शिमला, 22 मार्च (जनसमा)। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि अधिक वैकल्पिक उच्च शिक्षा प्रदाताओं को प्रोत्साहित करने के सरकार के निर्णय से व्यवस्था में जोखिम उत्पन्न हुआ है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र को बचाने की आवश्यकता है क्योंकि हिमाचल की साक्षरता और गुणात्मक शिक्षा में उच्च राष्ट्रीय प्रतिष्ठा है, और यदि कहीं कुछ ग़लत होता है तो इस प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना बेहद कठिन होगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा के बढ़ते अनियन्त्रित क्षेत्र, जो विद्यार्थियों को अपर्याप्त प्रावधान उपलब्ध करवा रहे हैं तथा राज्य की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे हैं, पर शिकंजा कसने के लिए गंभीर है।
वीरभद्र मंगलवार को यहां हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समानता सुनिश्चित बनाने के लिए वंचित वर्ग के बच्चों के प्रवेश के लिए विशेष कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों में लड़कियों तथा लड़कों को समान रूप से प्रवेश की खुली व्यवस्था होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि नियामक आयोग द्वारा अध्यापकों की पात्रता एवं विषय विशेषज्ञता के आधार पर उपयुक्त नियुक्तियां, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानदण्डों के अनुसार उन्हें समुचित वेतन वितरण तथा अन्य लाभों से सम्बन्धित शिकायतों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश माध्यमिक स्तर के उपरान्त उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे समस्त निजी संस्थानों के लिये नियामक संस्था स्थापित करने वाला देश का पहला राज्य है। इस संस्था ने शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता, शैक्षिक नियमनों तथा सार्वजनिक तौर पर शुल्क एवं अनुमोदित पाठ्यक्रमों की आॅनलाईन सूचना सुनिश्चित बनाकर शिक्षा मानदण्डों को और बेहतर बनाने में मदद की है।
वीरभद्र सिंह ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों पर कड़े नियन्त्रण के साथ-साथ आयोग ने समस्त निजी विश्वविद्यालयों में मेरिट के आधार पर प्रवेश सुनिश्चित करके विद्यार्थियों से न्याय किया है, और अब ये संस्थान यूजीसी मानदण्डों के अनुरूप एक-समान शैक्षिक कैलेण्डर को अपना रहे हैं जो आयोग की एक अन्य बेहतर उपलब्धि है।
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