नई दिल्ली, 14 जुलाई | सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार के उस अध्यादेश की वैधता को संदेहास्पद करार दिया जिससे मौजूदा शैक्षिक सत्र के लिए राज्य मेडिकल के अंतर स्नातक (अंडर ग्रेजुएट) पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) की उपेक्षा कर अपने स्तर पर प्रवेश परीक्षा आयोजित कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे, शिवकीर्ति सिंह, और आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने उस की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, क्योंकि देश के 50 फीसदी से अधिक राज्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा ले चुके हैं। हालांकि पीठ ने कहा कि ‘प्रथम दृष्टया हम पाते हैं कि अध्यादेश की वैधता संदेहास्पद है।’
स्वयंसेवी संस्था संकल्प ने शीर्ष अदालत से अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की थी। उसमें कहा गया था कि अदालत के फैसले को एक साल तक रोकने के लिए अध्यादेश लाया गया है। यह स्पष्ट तौर पर न्यायिक अधिकार का सनदी इस्तेमाल है।
प्रत्यक्ष तौर पर सरकार के अध्यादेश का रास्ता अपनाने से नाखुश नजर आ रही पीठ ने कहा कि अध्यादेश जरूरी नहीं था। एनईईटी का मकसद न्यूनतम मानदंड के साथ एक समान परीक्षा है।
न्यायमूर्ति दवे ने कहा कि अदालत के आदेश को देखते हुए ऐसा नहीं होना चाहिए था।–आईएएनएस
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