खेत बटाई पर लगाना ‘सामंतवाद का प्रतीक’ नहीं है और इस पर लगी रोक विकास विरोधी और गरीब विरोधी है। यह बात राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति) आयोग द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति ने अपनी ताजातरीन रपट में कही है। कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष तजमाल हक की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय समिति ने अपनी रपट में कहा है कि बटाईदार किसान की मोलभाव क्षमता आजादी के बाद काफी बढ़ी है।
समिति ने कहा, “बटाई खेती एक आर्थिक जरूरत है और सामंतवाद का प्रतीक नहीं है, जैसा कि यह पहले हुआ करता था। आज यह सच नहीं है कि औपचारिक बटाईदारी के संबंध में शोषण होगा।”
समिति ने कहा कि खेत बटाई पर लगाए जाने का मतलब और इससे जुड़ी बातें आज अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं, इसलिए किसानों को अपना खेत खोने के डर से मुक्त होकर इसे बटाई पर देने की अनुमति दी जा सकती है।
समिति के मुताबिक, खेत बटाई पर दिए जाने की अनुमति देने से खेत के मालिक यदि चाहें तो दूसरे काम कर सकते हैं और अधिक सक्षम व्यक्ति को खेती का काम सौंप सकते हैं, जो इस किराए के खेत पर कर्ज और बीमा सुविधा हासिल कर सकता है।
समिति ने कहा, “खेती में एक सीमा तक ही श्रम बल खप सकता है। इसलिए जरूरी है कि आबादी का कुछ हिस्सा खेती छोड़कर दूसरे धंधों में प्रवेश करे।”
बटाईदारी को वैध बनाया जाना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
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