उम्मीद है महिलाओं के लिए प्राथमिकी प्रक्रिया सुधरेगी : अमिताभ

मुंबई, 27 सितम्बर | हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘पिंक’ में ‘जीरो एफआईआर’ प्रणाली पर प्रकाश डाला गया और साथ ही इस पर रोशनी डाली गई कि कितनी महिलाओं को उन कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में नहीं पता, जो उनकी मदद कर सकती हैं।

इस मुद्दे पर फिल्म में वकील के किरदार में नजर आए मेगास्टार अभिनेता अमिताभ बच्चन का कहना है कि मंत्रियों ने इस बात की उम्मीद दिलाई है कि महिलाओं के लिए एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया को जल्द ही आसान बनाने के लिए कानून में कुछ बदलाव किए जाएंगे।

‘पिंक’ एक फिल्म से अधिक एक अभियान है। इस फिल्म के प्रभाव की उम्मीद के बारे में पूछे जाने पर अमिताभ ने कहा, “हमने नहीं सोचा था, लेकिन जिस प्रकार की प्रतिक्रिया हमें मिली है और जिस प्रकार का प्रभाव इसने निजी तौर पर लोगों पर डाला है, विशेषकर महिलाओं पर उससे काफी खुश हूं।”

इस फिल्म ने काफी अच्छी कमाई की है और समय गुजरने के साथ इसकी कमाई में बढ़ती जा रही है। इसके इस स्तर को छूने की संभावना के बारे में अमिताभ ने कहा, “लोगों की जुबान फिल्म के लिए काफी काम करती है। इसके लिए एक अलग से कोई विपणन क्षेत्र नहीं होता। हालांकि, कहीं न कहीं शूजित सरकार ने काफी आत्मविश्वासी काम किया है। लोगों ने जब यह फिल्म देखी, उन्होंने इस पर प्रतिक्रिया दी और इसका प्रचार किया। यहीं असल में हुआ।”

फाइल फोटो : आईएएनएस 

काफी कम फिल्मों में ही लोगों की मानसिकता को बदलने की क्षमता होती है और ‘पिंक’ उनमें से एक है। इस अभियान में किसी अन्य फिल्म को जोड़ने के बारे में पूछे जाने पर अमिताभ ने कहा कि हर फिल्म का अपना एक अलग संदेश होता है। अभिनेता के लिए अन्य फिल्मों में कोई भिन्नता नहीं होती, क्योंकि यह बेकार की चीज होती है।

महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को उठाने वाली और एफआईआर दर्ज करने की प्राथमिकता दर्शाने वाली ‘पिंक’ के बारे में अपने बयान में अमिताभ ने कहा कि कुछ सरकारी मंत्रियों ने इसे देखा है और उन्होंने एक उम्मीद बंधाई है कि वे कानूनों में बदलाव करेंगे।

‘पिंक’ में इस बात को साफ स्पष्ट किया गया है कि एक महिला की ना का मतलब ना होता है। देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के कम होने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर अमिताभ ने कहा, “मेरा मानना है कि शिक्षा, कानून, नैतिक और सामाजिक क्षेत्र में बदलाव की प्रक्रिया में सचेत प्रयास से परिणाम देखने को मिल सकते हैं। माता-पिता के संस्कार और युवाओं में कुछ मूल्यों का होना काफी जरूरी है।”

महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों से लड़ने के बारे में बात होती है, लेकिन क्या इस हिंसा को कम करने हेतु पुरुषों को शिक्षित करना जरूरी है? इस बारे में मेगास्टार ने कहा, “हां, बेटों को भी इस संबंध में शिक्षित करना बेहद जरूरी है। उनका पालन-पोषण इस प्रकार किया जाए कि वह समानता को समझें। हां, कानून महिलाओं का पक्ष लेता है और कई मामले ऐसे रहे हैं, जहां इन कानूनों का गलत इस्तेमाल भी हुआ है। हालांकि, आशा है कि समय के साथ इसमें संतुलन बनेगा।”

अमिताभ ने हाल ही में अपनी पोती अराध्या के लिए एक पत्र लिखा था, जिसके बाद कई लोगों ने इस मुद्दे को उठाया था कि उन्होंने यह पत्र अपने पोते के लिए क्यों नहीं लिखा?

इस पर अमिताभ ने कहा कि अगर आप उस पत्र को सही तरह से पढ़ें, तो आपको पता चलेगा कि वह जाहिर तौर पर लड़कियों को संबोधित है। हालांकि, यह लड़कों को भी एक संदेश देता है।

हाल ही में न्यायमूर्ति मरक डेय काटजू ने अमिताभ के बौद्धिकता पर आलोचनात्मक टिप्पणी की थी। इस अप्रत्याशित हमलों से जूझने के बारे में पूछे जाने पर अमिताभ ने कहा, “उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया, यह तो उन्हीं से पूछा जाना चाहिए। एक आजाद समाज में हर किसी के पास अपनी बात जाहिर करने का आधिकार है। मैं उनकी बात से सहमत हूं। वह सही हैं और मेरे दिमाग में कुछ भी नहीं है।”

‘पिंक’ के बाद इस प्रकार के मजबूत सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों को करने की इच्छा के बारे में अमिताभ ने कहा कि उन्होंने पहले ही कहा है कि हर फिल्म अपने आप में एक संदेश देती है।

सुभाष के.झा===