कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा कश्मीर का सोनमर्ग

 शेख कयूम=== “कहां है सोनमर्ग? मुझे तो यहां सिर्फ ईंट-पत्थरों और लोहे से बने कंक्रीट के जंगल नजर आ रहे हैं।” एक स्थानीय पर्यटक की बातों में छिपा यह रोष इंसानी लालच के कारण ‘मीडो ऑफ गोल्ड’ के नाम से विख्यात कश्मीर के मशहूर पर्यटन स्थल सोनमर्ग की नैसर्गिकता के ध्वंस को बयां करने के लिए काफी है।

जम्मू एवं कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर से 85 किलोमीटर उत्तर श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर स्थित सोनमर्ग में थाजिवास ग्लेशियर भी है, जो पर्यटन के मुख्य आकर्षणों में से एक है। लेकिन यह ग्लेशियर भी सिकुड़ रहा है और कश्मीरी भू-वैज्ञानिक शकील रोमशू के शब्दों में कहें तो वास्तव में यह ‘तेजी से विलुप्त’ होने की कगार पर है।

बकौल शकील, “आपको जानकर हैरानी होगी कि यह दुनिया का एकमात्र ग्लेशियर है, जहां आगंतुकों को आधार तक वाहन से जाने की अनुमति है। लोगों की भीड़ के कारण यहां होने वाली गर्माहट और प्रदूषण दूसरे अन्य कारण हैं, जो इसे नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

इससे नीचे सोनमर्ग में कश्मीर के कुछ बड़े व्यावसायी होटल बना रहे हैं और विकास के नाम पर विध्वंस का अंतहीन सिलसिला जारी है।

सिंध नदी के तट पर स्थित सोनमर्ग में पर्यावरण को जिस तेजी के साथ नुकसान हो रहा है, उसे देखते हुए लगता नहीं कि यह इसे लंबे समय तक झेल पाएगा।

यहां पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने एक विकास प्राधिकरण बनाया है, जिसे सोनमर्ग में निर्माण कार्यो की निगरानी और यहां के पारिस्थितिकी-तंत्र को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि किसी भी तरह के गैर-कानूनी निर्माण को अनुमति नहीं दी जा रही है। यहां तक कि स्वीकृत मास्टर प्लान से संबंधित नियमों के छोटे से उल्लंघन पर भी दोषियों को बख्शा नहीं जा रहा है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या अपेक्षाकृत एक छोटे से हिल स्टेशन पर बहुतायत में निर्माण कार्यो को मंजूरी दी जानी चाहिए, भले ही वे कानूनी रूप से मान्य हों।

इस बारे में श्रीनगर के एक कॉलेज में पर्यावरण विज्ञान पढ़ाने वाले मंशा निसार का कहना है, “बिल्कुल नहीं। हमें पर्यटकों को बड़ी संख्या में सोनमर्ग जैसे स्थानों पर जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, जो वहां रोजाना जाना चाहते हैं। यह खतरनाक होगा। हमें रोजाना वहां जाने वाले पर्यटकों की संख्या सीमित करनी चाहिए और होटलों में दी जाने वाली जगह को भी सीमित किए जाने की जरूरत है।”

सोनमर्ग में स्थानीय और बाहरी पर्यटकों की बड़ी संख्या इस मौसम में पहुंच रही है और यदि घाटी में सुरक्षा हालात सामान्य तथा स्थिति शांतिपूर्ण रही तो यहां और भी पर्यटकों के पहुंचने की उम्मीद है।

इसके अतिरिक्त 3,00,000 उन श्रद्धालुओं की संख्या भी है, जो अमरनाथ यात्रा के दौरान पवित्र गुफा तक पहुंचने के लिए पास के बालताल आधार शिवर का इस्तेमाल करते हैं।

अमरनाथ यात्रा का कुछ भार भी सोनमर्ग पर पड़ता है, क्योंकि कुछ श्रद्धालु रिजॉर्ट से गुजरते हैं और यात्रा समाप्त करने के बाद उनमें से अधिकांश यहां एक या दो दिन गुजारना चाहते हैं।

कश्मीर में पर्यटन स्थलों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य सरकार का पूरा ध्यान यहां पर्यटकों की आमद बढ़ाने पर है, जिसके जरिये वह 1980 के आखिरी दशक में यहां पनपे आतंकवाद से हुई क्षति की भरपाई करना चाहती है।

एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ इंजीनियर नासिर हुसैन (64) के अनुसार, “आगंतुकों की संख्या को नियमित करना किसी की प्राथमिकता में नहीं है। इसके बजाय राज्य सरकार यहां अधिक पर्यटकों को लाने वाले पर्यटन एवं यात्रा संचालकों के लिए प्रोत्साहनों एवं सुविधाओं की घोषणा करती है। बॉलीवुड की शूटिंग इकाइयों को वीवीआईपी व्यवस्था मिलती है, उन्हें नि:शुल्क सुरक्षा कवर प्राप्त होता है। यहां सामान्य स्थिति दर्शाने के लिए आधिकारिक संरक्षण के साथ-साथ दोपहर तथा रात के भोजन की भी व्यवस्था की जाती है।”

हुसैन के अनुसार, “हो सकता है कि यह पूर्व में सही रहा हो, पर आज हमें पूरे हालात पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। हमें आने वाली पीढ़ी के लिए इसे बचाने की जरूरत है, ताकि वे सोनमर्ग, गुलमर्ग तथा पहलगाम को सच में देख सकें, न कि फोटो पोस्टकार्ड या बॉलीवुड सिनेमा के जरिए ही इसकी छवि का एहसास कर पाएं।”

कश्मीर के पर्यटन एवं विरासत स्थलों को सुरक्षित रखने का मंत्र वास्तव में पारिस्थितिकी एवं व्यवसाय के बीच संतुलन में निहित है। पारिस्थितिकी को ध्यान में रखकर नियम-कानून बनाने की जरूरत है, वरना सोनमर्ग जैसे स्थान आने वाले दिनों में धनाढ्यों के ड्राइंग रूप में केवल फोटोफ्रेम में नजर आएंगे।