संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ओबोकाता ने मानवाधिकार परिषद में शिरकत करने वाले प्रतिनिधियों को बताया, “बेरोज़गारी और अल्परोज़गार का ऐतिहासिक स्तर, आजीविकाएँ ख़त्म हो जाना और अनिश्चित आर्थिक परिदृश्य, ये सभी कोविड-19 महामारी के जटिल दुष्परिणाम हैं जिनसे सबसे कमज़ोर तबके के लोग ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.”
स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि सुरक्षा के कमज़ोर ताने-बाने और श्रम अधिकारों व सामाजिक संरक्षा नियामकों के ढहने से कुछ देशों में निर्धनतम समुदायों के समक्ष बन्धुआ मज़दूरी, जबरन मज़दूरी और दासता के समकालीन रूपों का शिकार होने का जोखिम पैदा हो गया है.
विशेष रैपोर्टेयर तोमोया ओबोकाता ने ध्यान दिलाया कि वैश्विक आर्थिक मन्दी से व्यवसायों पर बोझ बढ़ा है जिसके समाधान के तौर पर श्रम अधिकार कमज़ोर किये जा रहे हैं लेकिन इसकी मँहगी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.
उन्होंने कहा कि उन व्यवसायों की जवाबदेही तय किये जाने की ज़रूरत है जो महामारी के दौरान दवाएँ, चिकित्सा उपकरण और निजी बचाव सामग्री का उत्पादन करने में जुटे निर्बल श्रमिकों का शोषण कर रहे हैं.
“श्रम अधिकार बरक़रार रखने होंगे और सामाजिक संरक्षा को अर्थव्यवस्था के हर सैक्टर में सुनिश्चित किया जाना होगा. देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड-19 महामारी के सन्दर्भ में कोई भी पीछे ना छूटने पाए और किसी को भी दासता जैसी प्रथाओं का शिकार ना हो.”
स्थानीय समुदायों की आवाज़ अहम
संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सभी देशों की सरकारों से राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विकास पर धन ख़र्च करने और ज़रूरतमन्द समुदायों की आवाज़ सुने जाने का अनुरोध किया है.
विकास के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ साद अलफ़रागी ने जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद को अपनी वार्षिक रिपोर्ट सौंपते समय यह अपील जारी की है.
देशों की सरकारों द्वारा समय रहते सहायता के समुचित प्रयास नहीं किये जाने के कारण विश्व भर के लाखों-करोड़ लोग कोविड-19 महामारी के कारण दासता व शोषण के समकालीन रूपों के शिकार हो सकते हैं. यह चेतावनी दासता के समकालीन रूपों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर तोमोया ओबोकाता की ओर से जारी की गई है जिन्होंने बुधवार को मानवाधिकार परिषद के वर्चुअल सत्र के दौरान अपनी पहली रिपोर्ट पेश की है.
“देशों और विकास वित्तीय संस्थाओं को विकास के लिये उपलब्ध सीमित संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिये, समुदायों व व्यक्तियों को अपनी निर्णय-निर्धारक प्रक्रिया के केन्द्र में रखना होगा.”
उन्होंने कहा कि महामारी से पहले भी विकास के लिये वित्तीय संसाधनों की कमी महसूस की जा रही थी लेकिन मौजूदा संकट ने इस समस्या को और ज़्यादा बढ़ाया है, विशेषत: विकासशील देशों के लिये, जिनके बजट पर भार बढ़ा है.
विशेष रैपोर्टेयर ने आग्रह किया है कि विकासशील देशों को सहायता का स्तर बढ़ाया जाना होगा और संसाधनों की खाई को पाटने के लिये टैक्स प्रणालियों को प्रगतिशील बनाना होगा.
उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित भी करना होगा कि उन लोगों व समुदायों की आवाज़ सुनी जाए जिन्हें मदद की सबसे अधिक आवश्यकता है.
विशेष रैपोर्टेयर ने स्पष्ट किया कि दुनिया भर में समुदायों का कहना है कि उनकी आवाज़ को चर्चाओं की शुरुआत से लेकर निर्णय प्रक्रिया तक में शामिल नहीं किया जाता. विकास बैंक, सरकारें और कम्पनियाँ अक्सर परियोजनाएँ लोगों की राय लिये बिना ही पेश करती हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि समावेशी परामर्श प्रक्रिया के सृजन और उसके लिये वित्तीय इन्तज़ाम करना संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास एजेण्डा के उस वायदे के अनुरूप है जिसमें किसी को भी पीछे ना छूटने देने की बात कही गई है.
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