कृषि हेतु आधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से किसानों को मिल सकते हैं फायदे

पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत की 8 प्रतिशत जमीन है और यहां की आबादी 4 प्रतिशत है। यहां के लोगों की आजीविका का 70 प्रतिशत योगदान कृषि से पूरा होता है। मिजोरम में 51 प्रतिशत लोग कृषि पर आश्रित हैं और सिक्किम में यह आंकड़ा 89 प्रतिशत है। हालांकि इस समूचे क्षेत्र में कृषि की पैदावार का ढर्रा पहले जैसा है। यहां के राज्य अपने उपभोग का अनाज लगातार आयात करते हैं। पिछले दशक के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र में खाद्यान्न की मांग और आपूर्ति का अंतर घटा है। क्षेत्र में सिंचित क्षेत्र का अनुपात काफी कम है और सिंचाई क्षमता के मामले में निवेश भी मामूली है। कृषि से जुड़े भाई और बहन जानते हैं कि असम और पूर्वोत्तर के राज्य प्राकृतिक संसाधनों से लबालब हैं, जलवायु दशाएं उपयुक्त हैं और इस क्षेत्र के पढ़े-लिखे युवाओं की आबादी काफी ज्यादा है इसलिए ये कारक भारत की दूसरी हरित क्रांति में जान फूंक सकते हैं। फलों, सब्जियों और दूसरी बागवानी के उत्पादों के मामले में छोटे पैमाने पर यहां प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करने से ग्रामीण रोजगार में वृद्धि होगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी ने कहा है कि जैविक खेती के जरिए पूर्वोत्तर में दूसरी हरित क्रांति लाई जानी चाहिए।

असम मुख्य रूप से खेतीबाड़ी वाला राज्य है और यहां की 75 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है। राज्य में धान की फसल सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है जबकि नकदी फसलों में चाय, जूट, कपास, तिलहन, गन्‍ना, आलू आदि पैदा करने पर खासा जोर रहता है। बागवानी संबंधी फसलों पर ध्यान दें तो असम में संतरा, केला, अनन्नास, सुपारी, नारियल, अमरूद, आम, कटहल और खट्टे फल महत्वपूर्ण उपज हैं। अनुमान है कि राज्य में कुल 39.44 लाख हेक्टेयर भूमि में खेती है जिसमें करीब 27 लाख हेक्टेयर भूमि पर विशुद्ध रूप से खेती की जाती है।

दलहनी और तिलहनी फसलों के उत्पाद रकबे के लिहाज से यह क्रमश: 1.05 और 2.25 लाख हेक्टेयर है जबकि चावल उत्पाद रकबा 63 प्रतिशत माना गया है। रासायनिक खादों और जैविक खादों के इस्तेमाल के मामलों में यह आंकड़ा क्रमश: 63.2 और 73 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसी तरह रासायनिक कीटनाशकों और जैव कीटनाशकों की खपत यहां क्रमश: 39 और 6 ग्राम प्रति हेक्टेयर है लेकिन आश्चर्य है कि हमारे प्रधानमंत्री जैव कृषि को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक कृषि विकास स्कीम शुरू करते हुए असम को 5 करोड़ 76 लाख रुपये दिए हैं। राज्य सरकार ने इस पैसे का न सिर्फ उपयोग नहीं किया बल्कि पहले ऐसी योजनाओं के लिए पैसा भी नहीं दिया गया था। इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने 100 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। दुर्भाग्य से राज्य सरकार ने इसका भी इस्तेमाल नहीं किया।

देश की आबादी बढ़ रही है लेकिन खेती का दायरा नहीं बढ़ रहा है। मोदी सरकार ने फैसला किया है कि 14 करोड़ वे किसान, जिनके पास भूमि है, उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी किए जाने चाहिए जिससे उन्हें पता चल सके कि उनके खेत में किस तरह की बीमारियां हैं और उनके मुताबिक कितनी मात्रा में कीटनाशकों और खादों का इस्तेमाल हो सकता है। इसके लिए असम सरकार को राज्य में मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रबंधन के लिए 1 करोड़ 33 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं। वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पैसे आवंटित किए गए हैं लेकिन दुर्भाग्य से राज्य सरकार उनका इस्तेमाल नहीं कर पाई है।

पिछले दिनों मैं गुवाहाटी गया था और वहां मैंने कहा था कि 1994-95 में भारत सरकार ने असम के 10 जिलों के लिए दुग्ध विकास परियोजना के वास्ते 1300 लाख रुपये मंजूर किए हैं। 2004-05 में फिर से केंद्र सरकार ने 910 लाख रुपये उपलब्ध कराए लेकिन उसमें से भी 300 लाख ही खर्च किए गए। राज्य सरकार ने केंद्र को घोटाले संबंधी कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी और यह भी नहीं बताया कि उस पैसे का क्‍या हुआ और अपराधी कौन है, कोई नहीं जानता। स्पष्ट है कि यह असम की जनता के पक्ष में नुकसान है। राज्‍य में कोई दुग्ध विकास भी नहीं हुआ।

देश के किसान केवल तभी फायदे पा सकते हैं जब खेती के स्तर पर नई कृषि तकनीकों का इस्तेमाल करें। हमारे प्रधानमंत्री ने साफ कहा है कि जब तक हमारे गांव और किसान विकसित नहीं होंगे, देश का विकास संभव नहीं है। देश का विकास तभी हो सकता है जब हमारे पूर्वोत्तर विकसित होंगे। इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली की तर्ज पर एक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान असम में खोलने का फैसला किया। इस संस्थान के लिए जमीन लेने के लिए राज्य सरकार को पहले ही पत्र भेजा जा चुका है।

सरकार ने 4 जगहें बताई हैं और संस्थान के अधिकारियों ने एक का चयन किया है और इसके लिए भी राज्य सरकार प्रति बीघा 1 लाख 60 हजार रुपये मांग रही है। आश्चर्य है कि संस्थान इस क्षेत्र के किसानों के फायदे के लिए होगा। आमतौर पर राज्य सरकार मुफ्त में जमीन उपलब्ध कराती है। मुझे नहीं पता कि असम सरकार किसानों को मजबूत कर रही है या अपने परिवार को। मोदी सरकार पूर्वोत्तर में दूसरी कृषि क्रांति लाने के लिए कृतसंकल्प है।

पूर्वोत्तर के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) का मुख्यालय मेघालय के यूमियम में है। असम में 25 कृषि विज्ञान केंद्र भी हैं जो असम की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। असम के ये केंद्र 2014-15 के दौरान फसलों और पालतू जानवरों के विभिन्न रकबे के तहत 3,736 केंद्रों में विभिन्न विषयों के तहत प्रदर्शित किए गए हैं जहां इनकी गहन निगरानी और निर्देशन के कार्य होते हैं। इसके अलावा असम के कृषि विज्ञान केंद्रों में वर्ष 2015-16 में 1,020 हेक्टेयर तिलहनी और 425 हेक्टेयर में दलहनी फसलों पर काम हुए। असम में 65,174 किसानों और कई विस्तारित कर्मियों ने फसलों, पालतू जानवरों, मत्स्य और गृह विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। वर्ष 2014-15 के दौरान असम में कृषि विज्ञान केंद्रों ने 598.69 टन गुणवत्तापूर्ण बीज, 4 लाख 4 हजार पौधरोपण संबंधी सामग्री और 2 लाख 2 हजार पालतुओं (सुअर, मुर्गी पालन आदि) और मछलियों से जुड़े उत्पाद में योगदान दिया। असम के ये केंद्र मृदा नमूना विश्लेषण और 6,577 मृदा स्वास्थ्य कार्डों की आपूर्ति किसानों को की। यह 2015-16 के मौजूदा वर्ष में संपन्न हुआ और मिट्टी के परीक्षण के लिए राज्य 17 जिलों में परीक्षण नमूने उपलब्ध कराए गए।

इस साल अब तक असम में 25 कृषि विज्ञान केंद्रों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से 26 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी गई। असम कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र की कार्यवियांगलांग शाखा को नए कार्यक्रम आर्य (कृषि में आकर्षण और युवकों का रुझान बरकरार रखने) के लिए स्वरोजगार के तहत एक करोड़ रुपये की वित्तीय मदद के साथ प्रोत्साहित किया गया। इस तरह जिले के बेरोजगार युवा को आमदनी की सुरक्षा दी गई।

असम के कृषि विज्ञान केंद्र के कुछ विशेष कार्यक्रम इस प्रकार हैं : कृषि विज्ञान केंद्र- कछार, कामरूप, लखीमपुर और शिवसागर, मिट्टी और जल परीक्षण हेतु प्रयोगशाला- बारपेटा और डिब्रूगढ़, वर्षा जल दोहन केंद्र- करबियांगलांग, न्यूनतम प्रसंस्करण सुविधा- करबियालांग और शोणितपुर, धुबरी, हेलकांडी, जोरहट और नौगांव में मांसाहार दोहन केंद्र, एकीकृत कृषि प्रणाली- चिरांग, कोकराझार और उदलगुरी, प्रौद्योगिकी सूचना इकाई- डिब्रूगढ़, कोकराझार, लखीमपुरी और शोणितपुर और लघु बीज प्रसंस्करण केंद्र- कछार और नलबाड़ी, ये 12वीं पंचवर्षीय योजना में क्रियान्वित किए गए।

इस क्षेत्र के किसानों के लाभ और भौगोलिक हालात पर विचार करने के लिए हमने गुवाहाटी में नए अटारी केंद्र खोलने का निश्चय किया। इससे असम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्यों में प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल और बढ़ती जरूरत को पूरा करने में मदद मिलेगी। यह अटारी केंद्र असम के 25, अरुणाचल प्रदेश के 14 और सिक्किम के 4 जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों के कामकाज पर निगरानी रखने के लिए जिम्मेदार होगा। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र के 64 प्रतिशत दायरे और 71 प्रतिशत आबादी को फायदा होगा। असम के दीमा हसाऊ में कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना के लिए स्थान चयन समिति की रिपोर्ट संगठन को पहले ही मिल चुकी है और उसके लिए मंजूरी अंतिम चरण में है। असम पूर्वोत्तर भारत का खाद्यान्न मामले में महत्वपूर्ण राज्य है और यह समूचे क्षेत्र की अनाज की जरूरत को पूरी करने की क्षमता रखता है। देश में पानी की प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा उपलब्धता वाला क्षेत्र असम भले ही है लेकिन इसकी क्षमताओं का कभी-कभी ही इस्तेमाल हो पाता है। देश में पानी के अधिकतम इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए हमारी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की है। मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में दूसरी हरित क्रांति में असम महत्वपूर्ण भूमिका जरूर निभाएगा।