कश्मीरी अलगाववादियों की फंडिंग के खिलाफ याचिका

नई दिल्ली, 8 सितम्बर | सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जता दी है, जिसमें केंद्र व जम्मू एवं कश्मीर सरकार द्वारा अलगाववादी समूहों व उनके नेताओं को दी जाने वाली वित्तीय मदद को बंद करने की मांग की गई है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिल आर.दवे तथा न्यायमूर्ति एल.नागेश्वर राव की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ से याचिकाकर्ता अधिवक्ता एम.एल.शर्मा ने कहा कि राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में संलग्न अलगाववादी नेताओं को सरकार द्वारा वित्तीय मदद दी जा रही है, उन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई गई है और उनके यात्रा खर्चो को वहन किया जा रहा है।

याचिका पर जल्द से जल्द सुनवाई की मांग करते हुए शर्मा ने न्यायालय से कहा कि भारत सरकार के कोष को अलगाववादी समूहों पर खर्च किया जा रहा है जो असंवैधानिक है, क्योंकि संसद ने इसकी मंजूरी नहीं दी है।

न्यायालय ने कहा कि अगर सभी प्रक्रियागत औपचारिकताएं पूरी हो गईं तो याचिका पर 14 सितंबर को सुनवाई होगी।

अलगाववादी समूहों पर सरकारी कोष के खर्च के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच का आदेश देने की मांग करते हुए शर्मा ने जम्मू एवं कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक अजात शत्रु सिंह का संदर्भ देते हुए कहा कि बीते पांच वर्षो में केंद्र व राज्य सरकारों ने अलगाववादी समूहों व उनके नेताओं पर कुल 560 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

याचिका में कहा गया है कि अलगाववादी युवा कश्मीरियों को विरोध-प्रदर्शन के लिए उकसा रहे हैं, जिसके कारण बीते दो महीनों से पूरी कश्मीर घाटी अस्त-व्यस्त है। अलगाववादियों की सुरक्षा में 950 सुरक्षाकर्मी लगे हैं।

शर्मा ने यह भी दावा किया कि पाकिस्तान कश्मीर में अशांति व हिंसा का माहौल बरकरार रखने, भारत विरोधी नारे लगाने तथा घाटी को अशांत रखने के लिए सालाना 100 करोड़ रुपये इन अलगाववादियों पर खर्च कर रहा है।

उन्होंने अलगाववादियों पर इस नाजायज व अवैध खर्च के लिए जिम्मेदार लोगों को प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के साथ ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 409 (सार्वजनिक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के तहत मुकदमा चलाने की मांग की।–आईएएनएस