भोपाल, 28 फरवरी (जनसमा)। राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व के 150 से अधिक विस्थापित गाँवों की 30 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर वैज्ञानिक ढंग से घास उगाई जा रही है। यही मध्यप्रदेश में बाघों की बढ़ती संख्या का राज है ।
स्थानीय विशेषज्ञों ने इसके लिए दक्षिण अफ्रीका और देश के मूर्धन्य घास विशेषज्ञ डॉ. मूरतकर की भी मदद ली है। इससे मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। शाकाहारी जानवरों को पर्याप्त और उत्तम घास उपलब्ध कराने के लिए ग्राम पुर्नस्थापना नीति के अनुसार संरक्षित क्षेत्रों में कुशल घास प्रबंधन किया जारहा है।
प्रदेश में 10 राष्ट्रीय उद्यान एवं 25 अभयारण्य है जिनमें 6 टाइगर रिजर्व शामिल हैं। ग्राम पुर्नस्थापना नीति में राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों में से रहवासियों को पुर्नस्थापित कर मानव रहित बनाया जाता है। ये खाली हुए गाँव घास प्रबंधन के उत्कृष्ट स्त्रोत है।
सतपुड़ा.विन्ध्याचल में नहीं है घास मैदान
घास प्रबंधन सतपुड़ा और विन्ध्याचल के जंगलों में खासा मायने रखता है। इन जंगलों में प्राकृतिक घास के मैदान नहीं है। इन क्षेत्रों के संरक्षित क्षेत्रों में जहाँ भी गाँव का विस्थापन किया गया है वहाँ घास मैदान विकसित किए गए हैं। इससे शाकाहारी प्राणियों को पर्याप्त आवास और भोजन मिलता है और मांसाहारी को स्वस्थ भोजन। पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थिति उलट है। यहाँ का हिनौता प्लेटू एक घास मैदान के रूप में हैए वृक्ष का घनत्व न के बराबर है। यहाँ घास की प्रचुर उपलब्धता बनी रहती है।
हर वर्ष होती है प्रबंधन व्यवस्था
संरक्षित क्षेत्रों में हर वर्ष घास मैदानों के प्रबंधन की व्यवस्था की जाती है। वर्षा ऋतु में लगातार बाह्य प्रजाति और खरपतवार की सफाई की जाती है ताकि खाने योग्य घास ही जानवर खाये। खासतौर पर विस्थापित गाँवों में चिकौड़ाए गाजर घासए खरपतवार बहुत उगता है। यदि इनकी सफाई-कटाई न हो तो यह वन्य-प्राणी रहवास में तब्दील नहीं हो पाता। साथ ही वन्य क्षेत्र में तब्दील होने से भी बचाना होता है।
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