नई दिल्ली, 21 जुलाई | केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने सरकारी कामकाज में हिंदी की निरंतर उपेक्षा पर गहरा रोष जताया है। अपने मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति की बुधवार को नई दिल्ली में हुई बैठक में उन्होंने कहा, “अंग्रेजी की जकड़न से न निकल पाना एक मनोरोग है। जिसका इलाज किया जाना बहुत जरूरी है।” मंत्री ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों से कहा कि वे सरकारी फाइलों में हिंदी के प्रयोग की शुरूआत अपनी टिप्पणियां हिंदी में लिखकर कर सकते हैं।
भारती ने मंत्रालय के उपक्रमों और अन्य संगठनों से कहा कि वे महत्वपूर्ण बैठकों, गोष्ठियों और सम्मेलनों की कार्यसूची पहले हिंदी में तैयार करे और बाद में उसका अंग्रेजी अनुवाद करे। उन्होंने कहा कि सरकारी कामकाज में बातचीत की हिंदी को बढ़ावा दिया जाए। जिसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।
जल संसाधन मंत्री ने कहा कि यह अत्यंत दु:ख और शर्म का विषय है कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने के 68 साल बाद भी हम अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्त नहीं हो पाये हैं। उन्होंने कहा, “अपनी भाषा पर जिसे गर्व नहीं होता वह रीढहीन समाज होता है।”
सलाहकार समिति की बैठक लगभग तीन वर्ष के अंतराल पर आयोजित किए जाने पर अफसोस जताते हुए मंत्री ने निर्देश दिया कि आगे से इसकी बैठक हर तीन महीने पर कम से कम एक बार अवश्य आयोजित की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ बैठक आयोजित करने से ही हमारा उद्देश्य पूरा नहीं होगा। पिछली बैठकों के फैसलों पर समुचित कार्रवाई न किए जाने पर दु:ख जताते हुए भारती ने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन बैठकों में लिए गए फैसलों पर निश्चित समयावधि के अंदर कार्यान्वयन हो।”
अपने समापन भाषण में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्यमंत्री संजीव बालियान ने कहा कि हम सभी को सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरल हिंदी का प्रयोग करना चाहिए और इसमें गर्व भी महसूस करना चाहिए।– आईएएनएस
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