नई दिल्ली, 21 जुलाई | विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बुधवार को जोर देते हुए कहा कि सियोल में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता न पाना भारत की ‘नाकामी’ नहीं है और देश चीन का समर्थन लेने के लिए उससे संपर्क बनाए रखेगा। प्रश्नकाल के दौरान सुषमा ने लोकसभा में कहा, “चीन ने प्रक्रियागत अडं़गा डाला। मैं एक बार फिर यह बात दोहरा रही हूं। उन्होंने कहा कि जिन देशों ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, वे देश एनएसजी के सदस्य नहीं बन सकते। लेकिन, इस मुद्दे पर चीन के साथ हमारा संपर्क बना हुआ है।”
तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सौगत बोस के सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्री ने कहा, “चीन ने अगर ना कह दिया है, तो हम प्रयास करना नहीं छोड़ सकते। इस संसद में भी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक का कांग्रेस विरोध कर रही है, लेकिन बाकी सभी पार्टियां तैयार हैं। हम उसे आगे बढ़ाने का काम जारी रखेंगे। उसी तरह चीन के साथ भी हम अपने प्रयास जारी रखेंगे।”
मंत्री ने इस बात से इंकार किया कि सरकार ने इस साल एनएसजी की सदस्यता को लेकर भारत के प्रयासों का बेतहाशा प्रचार (हाईप)किया।
जादवपुर से सांसद बोस ने कहा कि कुछ बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने में कोई शर्म नहीं है, लेकिन सरकार ने जिस प्रकार अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया, उसे लेकर उन्होंने सवाल उठाए।
उन्होंने खासकर भारत व चीन के बीच संबंधों में तनाव पर चिंता जताई।
एक अन्य सवाल के जवाब में सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत कभी एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, लेकिन जनादेश का सम्मान करेगा। उन्होंने कहा, “इसके लिए कुछ श्रेय पिछली सरकार (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) को भी जाता है।”
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सदस्य सुप्रिया सुले द्वारा पूछे गए एक पूरक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा, “साल 2008 में भारत को असैन्य परमाणु संबंधी छूट व एनएसजी सदस्यता के बीच का अंतर किसी इमारत के बरामदे में बैठना और कमरे के अंदर दाखिल होने के समान है।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदस्यों द्वारा मेजें थपथपाकर उनका स्वागत करने के बीच उन्होंने कहा, “एनएसजी सदस्यता का एक महत्वपूर्ण लाभ यह होगा कि भारत एनएसजी के लिए फैसले लेने में भागीदार होगा।”
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