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उप्र चुनाव : एक-तिहाई मतदाताओं के लिए बिजली कटौती प्रमुख मुद्दा

उत्तर प्रदेश के चुनावी सर्वेक्षण में शामिल करीब एक-तिहाई मतदाताओं ने कहा कि बिजली कटौती प्रदेश में सबसे बड़ी समस्या है। आंकड़ा विश्लेषक कंपनी फोर्थलायन टेक्नोलॉजीज द्वारा इंडियास्पेंड के लिए किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 11 फरवरी से मतदान शुरू हो रहे हैं। इसमें 13.8 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे।

फोर्थलायन ने राज्य में पंजीकृत 2,513 मतदाताओं से टेलीफोन के जरिए साक्षात्कार किया।

यह फोटो केवल संदर्भ के लिए है                  –आईएएनएस

साक्षात्कार में भाग लेने वाले करीब 28 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि राज्य में बिजली कटौती सबसे बड़ा मुद्दा है। करीब 20 फीसदी ने रोजगार, अर्थव्यवस्था और विकास को सबसे बड़ा मुद्दा बताया, जबकि 10 फीसदी ने कहा कि साफ पानी की कमी सबसे बड़ा मुद्दा है।

वहीं, कुछ मतदाताओं ने कहा कि सड़क, भोजन, नोटबंदी, अपराध, भ्रष्टाचार, कृषि, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा सबसे बड़े मुद्दे हैं।

जनसंख्या के आकड़ों के अनुसार, बिजली को ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में इस्तेमाल करने वाले घरों की संख्या बढ़कर वर्ष 2011 में 36.8 फीसदी हो गई, जो कि वर्ष 2001 में 31.9 फीसदी थी। इसमें शहरी और ग्रामीण इलाकों में एक बड़ा अंतर है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2011 में 81.4 फीसदी शहरी घरों में बिजली को प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया गया, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या केवल 23.7 फीसदी रही।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 के अंत तक उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के 1,77,000 घरों में बिजली नहीं थी। मार्च 2014 में इसकी संख्या 1,85,900 थी।

फोर्थलायन-इंडियास्पेंड के सर्वेक्षण में पता चला कि यहां तक कि जिन घरों में बिजली है, उन्हें भी बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। सर्वेक्षण में शामिल 38 फीसदी लोगों का कहना है कि वे रोज बिजली कटौती का सामना करते हैं, जबकि 16 फीसदी का कहना है कि उन्हें हर दिन नहीं, लेकिन साप्ताहिक रूप से बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है।

ज्यादातर घरेलू महिलाओं और ग्रामीण मतदाताओं को पुरुषों और शहरी मतदाताओं की तुलना में बिजली कटौती का ज्यादा सामना करना पड़ता है।

नई दिल्ली के थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के वरिष्ठ सदस्य नीलांजन सरकार ने कहा, “बिजली कटौती एक गंभीर मुद्दा है और इसलिए मतदाता इसे शिक्षा और स्वास्थ्य की तुलना में एक बड़ी समस्या के रूप में देख सकते हैं।”

सर्वेक्षण में शामिल 20 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है।

श्रम मंत्रालय के आकंड़ों के अनुसार, राज्य में कामगार आबादी की संख्या 2009 से 2015 के बीच प्रति 1,000 व्यक्ति पर 82 से घटकर 52 रह गई। लेकिन यह भारतीय औसत (37) से ज्यादा है। बेरोजगार युवाओं की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। 2015-16 में 18-29 के उम्र वर्ग में प्रति 1,000 व्यक्तियों पर यह संख्या 148 पाई गई।

यहां तक कि स्नातक भी बेरोजगार हैं, जो राज्य में नौकरियों की कमी और शिक्षा की खराब गुणवत्ता की ओर इशारा करता है।

2014 की एक रपट के अनुसार, उदाहरण के तौर पर भारत में 97 प्रतिशत लोग सॉफ्टवेयर या कोर इंजीनियरिंग में नौकरियां चाहते थे, लेकिन उनमें से केवल तीन प्रतिशत ही सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की नौकरियों के लिए उपयुक्त थे और केवल सात प्रतिशत ही कोर इंजीनियरिंग का काम करते थे।

श्रम मंत्रालय के 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार, कामगार उम्र के प्रति 1,000 लोगों में से 237 स्नातक शिक्षा प्राप्त उत्तर प्रदेश में बेरोजगार हैं।

–आईएएनएस