श्रीनगर, 16 जुलाई | सामान्यत: अशांति समाचार पत्रों के लिए अच्छा साबित होती है। बढ़ती मांग और खबरों की संख्या में अचानक उछाल आने के कारण प्रसार और पृष्ठों में वृद्धि के साथ समाचार पत्र बुरी खबरों से फलते-फूलते हैं। लेकिन श्रीनगर में ऐसा नहीं है।
आतंकी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद लगे कर्फ्यू और फैली हिंसा से यहां के समाचार पत्र उद्योग पर बुरा असर पड़ा है।
कश्मीर घाटी के अधिकांश अंग्रेजी और उर्दू दैनिकों ने अपने पन्ने घटा लिए हैं और गत नौ जुलाई से शहर में कर्फ्यू लगे होने की वजह से अपने संस्करणों के वितरण के लिए जूझ रहे हैं। नतीजा है कि सभी समाचार पत्रों को अपनी प्रतियों की संख्या घटाने को मजबूर होना पड़ा है।
कश्मीर हिंसा के बारे में बैठक के दौरान श्रीनगर में 14 जुलाई, 2016 को सिविल सचिवालय के बाहर खड़े गार्ड। फोटोः आईएएनएस
सर्वाधिक प्रभावित होने वाले अंग्रेजी भाषा के अखबारों में ‘ग्रेटर कश्मीर’ और ‘राइजिंग कश्मीर’ हैं, जिनकी पृष्ठ संख्या 16-18 से घटकर 8-10 हो गई है।
एक अन्य अंग्रेजी अखबार ‘कश्मीर रीडर’ की पृष्ठ संख्या 12 से घटकर आठ हो गई है और उसके प्रसार में 40 प्रतिशत की कमी हुई है।
घाटी में अधिक पढ़े जाने वाले उर्दू अखबार ‘कश्मीर उजमा’ और ‘श्रीनगर टाइम्स’ की कहानी भी अलग नहीं है।
कर्फ्यू लगे होने की वजह से कश्मीर घाटी श्रीनगर से कमोवेश कट गई है। यहां तक कि श्रीनगर में भी जहां कर्फ्यू लगे हुए हैं, वहां हॉकर नहीं पहुंच पाते हैं।
‘कश्मीर रीडर’ के एक प्रबंधक ने आईएएनएस से कहा, “चूंकि हम समाचार पत्र का वितरण नहीं कर पाते हैं, हमने छापने के लिए प्रतियों की संख्या में जबर्दस्त कमी की है।”
उन्होंने कहा, “हमारा प्रसार भी काफी घट गया है, क्योंकि कड़े प्रतिबंध नहीं होने वाले कुछ ही इलाकों में समाचार पत्रों का वितरण संभव है।”
जम्मू एवं कश्मीर में निजी व्यापारिक विज्ञापन नहीं मिलने से समाचार पत्र विज्ञापन का संकट भी झेल रहे हैं। कुछ समाचार पत्रों को तो सरकारी विज्ञापन भी नहीं मिल रहे हैं।
दैनिक समाचार पत्रों के पास केवल शादी रद्द होने की घोषणा के विज्ञापन पर्याप्त हैं।
राइजिंग कश्मीर के मुख्य संपादक शुजात बुखारी ने कहा कि कश्मीर घाटी के अधिकांश भाग पहुंच से बाहर हैं, इसलिए समाचार के प्रसार घट गए हैं।
बाहर के समाचार पत्रों का श्रीनगर पहुंचना लगभग बंद हो गया है।
केवल प्रसार और विज्ञापन की समस्या से ही समाचार पत्र उद्योग नहीं जूझ रहा है। सड़कों और गलियों में उबल रही लोगों की नाराजगी के साथ भीड़ मीडिया के खिलाफ हिंसक हो गई है। उन्हें लगता है कि मीडिया उनके प्रति असंवेदनशील है।
हाल यह है कि स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया के लिए काम करने वाले अधिकांश पत्रकार अस्पतालों में लोगों का साक्षात्कार भी नहीं कर पाते हैं।— रुवा शाह
Follow @JansamacharNews