अगर आप मोटापे से ग्रस्त हैं और अधिक अवसाद में हैं तो संभल जाइए। क्योंकि यह रोग आपको कई रोगों का शिकार बना सकता है। एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि अवसाद, मोटापा, उच्च रक्तचाप और अस्वस्थ कोलेस्ट्रॉल के स्तर एक साथ मिलकर टाइप 2 मधुमेह के जोखिम बढ़ा सकते हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि जो लोग अवसाद और चयापचय जोखिम कारकों जैसे मोटापा, उच्च रक्तचाप और अस्वस्थ कोलेस्ट्रॉल के स्तर से ग्रसित होते हैं, ऐसे लोगों को टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा छह गुना अधिक होता है।
फोटोः विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर 7 अप्रैल, 2016 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में लगा हुआ एक पोस्टर। (सिन्हुआ/आईएएनएस)
केवल अवसाद की अवस्था टाइप 2 मधुमेह का महत्वपूर्ण जोखिम कारक नहीं है। लेकिन अवसाद रहित मोटापे, उच्च रक्तचाप और अस्वस्थ कोलेस्ट्रॉल के स्तर से ग्रसित लोगों में मधुमेह होने की चार गुना अधिक संभावना होती है।
कनाडा की मैकगिल युनिवर्सिटी से इस अध्ययन के मुख्य लेखक नोबर्ट स्किमिट्ज ने बताया, “ये निष्कर्ष बताते हैं कि केवल अवसाद तो नहीं, लेकिन अवसाद के साथ जुड़े हुए अन्य चयापचय विकार टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग के जोखिमों को बढ़ाने में जिम्मेदार हो सकते हैं।”
इस शोध के लिए 40 से 69 साल के 2,525 प्रतिभागियों पर अध्ययन किया गया था। यह शोध ‘जर्नल मॉलीकुलर साइकियाट्री’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
दूसरी ओर एक अन्य शोध में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने पाया है कि टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित लोगों को सामान्य लोगों की तुलना में लीवर के गंभीर रोग होने की अधिक संभावना होती है। ब्रिटेन की युनिवर्सिटी ऑफ साउथहैंप्टन के प्रोफेसर क्रिस बायर्न ने कहा, “हमें पहली बार पता चला है कि टाइप 2 मधुमेह एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है, जो पुराने लीवर रोगों से संबंधित है।”
उन्होंने बताया, “इस अनुसंधान में हालांकि अभी आगे यह निर्धारित करने की जरूरत है कि क्या सभी टाइप 2 मधुमेह रोगियों को लीवर के रोगों की जांच कराने की जरूरत है।”
इस शोध में साउथहैंप्टन के साथ ही एडिनबर्ग युनिवर्सिटी के शोधार्थी भी शामिल रहे। इन्होंने 10 सालों के अध्ययन के दौरान स्कॉटलैंड के विभिन्न अस्पतालों से लीवर संबंधी रोगों और उससे जुड़े कारकों का आकलन किया।
शोधार्थियों ने पाया कि इनमें से अधिकतर मामलों में लीवर रोग और टाइप 2 मधुमेह ग्रसित लोगों के रोग का कारण अल्कोहल नहीं रहा। इसकी असल वजह लीवर की कोशिकाओं में वसा का निर्माण रहा है, जिसे नॉन अल्कोहॉलिक फैटी लीवर डिसीस (एनएएफएलडी) कहा जाता है।
यह शोध ‘जर्नल ऑफ हेप्टोलॉजी’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
(आईएएनएस)
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