लखनऊ, 28 अप्रैल | एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचौम) की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के करीब 5,500 बिजनेस मैनेजमेंट स्कूलों से ग्रेजुएट होने वालों में केवल सात फीसदी छात्र ही नौकरी के लायक हैं, बाकी 93 फीसदी छात्र नौकरी के योग्य नहीं हैं। एसोसिएशन की एजुकेशन कमेटी द्वारा यह रिपोर्ट लखनऊ सहित देश के सभी प्रमुख शहरों के हालात के आधार पर तैयार की गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन स्कूलों से निकलने वाले छात्रों को 10 हजार रुपये मासिक की नौकरी मिलनी भी मुश्किल है। इसके लिए बिजनेस स्कूलों की खराब गुणवत्ता और खराब नियमन को जिम्मेदार ठहराया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, महज सात फीसदी एमबीए ग्रेजुएट किसी जगह नौकरी करने के काबिल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, आईआईएम और कुछ सरकारी संस्थानों समेत देश के टॉप 20 बिजनेस स्कूलों को अलग कर दें तो कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी तलाशना बाकी संस्थानों के युवाओं के लिए एक चुनौती है।
बिजनेस स्कूल एमबीए कोर्स के लिए तीन से पांच लाख रुपये तक की फीस ले रहे हैं। कैंपस प्लेसमेंट होता भी है तो छात्रों को महज आठ से 10 हजार रुपये महीने की नौकरी दी जाती है। वहीं इन करीब 5,500 संस्थानों के अलावा बहुत से संस्थान तो मान्यता प्राप्त भी नहीं हैं।
उप्र में एसोचौम के महासचिव डीएस रावत के मुताबिक, “वर्ष 2011-12 में देश में एमबीए जैसे कोर्स के लिए 3.6 लाख सीटें थीं, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 5.20 लाख हो गईं। शिक्षण की क्वालिटी कॉर्पोरेट जगत की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होने से भी ये हालात बन रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि लखनऊ, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू, अहमदाबाद, हैदराबाद और देहरादून जैसे शहरों में पिछले दो वर्षो में मैनेजमेंट शिक्षा दे रहे 220 संस्थान बंद हो गए। 2016 में ऐसे 120 और संस्थानों के बंद होने की आशंका है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
फोटो सौजन्य: एसोचौम डाॅट ओआरजी
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