नई दिल्ली, 8 जुलाई | सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के तहत अशांत घोषित क्षेत्रों में सेना उग्रवाद या आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के दौरान अत्यधिक बल प्रयोग नहीं कर सकती। न्यायालय ने यह भी कहा है कि अपराध अदालतें अशांत घोषित इलाकों में सशस्त्र बलों द्वारा कथित ज्यादती के मामलों की सुनवाई कर सकती हैं।
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर तथा न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की पीठ ने हालांकि मणिपुर में कथित फर्जी मुठभेड़ के 1,500 मामलों की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने के सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
इस फैसले को केंद्र और सेना के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है, जिनकी अभी तक दलील रही है कि सैन्य अधिनियम सशस्त्र बल के जवानों को अपराध अदालतों में सुनवाई से छूट प्रदान करता है।
अदालत का आदेश मणिपुर में 1987 से कथित तौर पर सशस्त्र बलों की गोली से जान गंवाने वालों के परिवारों के संघ की याचिका पर सुनवाई के बाद आया।
याचिकाकर्ताओं ने 1528 ऐसी मौतों की जांच एसआईटी से कराने की मांग की थी।
न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के उस कथ्य पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें उसने कहा कि संस्था (मानवाधिकार आयोग) के पास कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ने सरकार से पूछा कि क्या वह मानवाधिकार आयोग की अनुशंसाओं को मानने को बाध्य है या नहीं।
न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे की पड़ताल करेगा। —आईएएनएस
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