नई दिल्ली, 29 फरवरी (जनसमा)। भारत सरकार के टेक्नोलाॅजी परिदृश्य (विज़न)-2035 की रिपोर्ट में कहा गया है कि हम अपने संयुक्त प्रयासों से आकांक्षा के अनुरूप टेक्नोलाॅजी के क्षेत्र में तरक्की करना चाहते हैं तो शोध और अनुसंधान पर आधारित चीजों को बाज़ार में लाना होगा।
यह जानकारी हाल ही में आयोजित ‘इण्डिया-चाइना टेक्नोलोजी ट्रांसफर, कोलोबरेटिव इनोवेशन एण्ड इनवेस्टमेंट कांफ्रेस’ में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन परिषद् (टाइफैक) के वरिष्ठ वैज्ञानिक संजय सिंह ने अपने विजुअल प्रजेन्टेशन के दौरान दी।
सिंह का सुझाव है कि एमएसएमई क्षेत्र में आर एण्ड डी की उपयुक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं इसलिए देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों को इस क्षेत्र से संबद्ध कर दिया जाए ताकि तकनीकी ज्ञान का लाभ उठाया जासके।
भारत में नई खोज करने वालों की कोई कमी नहीं है लेकिन नई खोजों को बाजार में उतारने वालों और खोजकर्ताओं के बीच गहरी खाई है। दोनों का सामंजस्य करना बहुत आवश्यक है। ऐसा नहीं होने के कारण बहुत सारी विकसित टेक्नोलाॅजी का कोई संस्करण बाजार में नहीं आ पाता है।
वर्ल्ड बैंक का कहना है कि इस बात की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि एक ऐसा नेटवर्क बनाया जाए जिसमें प्रोफेशनल एजेंसीज और टेक्नोलाॅजी के व्यवसायीकरण के बीच की दूरियां कम हो सकें और प्रोटोटाइप प्रोडक्ट को आवश्यकता के अनुरूप् बाजार में उतारा जा सकें।
टाइफैक का सुझाव है कि कैपिटल नेटवर्क के बिना कोई भी टेक्नोलाॅजी बाजार में सफलतापूर्वक नहीं उतारी जा सकती और न ही उसकी तरक्की हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि भारत में टेक्नोलाॅजी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को उन निर्माताओं के साथ संबद्ध किया जाए जो उस तरह की तकनीक को बाजार में उतारने के लिए तैयार और उत्सुक हों।
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