नई दिल्ली, 13 फरवरी (जनसमा)। देश के स्कूलों में आगामी 21 और 22 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाएगा। यह प्रयोग पिछले साल भी किया गया था। इसके अलावा आगामी एक दो माह में केन्द्र सरकार शिक्षा नीति की भी घोषणा कर सकती है। यह शिक्षा नीति जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप होगी।
ये जानकारियां केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को विद्याभारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित प्राचार्य सम्मलेन के अवसर पर उद्घाटन करते हुए दी।
उनका भाषण इसप्रकार हैः
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में श्रीमती स्मृति ईरानी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए लगभग 14 सौ प्राचार्यों को संबोधित करते हुए बताया कि आज कैरियर को लेकर आज हर बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहता है, लेकिन टीचर नहीं बनना चाहता। जबकि डॉक्टर के पास कोई खुशी से नहीं जाता, इंजीनियर के पास खाली जेब लिए नहीं जाता, शिक्षक ही है जिनके पास इंसान खुशी-खुशी जाता है। जेब भले ही खाली हो लेकिन जब शिक्षक के सान्निध्य से जाता है तो ज्ञान का भंडार लेकर आता है। इस भाव को विद्यार्थियों में जागृत करने की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि शिक्षक की गलती का प्रभाव पूरे समाज को भुगताना पड़ता है। डॉक्टर और इंजीनियर की गलती को उपाय करके ढांका जा सकता है लेकिन शिक्षक की गलती आजीवन समाज के संग चलती है। इसलिए शिक्षक का दायित्व बहुत महत्वपूर्ण है। विद्या भारती के विद्यालय इसके लिए धन्यवाद के पात्र है जो बच्चों को मातृभूमि से प्यार करना सिखाते है, यहाँ पढ़े विद्यार्थी कभी हिन्दुस्थान के खिलाफ नारा नहीं लगा सकते। विद्याभारती के शिक्षकों को कैसे और सक्षम करें, बल दें, यह प्रयास मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर हम गत बीस माह से कर रहे हैं।
उन्होंने सियाचिन से आए जवान की वीरगति पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि देश में वीर जवानों की शहादत एक दिन की अखबारों की सुर्खियों तक सिमटकर जाती है। कुछ दिनों में हम उनके नाम भूल जाते हैं। परम्परानुसार 26 जनवरी की परेड में उनके नाम देश को बताए जाते हैं। लेकिन उसके बाद लोग उन वीर सपूतों के नामों को भूल जाते हैं। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय और नेशनल बुक ट्रस्ट के सौजन्य की ओर से हमने 21 परमवीर चक्र विजेताओं की जीवनगाथाओं को ‘वीर गाथा’ के नाम से राष्ट्र के सामने प्रस्तुत किया है। एन.सी.ई.आर.टी. के माध्यम से इन 21 जीवनगाथाओं, शौर्य गाथाओं को, “ऐडीशनल रीडिंग मैटीरियल” के नाम से प्रस्तुत किया।
उन्होंने विद्याभारती से उन शूर वीरों के जीवन पर आधारित निबंध तैयार कर इस पर निबंध प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का निवेदन किया। मातृ किताबों से वीर सैनिकों के जीवन को समझा या अनुसरण नहीं किया जा सकता। एक साधारण सैनिक कैसी विशम परिस्थितियों में देश की सीमा की सुरक्षा करता है। इसलिए हमने ‘सीमा दर्शन’ नाम से एक कार्यक्रम हमने आयोजित किया है। राष्ट्र के 22 राज्यों से एक लड़का और एक लड़की, हमने अपने छात्रों को एकत्रित किया। सीमा पर भारतीय सेना के साथ अपने छात्रों को सीमा पर अखनूर भेजा।
उन्होंने एलओसी पर जाकर देखा के भारतीय सेना कैसे वहां दिन-रात तैनात रहती है देश की सुरक्षा के लिए। 26 जनवरी को इन्हीं 22 राज्यों के छात्रों को अटारी वाघा भारत पाकिस्तान के बार्डर पर हम ले गए। जहां उन्होंने भारत मां के वीर सैनिकों के साथ गणतन्त्र दिवस मनाया। उन्होंने विद्या भारती को भी सीमा दर्शन कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण दिया। शिक्षक और विद्यार्थी का सीमा दर्शन के माध्यम से भारतीय सेना के साथ समन्वय कराने आश्वासन स्मृति ईरानी जी ने दिया।
इस सम्मेलन के उद्देश्य बताते हुए श्रीमती ईरानी ने बताया कि विद्या भारती के वे स्कूल जिन्हें हायर सेकेन्डरी की श्रेणी तक ले जाना है, अथवा जिनको और सशक्त करना है, इस सम्मेलन में इस पर गोष्ठियां व चर्चाएं होंगी। आप सब से अनुरोध है कि भारत सरकार के ये दो तीन प्रयास ऑनलाइन निश्चित तौर पर देखें। जिनमें एक है ‘स्कूल रिपोर्ट कार्ड’ दूसरा है ‘शाला सिद्धि’, तीसरा है सीबीएसई के स्कूलों का ‘सारांश’।
स्कूल रिपोर्ट कार्ड और शाला सिद्धि के सौजन्य से स्कूल की पूरी गतिविधि, स्कूल का पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्कूल की पूरी ऐकेडमिक रिपोर्ट, हम प्राप्त करते हैं और स्कूल की पूरी ग्रडिंग कर पाते हैं। ताकि किस-किस स्कूल में किस प्रकार की सहायता देनी है, वो हम जान सकें और स्कूल के पास वो जानकारी पहुंचा सकें।
सारांश के माध्यम से यह सीबीएसई के स्कूलों में शुरु हो गया है। जिसमें छात्र का लर्निंग आउटकम, अपनी कक्षा में किस सबजेक्ट में क्या पढ़ते हैं, उसका मूल्यांकन, मूल्यांकन केवल स्कूल की दृष्टि से नहीं, अगर गणित का विषय है, छात्र के गणित का आउटकम आपके स्कूल का क्या है, यह सारांश में बिंदूवार, विद्यार्थीवार, वर्षवार उपलब्ध है। इससे आप उसके साथ पढ़ने वाले दूसरे विद्यार्थियों से उसका तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं। लेकिन यह तुलना मात्र आपके जिले तक सीमित नहीं है। यह तुलना सारे प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर तक आपके लिए उपलब्ध है।
सारांश के माध्यम से हमारा प्रयास यह है कि आनलाइन आज अगर किसी अभिभावक से पूछें कि तुलना की दृष्टि से छात्र कहां खड़ा है, पहले से अगर उसकी जानकारी हो, तो आगे के वर्षों में अपनी स्ट्रीम चुनने के लिए छात्र के लिए सहूलियत होती है ।
10+2 के स्कूलों से अनुरोध करते हुए स्मृति जी ने बताया कि भारत सरकार वर्तमान में एक नेशनल ऐप्टीट्यूड टेस्ट करने का प्रयास कर रही है। राष्ट्र के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में स्किल डेवलपमेंट मिनिस्ट्री बनाई गई है। लेकिन वह स्किल है क्या, क्या सभी बच्चे मेडिकल-इंजीनियरिंग की परीक्षा के लिए बैठें, यह सभी माता-पिता के दिल में रहता है कि उनका बच्चा इस लाइन में आगे बढ़े। क्योंकि जब कभी बच्चों से बातचीत होती है पूछने पर पता चलता है कि इस एग्जाम के लिए माता-पिता ने कहा है। कई बच्चे ग्यारहवी कक्षा में सांइस लेने के बाद बारहवीं में कहते हैं हम इसे छोड़ना चाहते हैं। आर्टस पढ़ना चाहते हैं, लेकिन कानून यह कहता है कि आपने एक बार अगर सांइस चयन कर लिया तो आप उसी में रहेंगे। इससे छात्र की सुविधा समाप्त हो जाती है। इसलिए सभी से यह अनुरोध है जब यह नेशनल ऐप्टीट्यूड टेस्ट आएगा तब आएगा लेकिन क्या विद्या भारती अपनी ओर से ऐप्टीट्यूड का मूल्यांकन करने के लिए क्या कोई समिति बना सकता है।
श्रीमती ईरानी ने बताया कि शिक्षा का लक्ष्य क्या हो, शिक्षा किसलिए हो। प्रशासन की दृष्टि से सबसे पहले स्कूल और उच्च शिक्षा के बीच की खाई को समाप्त करना होगा। साथ में बैठकर निर्धारित करना होगा कि किस प्रकार की शिक्षा हम बच्चों को देना चाहते हैं। इसके लिए नीति बनाई जाए, रूल को बदला जाए।
इसके लिए साथ में बैठकर निर्णय लें, संग बैठकर निर्णय लेने की, एक नए काम करने की शैली से उत्पन्न हुआ “समन्वय”। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र जो कक्षा आठ के बाद गरीब परिवारों में परिस्थितिवश आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते और काम पर लग जाते हैं। कुछ ग्यारवीं-बारहवीं के बाद काम पर चले जाते हैं और शिक्षा से दूर हो जाते हैं। समन्वय के माध्यम से हमने राष्ट्र को एक ऐसा उपक्रम दिया है जो शिक्षा छोड़ चुके ऐसे बच्चों दोबारा शिक्षा से जोड़ता है। उदाहरण के लिए आठवीं कक्षा के बाद किसी ने बढ़ई का काम शुरु कर दिया। उसने दो साल वह काम किया, कुछ पैसा कमाया और स्कूल छूट गया। अगर उस व्यक्ति को दोबारा पढ़ना है तो उसने कितने घंटे काम किया, वो मूल्यांकन मापदंड की दृष्टि से उसे दोबारा स्कूल में लाने के लिए मापा जाएगा। उसको मान्यता दी जाएगी। विद्या भारती समन्वय की दृष्टि से कोई नया प्रयास करे, उसका समर्थन मैं करूंगी।
उन्होंने कहा कि हमने एआईटीसी के माध्यम से सभी इंजीनियरिंग कालेज में यह सुविधा दी है कि वह अपने भवन को स्किल के लिए भी प्रयोग करना चाहते हो तो कीजिए। दूसरी शिफ्ट में अगर आप लोगों को पढ़ाना चाहते हो, स्किल डेवलपमेंट करना चाहते हैं तो आप सिखाइये सरकार आपका समर्थन करेगी। क्या यह स्कूली शिक्षा में सम्भव है कि वो लोग जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है, जिन्हें संकोच होता है कि बच्चों के साथ कक्षा में कैसे बैठें, क्या उनको वापस लाया जा सकता है। यह चर्चा का बिंदू बनना चाहिए। विद्या भारती की ओर से ऐसा प्रयास राष्ट्र के लिए एक बड़ा योगदान होगा।
स्मृति जी ने बताया कि प्रधानमंत्री जी के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे बड़ा योगदान हुआ है, जिसकी प्रेस में चर्चा नहीं होती। आज से 30 साल पहले राष्ट्र की शिक्षा नीति बनी, इसके बाद शिक्षा में जितने उतार चढ़ाव रहे, जितने प्रयोग रहे, जितनी नई बातें आईं उनका कहीं उल्लेख नहीं है। 1992 में शिक्षा नीति मोडिफाई हुई। 24 साल बाद भी जहां थे वहीं हैं।
मैंने प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया कि केवल पांच-छह लोग बैठते हैं दिल्ली में और देश की शिक्षा नीति का निर्धारण करते हैं। क्या राष्ट्र हमें नहीं बता सकता कि वो किसी शिक्षा की कल्पना करते हैं, अपेक्षा करते हैं। प्रधानमंत्री जी ने कहा कि आप ऐसा ढांचा बनाइये जिसके माध्यम से सकारात्मक विषय और शिक्षा को छूने वाले हर विषय पर राष्ट्र की शिक्षा नीति हमारे गांव बताएं कि किस शिक्षा की आप कल्पना करते हैं। 26 जनवरी 2015 में हमने यह प्रयास शुरु किया।
राष्ट्रभर में ढाई लाख गावों में जाकर पूछा कि आप कौन सी शिक्षा चाहते हैं, आपके गांवों की दरकार क्या है यह बताइये।
ढाई लाख में से एक लाख दस हजार गांववासियों ने, ग्राम पंचायतों ने अपने गांव में शिक्षा की क्या अपेक्षा है, वह आनलाईन पूरा का पूरा ढांचा अपलोड किया है। हम देश के छह हजार ब्लॉक में गए पांच हजार पांच सौ ब्लॉक थे, शिक्षा के प्रति क्या आकांक्षाएं हैं, अपेक्षाएं हैं, वो आज भारत सरकार के पास लिखित रूप में बिंदूवार उपलब्ध हैं। 1400 अर्बन लोकल बाडी, यूनेस्को और यूएन के माध्यम से युवाओं का राष्ट्रीय सर्वे, देश के इतिहास में यह पहली बार कोई ऐसा कार्यक्रम हुआ जिसमें चाहे ग्रामीण हो या शहरी, युवा हो या वरिष्ठ नागरिक सबने शिक्षा नीति के प्रति अपने बिंदु हमारे सामने पहुंचाए। हमारा प्रयास है कि आगामी एक दो माह में वो शिक्षा नीति आप सबके समक्ष आए, राष्ट्र के समक्ष आए और शिक्षा की दृष्टि से आज एक नया शंखनाद हो।
उन्होंने बताया कि आज अगर छात्रों से पूछें कि हमारे स्कूलों में पढ़ने के बाद जब वो उच्च शिक्षा संस्थाओं में आते हैं, तो उनकी सबसे बड़ी चुनौती अंग्रेजी भाषा को लेकर होती है। हिन्दी माध्यम में पढ़े बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जाता है। सहजता से समझा जाने वाला गणित जैसा विषय अंग्रेजी माध्यम के कारण उच्च शिक्षण संस्थाओं में छात्रों के लिए जटिल हो जाता है। इसलिए छात्रों की सुविधा के लिए हम “भारत वाणी” नाम का वेब पोर्टल राष्ट्र को समर्पित करेंगे जिसमें उच्च शिक्षा के सभी लर्निंग मैटीरियल 22 भारतीय भाषाओं में प्रथम वर्ष में उपलब्ध होगा और आगामी 3 वर्षों में 100 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होगा और हमारे देश के नागरिक इस सुविधा का निशुल्क लाभ ले सकेंगे। अगर विद्याभारती परिवार इस यज्ञ में अपनी ओर से योगदान देना चाहे, जो स्कूल हमारे पूर्वोत्तर में चलते हैं उनके पास अगर ऐसी कोई किताबें हों, डिजिटल सामग्री हो, दक्षिण में जो हमारे स्कूल हैं वो अगर इसमें कोई योगदान देना चाहते हैं तो मैं उनका स्वागत करूंगी।
फरवरी 21 और 22 को हमारा प्रयास है कि हम राष्ट्रभर में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाएं। यह प्रयोग हमने पिछले साल भी किया था। उन्होंने सभी प्रधानाचार्यों से निवेदन किया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को राष्ट्रीय दृष्टि से हम अपने स्कूल में कैसे मना सकते हैं। क्या इस पर आप विचार करके आप एक कार्यक्रम निश्चित कर सकते हैं।
स्मृति जी ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती दो प्रकार की है, एक है अनुसंधान की दृष्टि से, साइंस और मैथेमैटिक्स की दृष्टि से। दूसरी चुनौती है, अगर अध्यापक और छात्रों का अनुपात देखना है तो उच्च शिक्षा में सबसे अच्छा पीटीआर है सोशल साइंस की दृष्टि से एक शिक्षक को एक ही छात्र मिलता है। जब हमारे बच्चे ग्यारहवी-बारहवीं में विषयों का चुनाव करते हैं, उससे पहले दसवीं कक्षा में बैठकर सोचते हैं कि साइंस में जांए या ह्यूमेनिटी में जाएं या कामर्स में जाएं। विद्याभारती की ओर से इसके लिए एक काउंसलिंग सेशन विशेष रूप से उनके लिए हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष हमने नेशनल बुक ट्रस्ट के माध्यम से एक ‘शोध यात्री’ नाम का एक कार्यक्रम शुरु किया। शोध यात्री में हम भारत से बाहर जिन-जिन राष्ट्रों में भारत की कोई छाप छूटी हो, इतिहास की दृष्टि से, ऐसे राष्ट्रों में भारत सरकार के सौजन्य से हम विद्यार्थी, शिक्षक, इतिहासकार, पत्रकार ऐसे चार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजते हैं। ताकि वे भारत के इतिहास से जुड़े उन कणों को जो उन राष्ट्रों में हैं, उन्हें लेकर पुनः भारत आएं और उनके पूरे अनुभव पर हम किताब छापें। ऐसा शोध यात्री कार्यक्रम विद्याभारती परिवार में भी आना चाहिए, भारत के बाहर न सही देश के अंदर ही ऐसी यात्रा कर सकते हैं।
हमने पूर्वोत्तर के राज्यों में इशान विकास शुरु किया। हमने कहा कि पूर्वोत्तर के छात्रों को केवल हास्पिटेलिटी इंडस्ट्री में डालना या महानगरों का रास्ता दिखाना पर्याप्त नहीं है। अगर साइंस, गणित ओर अनुसंधान की दृष्टि से उन्हें प्रेरित करना है तो राष्ट्रभर में ऐसे शैक्षिक अनुसंधान में उन्हें खुद लेकर उनको एक अनुभव दिलाना पड़ेगा कि यह दुनिया है क्या। इसके लिए पूर्वोत्तर के एक हजार छात्रों को सरकार द्वारा डी.आर.डी.ओ., इसरो, आई.आई.टी में ले जाया गया ताकि ग्यारहवीं कक्षा में जाने से पहले ही पूर्वोत्तर के यह छात्र इन संस्थानों से परिचित हो स्वयं को इसके लिए तैयार कर सकें।
ई पाठशाला के माध्यम से हमने एनसीइआरटी की हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में जितनी सामग्री थी उसको आनलाइन और मोबाईल एप के माध्यम से उपलब्ध कराया है। ई पाठशाला में हमने सीबीएसई की भी ऐडीशनल लर्निंग को उपलब्ध कराया है। स्मृति जी ने प्रचार्यों से गरीब छात्रों को ई पाठशाला से परिचित कराने का अनुरोध किया।
उन्होंने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि भारत की गुरुकुल परम्परा में ऐसा समय आ गया है कि बच्चों की अटैंडेंस लेने की मजबूरी आ पड़ी है। आज देश के सामने चुनौती यह है कि जब लोग आधुनिकता की बात करते हैं तो कहते हैं कि अध्यापक का भी बायोबीट्रिक अटैंडेंस होना चाहिए। स्मृति जी ने सरस्वती मां से प्रार्थना करते हुए कहा कि हमारे योगदान से इसी भारत में एक दिन ऐसा आए कि बच्चा खुशी-खुशी स्कूल जाए और टीचर की अटैंडेंस लेने की नौबत न आए।
हाल ही में शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में एक संकल्प हमने लिया कि प्रत्येक राज्य में सभी सरकारी स्कूल और सभी सरकारी कालेजों के प्रिंसिपल की ट्रेनिंग और ऐसी वर्कशाप हम रखेंगे जो भारत के इतिहास में पहला ऐसा प्रयास होगा। उन्होंने सभी प्रचार्यों से इसके लिए अपेक्षा व कामना प्रकट की। विद्या भारती के विद्यालयों को कैसे और अधिक सक्षम सम्पन्न करना है इसका प्रयास मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर रहा है।
वसंत पंचमी के पावन अवसर पर पर उनके साथ मंच पर विद्या भारती के संरक्षक ब्रह्मदेव शर्मा, अध्यक्ष गोविंद प्रसाद शर्मा, महामंत्री ललित बिहारी गोस्वामी, राष्ट्रीय मंत्री अवनीश भटनागर, प्रसिद्ध उद्योगपति एमडीएच तथा महाशय चुनीलाल सरस्वती बाल मंदिर विद्यालय के चेयरमैन महाशय धर्मपाल जी उपस्थित थे।
इस अवसर पर प्रकाश जी राष्ट्रीय संगठन मंत्री विद्याभारती, इस प्राचार्य सम्मेलन के संयोजक तथा राष्ट्रीय मंत्री शिवकुमार जी, काशीपति जी राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री, हेमचन्द्र जी संगठन मंत्री उत्तर क्षेत्र विद्या भारती, सुरेन्द्र अत्री जी सह संगठन मंत्री उत्तर क्षेत्र विशेष रूप से उपस्थित थे।
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