नई दिल्ली, 31 जनवरी | भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रह्मण्यम ने मंगलवार को कहा कि देश की अर्थव्यवस्था का पूर्ण पुनर्मुद्रीकरण अगले 1-2 महीने में हो जाएगा और उन्होंने नकदी निकालने की सीमा तुरंत हटाने की सिफारिश की, ताकि विकास दर में तेजी आ सके। सुब्रमण्यम ने कहा, “यह कहना सही होगा कि नोटबंदी का अल्पकालिक लागत, जोकि महत्वपपूर्ण है चुकाना पड़ा है, खासतौर से अनौपचारिक क्षेत्र को। लेकिन यह प्रभाव अस्थायी है। जैसे ही पुनर्मुद्रीकरण होगा, अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी।”
उन्होंने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 प्रस्तुत किए जाने के बाद एक पत्रकार वार्ता में कहा, “अगले 1-2 महीनों में हम अर्थव्यवस्था के पूर्ण पुनर्मुद्रीकरण के करीब पहुंच जाएंगे।”
उन्होंने कहा कि पुनर्मुद्रीकरण की प्रक्रिया तेजी से होनी चाहिए और नकदी निकालने की सीमा बढ़ाने से हालात सुधरे हैं।
सुब्रह्मण्यम ने यह भी कहा कि नोटबंदी से डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा मिला है। हालांकि यह प्रोत्साहन के आधार पर करना चाहिए न कि लोगों को मजबूर कर के किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं कि बदलाव धीरे-धीरे और समावेशी तरीके से होना चाहिए, क्योंकि बहुत सारे लोग अभी डिजिटली जुड़े हुए नहीं है। इसे प्रोत्साहन के आधार पर होना चाहिए न कि जबरदस्ती। डिजिटलीकरण के बहुत सारे फायदे हैं, लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि गरीबों की इस तकनीक तक पहुंच नहीं है।”
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने आठ नवंबर को की गई नोटबंदी को ‘एक असामान्य और अभूतपूर्व’ मौद्रिक अनुभव बताया और कहा कि इसके प्रभाव की सावधानी से समीक्षा करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “यह मौद्रिक इतिहास का बेहद असामान्य अनुभव था। हमें इसके असर का अनुमान लगाने में सावधानी बरतनी चाहिए। नोटबंदी ने बहुत ही अलग ढंग से मुद्रा के विभिन्न रूपों को प्रभावित किया है।”
नोटबंदी के कारण नकदी की कमी हो गई, वहीं, बैंकों के पास भारी मात्रा में धन जमा हो गया। इसके कारण बैंकों ने उधारी की दर में 90 आधार अंकों की कटौती की, ताकि वे अतिरिक्त तरलता को कम कर सकें।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अल्पकालिक अवधि में अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ती है, उपभोग बढ़ता है तो पुनर्मुद्रीकरण के साथ निर्यात में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट आएगी।
–आईएएनएस
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