नई दिल्ली, 11 मार्च| राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) का मौजूदा समय में कोई अध्यक्ष नहीं है और इसमें वस्तुत: कोई सदस्य भी नहीं है। अल्पसंख्यकों के संवैधानिक व कानूनी अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए इस आयोग की स्थापना की गई थी। अतीत में हामिद अंसारी इसके अध्यक्ष रह चुके हैं, जो फिलहाल देश के उप राष्ट्रपति हैं।
आयोग के अंतिम सदस्य गुरुवार को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। सरकार ने अभी तक नए अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति पर कोई फैसला नहीं लिया है।
आयोग के पुनर्गठन के बारे में पूछे जाने पर अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि यह जल्द ही होगा।
यह फोटो केवल संदर्भ के लिए है –आईएएनएस
नकवी ने आईएएनएस से कहा, “प्रक्रिया जारी है। हमें सदस्यों व अध्यक्ष के कुछ नाम मिले हैं, जिसका फिलहाल मैं खुलासा नहीं कर सकता हूं। लेकिन, यह जल्द ही हो होगा।”
एनसीएम में अध्यक्ष सहित सात सदस्य हो सकते हैं और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल तीन साल का होता है।
मौजूदा वक्त में आयोग में दादी ई. मिस्त्री एकमात्र सदस्य हैं, वह भी गुरुवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
इससे पहले, आयोग की सदस्य फरीदा अब्दुल्ला खान बीते साल अक्टूबर में सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, जबकि प्रवीण डावर इस साल जनवरी में सेवानिवृत्त हुए। अन्य सदस्यों में ईसाई समुदाय से संबंद्ध माबेल रिबेलो का कार्यकाल फरवरी 2016 में ही पूरा हो गया।
सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों के जगह पर सरकार ने नए सदस्यों की नियुक्ति नहीं की।
आयोग के अंतिम अध्यक्ष नसीम अहमद थे, जिन्होंने तीन मार्च को अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नए सदस्यों की नियुक्ति के लिए दो बार खत लिखकर बताया कि बाकी बचे सदस्यों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है।
नसीम अहमद ने आईएएनएस से कहा, “रिक्त पदों के बारे में मैंने दो बार सरकार को खत लिखा। पहली बार नजमा हेपतुल्ला के कार्यकाल में और दूसरी बार मौैजूदा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नकवी को। नकवी को मौखिक तौर पर भी समस्या से अवगत कराया गया। दोनों मंत्रियों ने कहा कि मामले पर विचार हो रहा है, लेकिन नए सदस्य की नियुक्ति नहीं हुई।”
12 जनवरी, 1978 को गृह मंत्रालय ने एक प्रस्ताव में इस बात का विशेष उल्लेख किया था कि संविधान तथा कानून द्वारा सुरक्षा प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता तथा भेदभाव महसूस करते हैं।
मंत्रालय का मानना था कि धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखने तथा राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संस्थागत व्यवस्था की अत्यंत आवश्यकता है, ताकि संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को प्रदान किए जाने वाले सभी संरक्षणात्मक उपायों का क्रियान्वयन किया जा सके।
सरकार ने एनसीएम की स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की थी, हालांकि इसे कई तरह के दबाव का सामना करना पड़ा है, जो अलग कहानी है।
इस आयोग के तहत भारत के पांच अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं, जिनमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध तथा पारसी हैं। जनवरी 2014 से जैन को भी मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक समुदाय की श्रेणी में अधिसूचित किया गया।
नसीम अहमद ने कहा कि अल्पसंख्यक आयोग जरूरी है और इसे पूरी ताकत के साथ हर वक्त काम करना चाहिए। अहमद भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी हैं।
अहमद ने कहा, “बीते दो वर्षो में सदस्यों का सेवानिवृत्त होना जारी है और नए सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो रही है, जिसके कारण सेवा में मौजूद सदस्यों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। आयोग को प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए इसे पूरी क्षमता के साथ काम करना चाहिए।”
उन्होंने एनसीएम में अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोगों की तरह एक जांच शाखा की भी वकालत की, जिसमें पुलिस अधिकारी भी हों।
अहमद ने हालांकि एनसीएम के कामकाज में सरकार की सीधी दखलंदाजी से इनकार किया।
उन्होंने कहा, “हमारे कामकाज में सरकार का कभी हस्तक्षेप नहीं रहा, न तो पहले न ही वर्तमान में। हमें पिछली सरकारों की तरह ही इस सरकार से भी समान सहयोग मिला।” –आईएएनएस
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