राज्य को अपने कैदियों को छूट देने में ‘चयनात्मक’ नहीं होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के ग्यारह आरोपियों के संबंध में की।
नई दिल्ली, 18 अगस्त। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार से कहा कि किसी राज्य को अपने कैदियों को छूट देने में ‘चयनात्मक’ नहीं होना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के ग्यारह आरोपियों के संबंध में की।
सर्वोच्च न्यायालय छूट के खिलाफ दायर कुछ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
गुजरात 2002 के सांप्रदायिक दंगों के ग्यारह दोषियों को 2022 में समय से पहले रिहाई दी गई थी। राज्य ने तर्क दिया था कि इन अपराधियों को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए।
यह टिप्पणी गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू की उस दलील के जवाब में की गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून कहता है कि दुर्दांत अपराधियों को भी खुद को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए।
अधिकारी ने कहा कि 11 दोषियों द्वारा किया गया अपराध “जघन्य” था, लेकिन दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है।
“इसलिए, वे सुधार के मौके के हकदार हैं। हो सकता है कि व्यक्ति ने अपराध किया हो…किसी विशेष क्षण में कुछ गलत हो गया हो। बाद में, उसे हमेशा परिणामों का एहसास हो सकता है।”
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ जानना चाहती थी कि जेल में अन्य कैदियों पर कानून कितना लागू किया जा रहा है।
राज्यों की छूट नीति पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या समय से पहले रिहाई की नीति उन सभी लोगों के संबंध में सभी मामलों में समान रूप से लागू की जा रही है जिन्होंने 14 साल पूरे कर लिए हैं और इसके लिए पात्र हैं।
पीठ ने कहा, “दूसरी ओर, हमारे पास रुदुल शाह जैसे मामले हैं। भले ही उन्हें बरी कर दिया गया था, लेकिन वह जेल में ही रहे।
रुदुल शाह को 1953 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 3 जून, 1968 को एक सत्र अदालत द्वारा बरी किए जाने के बावजूद, वह कई वर्षों तक जेल में रहे। अंततः उन्हें 1982 में रिहा कर दिया गया।
मामले में सुनवाई 24 अगस्त को फिर शुरू होगी।