिसंबर 1961 को दूसरा मामला हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित नौ मुसलमानों की तरफ से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया।

इस दौरान राम मंदिर के प्रमुख पैरोकार रहे दिगंबर अखाड़ा के तत्कालीन महंत परमहंस रामचंद्र दास से इनकी मित्रता चर्चा में रही। बाद में महंत परमहंस रामचंद्र दास राम जन्मभूमि के अध्यक्ष बने। महंत रामचंद्र दास की कुछ वर्ष पहले मौत हो गई। अंसारी उनकी मौत पर बहुत दुखी थे।

अंसारी अयोध्या विवाद के राजनीतिकरण से नाराज रहते थे। वह प्रदेश के कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खान के रवैये से भी असंतुष्ट रहते थे।

उन्होंने एक बार कहा था कि वह अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। इसकी पैरवी आजम खान करेंगे। हालांकि बाद में बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मनाने पर वह मुकदमे की पैरवी करने लगे थे।–विद्या शंकर राय