छत्तीसगढ़ और उड़ीसा से लगे रायपुर-देवभोग मार्ग पर 1984 में 238 वर्ग किमी क्षेत्र में उदंती अभ्यारण्य स्थापित किया गया। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई 320 से 370 मीटर है। अभ्यारण्य का तापमान न्यूनतम 7 डिग्री से. एवं अधिकतम 40 डिग्री से.. रहता है। पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली उदंती नदी के के कारण ही इस अभ्यारण्य का नामकरण हुआ है। उदंती नदी, रायपुर जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग को दो बराबर भागों में विभक्त करती है। असंख्य पहाडि़यों की श्रृंखला एवं उनके बीच फैली हुई मैदानी पट्टियों से इस अभ्यारण्य की एक विशेष प्रकार की आकृति बनी है।
उदंती ऐसा विरल बीहड़ स्थल है, जहां सबसे बड़े स्तनपायी प्राणियों में से एक जंगली भैंसा व गौर एक साथ देखे जा सकते हैं।
उदंती की लहराती पहाडि़यां घने वनों से आच्छादित हैं। विशाल टीले के साथ इन वनों में साजा, बीजा, लेंडिया, हल्दू, धावड़ा, आंवला, सरई एवं अमलतास जैसी प्रजातियों के वृक्ष भी पाए जाते हैं। वनभूमि घास, पेड़ों, झाडि़यों व पौधों से ढंकी हुई है। अभ्यारण्य का उत्तरी-पश्चिमी भाग साल के वृक्षों से सुसज्जित है। फरवरी माह में उदंती नदी का बहाव रुक जाता है। बहाव रुकने से नदी तल में जल के सुंदर एवं शांत ताल निर्मित हो जाते हैं। यहां कुछ झरने भी हैं, जिनमें प्रसिद्ध देवधारा एवं गोदिन जलप्रपात शामिल हैं। अभ्यारण्य के अधिकतर क्षेत्रों में मानव निर्मित जलाशय पर्याप्त मात्रा में हैं। इन जलाशयों के किनारे मुक्त विचरण करते जंगली भैंसे कभी भी देखे जा सकते हैं।
उदंती में पक्षियों की 12 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें कई प्रवासी पक्षी शामिल हैं। इनमें से कुछ हैं जंगली मुर्गे, फेजेन्ट, बुलबुल, ड्रोंगो, कठफोड़वा आदि। इस अभयारण्य में चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर एवं सियार आसानी से देखे जा सकते हैं। तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते, जंगली बिल्ली, साही लोमड़ी, धारीदार लकड़बग्घा, गौर, चौसिंगा एवं हिरण भी पाए जाते हैं। बाघ हालांकि काफी संख्या में हैं लेकिन स्वभाव से शर्मीले होने की वजह से कभी कभी ही दिखाई देते हैं।
इस अभ्यारण्य के निर्माण का विशिष्ट कारण विलुप्त प्रजातियों का मौजूद होना है, जैसे जंगली भैंसा, बिबालुस, बुबालिस जो कि सिर्फ असम एवं छत्तीसगढ़ में ही पाए जाते हैं।
इस अभयारण्य में घूमने के लिए 1 नवंबर से 30 जून का समय काफी ठीक है। आवास के लिए वन विश्राम गृह एवं लोक निर्माण विभाग का एक विश्रामगृह है। इनके आरक्षण के लिए वनमण्डलाधिकारी, उदंती, गरियाबंद औरअधीक्षक, उदंती, मैनपुर से संपर्क किया जासकता है। पर्यटक अपने लिए जीप, कार रायपुर, गरियाबंद एवं मैनपुर से किराये पर ले सकते हैं।
दर्शनीय स्थल
गोड़ेना फाल : यह जलप्रपात कलाझर ग्राम से 8 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थल तक पहुंचने के लिए घने वन एवं नदी के किनारे लगभग 800 मीटर पैदल चलना पड़ता है। रंगबिरंगी चट्टानों के सामान्य ढाल से लगभग 250 मी बहते हुए पानी को बच्चे, फिसल मिट्टी के रूप में भी उपयोग करते हैं। यह स्थल एकांत में है एवं बहुत ही मनोरम है, जहां झरने की कलकल की ध्वनि, पहाड़ी से बहती हुई सुनाई देती है। पर्यटकों के लिए पिकनिक का यह अच्छा स्थान है।
देवधारा जलप्रपात : तौरेंगा से 17 किमी की दूरी पर यह जलप्रपात है। यहां पहुंचने के लिए 1.5 किमी पैदल चलना पड़ता है। मिश्रित वनों से घिरा हुआ यह स्थान बहुत ही खूबसूरत है। बहुत बड़ी चट्टान के नीचे पूर्ण कटाव से ऐसा लगता है जैसे चट्टान आसमान में हों, नीचे गहरा जल भराव है। 40 फुट की उंचाई से गिरती जलधारा एवं पीछे दूर तक नदी में भरा हुआ जल एक अद्भुत दृश्य बनाता है।
सिकासेर जलाशय: अभ्यारण्य पहुंच मार्ग पर रायपुर-देवभाग राज्यमार्ग पर धवलपुर से 3 किमी पहले बाएं और 16किमी की दूरी पर स्थित सिकासेर जलाशय है जो पैरी नदी पर बना है, जहां ऊपर एवं नीचे दोनों स्थानों पर सुंदर मंदिर हैं। ऊपर पहाड़ी पर अति सुंदर प्राकृतिक कुण्ड है, जहां प्रतिवर्ष मेला लगता है। इसी जलाशय पर जल विद्युत संयंत्र निर्माणाधीन है। जलाशय के नीचे लगभग 700 मीटर तक प्राकृतिक ढलानी चट्टानों से लगातार बहता हुआ पानी बहुत ही सुंदर लगता है। कई स्थानों पर चट्टानों के बीच ठहरा हुआ पानी प्राकृतिक स्वीमिंग पूल बनाता है।
कैसे पहुंचें
वायु मार्ग: रायपुर ;175 किमी निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम एवं चैन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग: हावड़.मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर समीपस्थ रेलवे जंक्शन है।
सड़क मार्ग: पर्यटक अपने लिए जीप,कार रायपुर, गरियाबंद एवं मैनपुर से किराये पर ले सकते हैं।
सौजन्य: छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल।
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