कैंसरग्रस्त बच्चों की मांओं का सहारा व उम्मीद बनीं माएं

नई दिल्ली, 9 मार्च | सोनल शर्मा को उन्नीस साल पहले अपनी दो वर्षीय बेटी गुनगुन के रक्त कैंसर का शिकार होने का पता चला था। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दो साल से भी ज्यादा उसका इलाज चला।

जिंदगी के इस कठिन दौर से गुजरने के बाद सोनल के पति अनुराग ने उनसे कहा कि इस सबसे से जूझने के बाद वह या तो उनकी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देकर केवल अपने घर जा सकते हैं या अपने जैसे अन्य मां-बाप का सहारा बनने का प्रण ले सकते हैं।

यही वह समय था, जब सोनल ने अपनी बेटी की तरह अन्य कैंसरग्रस्त बच्चों के मां-बाप की तकलीफ बांटने का फैसला किया।

सोनल ने कहा, “अपनी बेटी के इलाज के दौरान मुझे कोई भी ऐसा नहीं मिला, जो मेरा हाथ थाम कर कहे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

सोनल ने इसके बाद खुद भी कैंसर की जंग जीतने वाली पूर्व नौकरशाह पूनम बगई के साथ मिलकर जनवरी 2004 में भारतीय कैंसर सोसायटी के अधीन एनजीओ ‘कैनकिड्स किड्सकैन’ शुरू किया।

सोनल ने अभिभावकों द्वारा अभिभावकों को भावनात्मक सहयोग, मार्गदर्शन, अस्पताल में सहयोग देने और एक-दूसरे का हाथ थामने के लिए उसी वर्ष मार्च में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर एक पेरेंट सपोर्ट ग्रुप शुरू करने का प्रस्ताव रखा।

सोनल ने बताया कि रेखा और शीला सबसे पहले पीएसजी की सदस्य बनीं। रेखा के बेटे का भी एम्स में इलाज किया गया था और शीला के बेटे यश का भी उसी समय इलाज किया गया था, जब गुनगुन का किया गया था। इन दोनों बच्चों ने कैंसर से हारकर दम तोड़ दिया था।

सोनल ने बताया कि दोनों ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन उनके मन में बेहद करुणा और इस मिशन के लिए प्रतिबद्धता है।

सोनल ने कहा, “हमारा मकसद सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी काम करने की भूमिका निभाने में ऐसी मांओं की मदद करना था। उनके अपने अनुभव होते हैं, वे अस्पताल और उसके संसाधनों के सही प्रयोग के बारे में जानती हैं। हम उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और उन्हें सशक्त बनाते हैं।”

कार्यक्रम प्रबंधक और 10 वर्षीय बच्चे प्रतीक की मां सुचेता सोहल ने कहा, “आज देशभर में हमारे 320 सदस्य हैं और इस समूह में 95 प्रतिशत महिलाएं हैं।”

प्रतीक का कैंसर का इलाज पिछले सप्ताह खत्म हुआ।

वरिष्ठ शिशु ओन्कोलॉजिस्ट और प्रतीक की डॉक्टर अमिता महाजन ने कहा, “मैने सुचेता को कैनकिड्स और पीएसजी में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। कैंसर ग्रस्त बच्चों के लंबे इलाज के दौरान उनके साथ रहने वाली उनकी मांएं सबसे अधिक प्रभावित होती हैं और उन्हे ही सबसे ज्यादा भावनात्मक व अन्य मदद की जरूरत होती है।”

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कैनकिड्स पीएसजी को नया नाम दिया गया- ‘पथ प्रदर्शक पारिवारिक सहायक समूह – पी3एसजी’ और उसके सभी सदस्यों का सम्मान किया गया।

अशिक्षित ऊषा रानी (60) भी पीएसजी की स्वयंसेवकों में से एक हैं, जिन्हें सम्मानित किया गया।

उन्होंने कहा, “मैने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अस्पताल में जाकर बिना किसी सहयोग के अकेले अपनी बेटी का इलाज कराना पड़ेगा।”

ऊषा रानी की बेटी नेहा के कैंसर से ग्रस्त होने का 2005 में पता चला था। इस दौरान कैनकिड्स ने मंहगी दवाइयां उपलब्ध कराने और अन्य इलाज के लिए उनके परिवार की मदद की थी।

नेहा कैंसर की जंग में हार गई, लेकिन उसके बाद ऊषा रानी ने कैंसरग्रस्त अन्य बच्चों के लिए काम करने का बीड़ा उठा लिया।

कैंसर से लड़ाई में विजेता बनकर उभरे कैन किड्स के एडवोकेसी ऑफिसर कपिल चावला ने कहा, “पीएसजी मांओं को उम्मीद बंधाता है कि उनके बच्चे स्वस्थ हो सकते हैं और जीवनयापन में समूह के सदस्यों की मदद करते हैं।”

कैनकिड्स देशभर में फैले अपने 45 केंद्रों के जरिए जरूरतमंद कैंसर के मरीजों और बाल कैंसर इकाईयों के बीच सेतु का काम करता है और उन्हें आर्थिक सहयोग देता है।

कैंसर से देश में हर सप्ताह 264 बच्चों की मौत हो जाती है। वर्ष 2010 में 13,726 बच्चों की कैंसर से मौत हो गई, जिनमें से 0.7 प्रतिशत मौतें एक महीने से 14 साल की उम्र के बच्चों की हुई।

–आईएएनएस

====अंजली मदान