कोलकाता, 24 जुलाई | भारतीय शोधकर्ताओं ने हाल ही में किए गए अपने एक शोध में कहा है कि वैश्विक ताप बढ़ने के कारण हिमनदों के धीरे-धीरे पिघलने से भूटान में भविष्य में भीषण बाढ़ आने का खतरा है, जिससे भूटान में कई जीवों की पूरी नस्ल ही खत्म हो सकती है।
ऐसी दशा में शिकारी उन जीवों के शिकार के लिए भारत का रुख भी कर सकते हैं।
हिमालय क्षेत्र में पिघलती बर्फ फोटो:बी भट्ट
बर्धवान विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के सहायक प्राध्यापक राजीव बंद्योपाध्याय ने बताया कि इसका भारत पर भी गंभीर असर पड़ेगा। वास्तव में पूर्व हिमालय के क्षेत्रों में पहले भी भयंकर बाढ़ के प्रमाण मिलते हैं। ज्यादा उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिग की दर बढ़ रही है जो सामान्य से बहुत अधिक है। इसका सीधा असर पारिस्थितिकी के लिए बेहद अहम जंतुओं व वनस्पतियों पर पड़ेगा।
पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के बड़े इलाके में तेजी से औसत तापमान बढ़ रहा है, जिसकी दर 0.01 डिग्री सेल्सियस प्रति वर्ष से भी अधिक है।
भूटान विश्व के उन चंद देशों में से है, जहां कार्बन उत्सर्जन नकारात्मक है। हालांकि जरा भी कार्बन उत्सर्जन न करने वाला यह देश जलवायु परिवर्तन के होने वाले असर से नहीं बचता।
बंद्योपाध्याय बताते हैं, “मौजूदा समय में भूटान से खत्म हो रहे विशेष जीव-जंतुओं का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन बर्फीला चीता, बाघ और सफेद उदर वाला बगुलों की नस्लें खत्म होने की कगार पर हैं। भारत पर इसका असर जानवरों के शिकार के तौर पर पड़ेगा। भूटान से इन विशेष नस्लों के जीवों के नष्ट होने के बाद शिकारी भारत का रुख करेंगे। इसके अलावा पर्यावरण से जुड़ी कुछ अंतर्राष्ट्रीय नीतियां भी प्रभावित होंगी। कुछ विशेष नस्लों के जीव-जंतुओं का अस्तित्व समाप्त होने का असर इलाके के दूसरे जीवों पर भी पड़ेगा।”
बंद्योपाध्याय और अर्पणा बनर्जी ने पूर्वी हिमालय रेंज में उसकी स्थिति की वजह से भारत के लिए अहम भूटान की ओर ध्यान दिलाया है। गौरतलब है कि पूर्वी हिमालयी रेंज विश्व के 34 खास जैवविविधता वाले इलाकों में से एक है।
करीब 750,000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पूर्वी हिमालय क्षेत्र में नेपाल, भूटान भारत के पश्चिम बंगाल, सिक्कम, असम और अरुणाचल प्रदेश, दक्षिणपूर्वी तिब्बत और उत्तरी म्यांमार का हिस्सा शामिल है।
बंद्योपाध्याय बताते हैं कि भूटान ही एक ऐसा देश है जिसका पूरा इलाका पूर्वी हिमालय क्षेत्र में आता है। पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूटान की हिस्सेदारी 7.6 प्रतिशत है। इसके अलावा भूटान के इलाके में कुछ खास जीवजंतु और वनस्पतियां पाई जाती हैं। दूसरी जैवविविधता की वनस्पतियां और जंतु भारतीय इलाकों सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड में भी पाए जाते हैं।
भूटान में दस संरक्षित क्षेत्र हैं। इसमें बायोलॉजिकल कॉरिडोर भी शामिल है, जिनमें अस्तित्व के संकट से जूझ रहे जीवजंतु पाए जाते हैं, जिसमें एक सिंग वाला गैंडा, विशेष पहाड़ी बकरी, छोटे आकार वाले सुअर (पिगमी हाग), चीता, रेड पांडा और इनके अलावा कई किस्म के पक्षी भी शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि भूटान में सकल घरेलू उत्पाद से कहीं अधिक महत्व सकल राष्ट्रीय खुशहाली को दिया गया है। भूटान के संविधान में कहा गया है कि भूटान को 60 फीसदी भूभाग हमेशा वन क्षेत्र से ढंका होना चाहिए। यह प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण के जरिए हो सकता है और इससे पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान रोका जा सकता है।
बंद्योपाध्याय कहते हैं, “भयंकर बाढ़ को रोकने के लिए भारत और दूसरे सभी पूर्वी हिमालय क्षेत्र के देशों को जंगलों के कटान और शहरीकरण को कम करना होगा। इसका असर ग्लोबल वार्मिग पर पड़ेगा और ग्लेशियर के पिघलने की दर कम होगी। भूटान प्राकृतिक संरक्षण की दिशा में अच्छा काम कर रहा है। भारत के पास जैवविविधता के भंडार हैं हमें इनकी देखरेख की जरूरत है।”
— सहाना घोष
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