इस्लामिक दुनिया में बढ़ा तनाव

 संजीव पांडेय==== सऊदी अरब और ईरान के बढ़ते तनाव से फिर एक बार एशियाई क्षेत्र में हलचल है। क्योंकि वर्तमान तनाव ने दोनों मुल्कों के बीच राजनयिक संबंध खत्म करने को बाध्य कर दिया है। तनाव का कारण एक शिया धर्मगुरू को सऊदी अरब में दी गई मौत की सजा है। शिया धर्म गुरु सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत से संबंधित थे जहां पर शिया आबादी काफी है। कुछ साल पहले वहां सऊदी राज परिवार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के कारण शिया धर्म गुरू को गिरफ्तार किया गया था। अब उन्हें फांसी दी गई है। लेकिन फांसी के साथ ईरान में हंगामा हो गया। ईरान में सऊदी अरब के खिलाफ प्रदर्शन हुआ। सऊदी दूतावास पर हमला किया गया। नाराज सऊदी अरब ने ईरान से कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए। यही नहीं सऊदी अरब के दबाव में बहरीन और सूडान ने भी कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए हैं। सूडान की अपनी मजबूरी है। वो सऊदी अरब के दान पर चलता है। जबकि बहरीन शिया आबादी बहुल है, लेकिन शासन में सुन्नी है। सऊदी अरब के खिलाफ एक नई लामबंदी है जो पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण एशिया तक शिया-सुन्नी संघर्ष को बढ़ाएगा।

ईरान और सऊदी अऱब के बढ़े तनाव से इस्लामिक दुनिया में गंभीर टकराव की संभावना है। इस खेल में पाकिस्तान फंस गया है। पाकिस्तान में बीस प्रतिशत आबादी शिया है। उनमें भारी गुस्सा सऊदी अरब की कार्रवाई को लेकर है। उन्होंने प्रदर्शन भी किया।

बैचेन पाकिस्तान ने सऊदी अरब और ईरान से शांति की अपील की है। पाकिस्तान को समझ में नहीं आ रहा है कि अब क्या करें। क्योंकि ईरान की बढ़ती ताकत ने पाकिस्तान को परेशान किया है। पाकिस्तान अब ईरान से टकराव के मूड में नहीं है। यही कारण था कि पाकिस्तान ने यमन के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। जब सऊदी किंग ने उनसे सहायता मांगी थी तो पाकिस्तान ने अपनी सेना को वहां भेजने से इंकार कर दिया था। सऊदी किंग चाहते थे कि पाकिस्तान यमन में सऊदी सेना की सहायता अपनी सेना भेजकर करे। क्योंकि यमन में सऊदी समर्थक शासक को हटाने वाले विद्रोही शिया थे। इन्हें ईरान का समर्थन था। पाकिस्तान के इस समय व्यापारिक हित ईरान से जुड़े हैं।

पाकिस्तान ईरान से गैस आयात कर अपना ऊर्जा संकट दूर करने का प्रयास करना चाहता है। चीन भी चाहता है कि पाकिस्तान ईरान संबंध ठीक हो। ताकि दोनों मुल्कों के रास्ते उसकी पश्चिमी सीमा तक गैस पहुंचे। पाकिस्तान के अंदर ईरान अशांति भी फैला सकता है। फिर अफगानिस्तान के अंदर ईरान की भारी घुसपैठ है। खासकर कंधार और हेरात की सीमा ईरान से लगती है। वैसे में पाकिस्तान की समस्या आंतरिक से लेकर बाह्य हो गई है।

ईरान शिया बहुल देश है। सऊदी अरब में शिया धर्मगुरू की मौत ने पूरी दुनिया के शियाओं को एकजुट होने का संदेश दिया है। इस मौत की सजा के बाद सीरिया के अलवाइट शिया गुट, लेबनान में सक्रिय हेजबोल्लाह, यमन के हाउथी शिया और ईरान एक नया रिंग बना रहे हैं। यह चारों तरफ से सऊदी अरब को घेरने के प्रयास में हैं। सऊदी अरब के सारे व्यापारिक मार्ग को ये डिस्टर्ब कर सकते हैं।

उधर सऊदी अरब का आर्थिक संकट भी बढ़ा है। विश्व बाजार में तेल की गिरती कीमतों ने सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को परेशान किया है। ईरान सऊदी अरब की अर्थव्यव्स्था पर चोट करने के लिए पूरे विश्व बाजार में सऊदी अरब से खासा सस्ता तेल और गैस बेचने को तैयार है। इससे सऊदी अरब में खासी घबराहट है। सऊदी अरब की दूसरी चिंता इस्लामिक स्टेट है। सऊदी अरब ने शुरूआत में शिया शासकों के खिलाफ ईराक और सीरिया में इन्हें खड़ा करने में मदद की। ईऱाक की बहुल आबादी शिया है। यहां के शिया शासकों के खिलाफ इस्लामिक स्टेट के हंगामे में सऊदी अरब ने पैसा दिया। सऊदी अरब ने सीरिया में असद सरकार के खिलाफ इस्लामिक स्टेट को पैसा दिया। लेकिन अब इस्लामिक स्टेट सऊदी राज परिवार को भी चुनौती दे रहा है। उनके अनुसार इस्लाम में राजपरिवार की जगह खलीफात का शासन होना चाहिए।

एशिया में शिया देशों और सुन्नी देशों के बीच बढ़ते तनाव को रूस और चीन काफी नजदीक से नजर रखे हुए हैं। भारत की नजर भी इस तनाव पर है। क्योंकि भारत के संबंध जहां शिया ईरान से काफी अच्छे हैं वहीं सुन्नी संयुक्त अरब अमीरात से भी अच्छे हैं। लेकिन सऊदी अरब के संबंध भारत के मुकाबले पाकिस्तान से अच्छे हंै। लेकिन रूस तो खुलकर शिया मुल्कों के साथ है। सीरिया में जहां शिया असद के साथ रूस खड़ा है वहीं शिया ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के समय में भी रूस ने ईरान का साथ दिया। उसे हथियार बेचने का प्रस्ताव रखा।

दरअसल रूस शिया रिंग बनाने में मदद कर रहा है, ताकि अमेरिका समर्थित सुन्नी मुल्कों को घेरा जा सके। इसमें कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात समेत कुछ और देश हैं। उधर पाकिस्तान की अपनी समस्या है। सुन्नी देश होने के बावजूद पड़ोस में ईरान का होना और अफगानिस्तान में पाकिस्तान विरोधी एक बड़ी लॉबी ने पाकिस्तान को कई फ्रंट पर मजबूर किया है। पूर्वी सीमा पर भारत एक बड़ा विरोधी देश पाकिस्तान का है। सिर्फ उत्तरी छोर पर चीन एक दोस्त के तौर पर पाकिस्तान के साथ है। वैसे में पाकिस्तान अपने भूगोल के कारण अब खुलकर सऊदी अरब के साथ नहीं हो रहा है। इस बीच रूस से भी पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियों ने सऊदी अरब की चिंता बढ़ायी है।

भारत की समस्या यह है कि पश्चिम एशिया के बढ़ते तनाव से जहां तेल की कीमतें बढ़ सकती है, वहीं इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। फिर भारत वैसे तो सस्ता तेल और गैस रूस और ईरान दोनों से लेना चाहता है, लेकिन इनके साथ खुलकर आने पर कई सुन्नी मुल्क खिलाफ हो सकते हैं। वहीं भारत चीन के पाकिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के मुकाबले ईरान के बंदरगाहों को विकसित करने की योजना बना रहा है। क्योंकि ईरान भारत का मध्य एशिया में फिलहाल प्रवेश द्वार है। अगर पाकिस्तान से संबंध ठीक होंगे तो भारत अफगानिस्तान होकर मध्य एशिया तक एक और रूट से पहुंच सकता है। लेकिन इस रूट को लेकर वर्तमान में कुछ स्थिति स्पष्ट नहीं है। वैसे में भारत से ईरान पश्चिम एशिया की राजनीति में कुछ मदद चाहेगा। लेकिन भारत न तो रूस को नाराज करना चाहता है न ही अमेरिका को नाराज करना चाहता है। वैसे में भारत की कूटनीति देखने वाली होगी। क्योंकि मध्य एशिया में ईरान-सऊदी अरब के बढ़ते तनाव का एक कारण रूस और अमेरिका के खराब होते संबंध भी हैं। वैसे में भारत को दोनों महाशक्तियों के बीच भी संतुलन स्थापित करना होगा।