नई दिल्ली, 13 अक्टूबर। कामधेनु दीपावली अभियान से गाय के गोबर व पंचगव्य के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) इस साल दीपावली त्योहार के अवसर पर “कामधेनु दीपावली अभियान” शुरू कर रहा है।
कामधेनु दीपावली अभियान से राष्ट्रीय कामधेनु आयोग इस दिवाली महोत्सव के दौरान गाय के गोबर व पंचगव्य उत्पादों के व्यापक उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।
इस वर्ष के दिवाली उत्सव के लिए गोबर आधारित दीयों, मोमबत्तियों, धूप, अगरबत्ती, शुभ-लाभ, स्वस्तिक, समरणी, हार्डबोर्ड, वॉल-पीस, पेपर-वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है।
दीपावली त्योहार के दौरान इस वर्ष राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का लक्ष्य 11 करोड़ परिवारों में गाय के गोबर से बने 33 करोड़ दीयों को प्रज्ज्वलित करना है।
अब तक प्राप्त प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक है और लगभग 3 लाख दीयों को केवल पवित्र शहर अयोध्या में ही प्रज्ज्वलित किया जाएगा और 1 लाख दीये पवित्र शहर वाराणसी में जलाए जाएंगे।
गाय आधारित उत्पादों के उपयोग से हजारों उद्यमियों को व्यवसाय का अवसर मिलेगा और वातावरण भी स्वच्छ और स्वस्थ बना रहेगा।
कामधेनु दीपावली अभियान गौशालाओं को आत्मनिर्भर ’बनाने में भी मदद करेगा।
चीन निर्मित दीयों का पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रदान करके यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया की परिकल्पना को बढ़ावा देगा और पर्यावरणीय क्षति को कम करते हुए स्वदेशी ’आंदोलन को भी प्रोत्साहन देगा।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने देश भर में गौशालाओं में दीपावली से संबंधित वस्तुओं के उत्पादन और सुविधा के साथ देशव्यापी विपणन योजना लिए पूरे देश के हर जिले में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी उपस्थिति बढ़ाई है।
कामधेनु दीपावली अभियान को बडे पैमाने पर सफल बनाने के लिए किसानों, निर्माताओं, उद्यमियों, गौशालाओं और अन्य संबंधित हितधारकों को बड़े पैमाने पर शामिल किया जा रहा है।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गायों और गौवंश के संरक्षण, सुरक्षा और विकास तथा पशु विकास कार्यक्रम को दिशा प्रदान करने के लिए किया गया है।
मवेशियों से संबंधित योजनाओं के बारे में नीति बनाने और कार्यान्वयन को दिशा प्रदान करने के लिए आरकेए एक उच्च शक्ति वाला स्थायी निकाय है ताकि आजीविका उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा सके।
पशुधन अर्थव्यवस्था का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 73 मिलियन घरों में होता है। देश भले ही, दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बावजूद भारत में औसत दूध का उत्पादन दुनिया के औसत का केवल 50% है।
कम उत्पादकता मुख्य रूप से आनुवंशिक स्टॉक में गिरावट, खराब पोषण और अवैज्ञानिक प्रबंधन के कारण है।
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