कपड़े और जूते : क्‍या भारत कम कौशल के विनिर्माण की पुन:-प्राप्ति कर सकता है?

भारत को औपचारिक और उत्‍पादक रोजगार सृजन करने की आवश्‍यकता है। ऐसे रोजगार जो निवेश की तुलना में सहजता प्रदान करते हों, जिनमें व्‍यापक सामाजिक परिवर्तन की क्षमता हो और जिससे निर्यात और विकास होता हो। परिधान तथा चमड़ा और जूता क्षेत्र इनमें से अनेक मानकों को पूरा करते हैं और इस तरह ये क्षेत्र लक्ष्‍य के लिए उचित हैं। ये क्षेत्र रोजगार सृजन के अपार अवसर प्रदान करे हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए। इस तरह ये क्षेत्र सामाजिक परिवर्तन के वाहक बनते जा रहे हैं।

भारत के पास परिधान, चमड़ा और जूता क्षेत्र को प्रोत्‍साहित करने का अवसर है क्‍योंकि चीन में पारिश्रमिक स्‍तर में वृद्धि हो रही है और परिणामस्‍वरूप इन उत्‍पादों में चीन के बाजार हिस्‍से में या तो ठहराव आ रहा है या कम हो रहा है। भारत के अधिकतर राज्‍यों में पारिश्रमिक लागत कम होने के कारण भारत चीन की गिरती हुई स्‍पर्धा क्षमता का लाभ उठा सकता है लेकिन दुर्भाग्‍यवश चीन द्वारा खाली की गई जगह परिधान के क्षेत्र में बांग्‍लादेश और वियतनाम भर रहे हैं और चमड़ा तथा जूता क्षेत्र में वियतनाम और इंडोनेशिया आगे बढ़ रहे हैं।

परिधान और चमड़ा क्षेत्र की चुनौतियां समान हैं। इन चुनौतियों में लॉजस्टिक, श्रम विनिमयन तथा कर और शुल्‍क नीति हैं। स्‍पर्धी देशों की तुलना में अंतर्राष्‍ट्रीय कारोबारी माहौल भी अलाभकारी हैं। इसके अतिरिक्‍त चमड़ा और जूता क्षेत्र नीति संबंधी चुनौती झेल रहे हैं। ये नीतियां निर्यात के तुलनात्‍मक अवसरों- पशुओं की पर्याप्‍तता- से रोकती हैं।

लॉजिस्टिक के मामले में दूसरे देशों की तुलना में लागत अधिक है और फैक्‍टरी से सामान की प्राप्ति और सामानों को नियत स्‍थान पर भेजने में समय लगता है।

इस क्षेत्र में भारत का तुलनात्‍मक लाभ है श्रम लागत, लेकिन यह अभी अनुकूल रूप से काम नहीं कर रहा है। न्‍यूनतम समय से अधिक कार्य के लिए भुगतान से जुड़ी विनियमों की समस्‍याएं हैं। अनेक आवश्‍यक अभियान करने पड़ते हैं, जो छोटे प्रतिष्‍ठानों में कम मजदूरी के मजदूरों के लिए वास्‍तव में कर बन जाते हैं और परिणामस्‍वरूप 45 प्रतिशत कम वेतन होता है। अल्‍पकालिक कार्य में लचीलेपन का अभाव होता है और कुछ मामलों में न्‍यूनतम मजदूरी अधिक होती है।

परिधान और जूता दोनों क्षेत्रों में शुल्‍क नीतियां बाधक हैं। इससे भारत को निर्यात स्‍पर्धा में कठिनाई हो रही है। भारत कॉटन फाइबर पर 6 प्रतिशत शुल्‍क की तुलना में मानव निर्मित फाइबर पर 10 प्रतिशत शुल्‍क लगाता है। दूसरी ओर, घरेलू कर मानव निर्मित फाइबर पर आधारित उत्‍पादन की तुलना में कपास आधारित उत्‍पादन के पक्षधर हैं और बिना चमड़े के जूतों की तुलना में चमड़े के जूतों के अनुकूल हैं।

परिधान क्षेत्र में वैश्विक मांग का रुझान कपास फाइबर उत्‍पादों से हटकर मानव निर्मित फाइबर की ओर बढ़ रहा है। इसी तरह जूते से गैर-चमड़ा की ओर रुझान में वृद्धि हो रही है। इसके समाधान के रूप में उन घरेलू नीतियों को तर्कसंगत बनाने की आवश्‍यकता है, जो वैश्विक मांग के अनुरूप नहीं हैं।

परिधान, चमड़ा तथा जूता के मामले में भारत के स्‍पर्धी निर्यातक संयुक्‍त राज्‍य अमरीका और यूरोपीय समुदाय के बाजारों में शून्‍य और कम से कम न्‍यूनतम शुल्‍क के बल पर बाजार तक पहुंच रहे हैं।

भारत की विशाल पशु आबादी के बावजूद भारत का पशु चमड़ा निर्यात कम है और निर्यात में भारत में वध के लिए पशुओं की सीमित उपलब्‍धता के कारण कमी आ रही है।

जून 2016 में कपड़ा और परिधान क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा स्‍वीकृत पैकेज में अनेक कदम उठाए गए हैं। कपड़ा और परिधान प्रतिष्‍ठान रोजगार बढ़ाने के लिए सब्सिडी (राज सहायता) प्राप्‍त करेंगे। इस सब्सिडी की प्रतिपूर्ति निम्‍नलिखित कार्रवाइयों से की जा सकती है :

· परिधान के मामले में यूरोपीय संघ तथा ब्रिटेन के साथ एफटीए से भारत के स्‍पर्धी देशों-बांग्‍लादेश, वियतनाम तथा इथियोपिया से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकेगी। चमड़ा और जूता के मामले स्‍पर्धियों की तुलना में एफटीए से भारत को लाभ होगा। दोनों ही मामलों में प्रभाव सकारात्‍मक रहेगा।

· वस्‍तु और सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से घरेलू अप्रत्‍यक्ष करों को तर्कसंगत बनाने का शानदार अवसर प्राप्‍त होगा, जिससे मानव निर्मित फाइबर के उपयोग से कपड़े के उत्‍पादन की तुलना में परिधानों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा और जूतों के मामले में गैर-चमड़ा आधारित जूतों के उत्‍पादन की तुलना में कोई भेदभाव नहीं होगा।

· अनेक श्रम कानून सुधारों से इन दो क्षेत्रों में रोजगार सृजन को प्रोत्‍साहन मिलेगा।

****