हैदराबाद, 27 सितम्बर | विभाजित राज्य आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद से एन. चंद्रबाबू नायडू राज्य को विशेष राज्य का दर्जा (एससीएस) देने पर जोर देते रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने अपनी इस मांग को छोड़ दी है। लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि उन्होंने आखिर इस लड़ाई को बीच में क्यों छोड़ दिया और केंद्र सरकार ने जो भी दिया, उसे स्वीकार क्यों कर लिया।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के प्रमुख चंद्रबाबू ने कहा था कि एससीएस पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा और इसका कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता।
नायडू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका वह चुनावी वादा याद दिलाते रहे, जिसमें मोदी ने पिछले आम चुनाव के दौरान कहा था कि वह राज्य को 10 वर्षो के लिए एससीएस का दर्जा दिलाएंगे। जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्य को पांच साल के लिए एससीएस का दर्जा देने की घोषणा की थी।
लेकिन, केंद्र ने जब स्पष्ट कर दिया कि एससीएस नहीं दिया जाएगा और उसके बाद सरकार ने सिर्फ विशेष सहायता घोषित कर दी, वह भी केवल पांच वर्षो के लिए, तो नायडू ने मान लिया कि उनके पास उसे स्वीकार करने के अलावा अब और कोई विकल्प नहीं बचा है।
विपक्षी पार्टियों ने नायडू के इस कदम की कड़ी निंदा की है और उनपर केंद्र सरकार के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया है। प्रमुख विपक्षी दल वायएसआर कांग्रेस पार्टी (वायएसआरसीपी) ने उनपर आरोप लगाया है कि नायडू ने तेलंगाना में ‘वोट के बदले नोट’ के एक मामले बचने के लिए केंद्र के साथ समझौता कर लिया है।
लेकिन नायडू ने यह कहकर अपना बचाव किया है कि उनके लिए केवल राज्य का हित महत्वपूर्ण है।
सवाल यह उठता है कि नायडू ने पलटी क्यों मारी?
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्य के लिए जिन कदमों की घोषणा की, उनमें से एक पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिए केंद्र द्वारा पूरा वित्त पोषण शामिल है। इसकी उम्मीद तो पहले ही थी, लेकिन जेटली की इस घोषणा में महत्वपूर्ण यह है कि राज्य सरकार को इसके निष्पादन का जिम्मा सौंपा जाएगा।
नायडू लंबे समय से केंद्र से इस परियोजना के निष्पादन का जिम्मा राज्य को सौंपने को कह रहे थे, जिसकी लागत 2011 के अनुमान के अनुसार 16,000 करोड़ रुपये है।
एक राजनैतिक विश्लेषक का कहना है, “इसका अर्थ यह है कि तेदेपा अब इस परियोजना के ठेके अपने लोगों को दे पाएगी।”
यह परियोजना केवल बड़ी लागत के मामले में ही नहीं, बल्कि तेदेपा को 2019 विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इससे मिलने वाले राजनीतिक लाभ की उम्मीद के मामले में भी महत्वपूर्ण है।
उम्मीद है कि 720,000 एकड़ जमीन की सिंचाई क्षमता वाली यह परियोजना राज्य की जीवन रेखा होगी।
नायडू पोलवरम परियोजना को 2018 तक पूरा करके अतिरिक्त पानी कृष्णा बेसिन की ओर मोड़ना चाहते हैं, जिसे वर्तमान में रायलसीमा के कुरनूल जिले में स्थित श्रीशैलम परियोजना से पानी मिलता है।
उन्हें उम्मीद है कि इससे वे सूखा प्रभावित पिछड़े इलाके रायलसीमा के लोगों से श्रीशैलम का पानी रायलसीमा को देने का अपना वादा पूरा कर उन्हें खुश कर पाएंगे, जो विभाजन के बाद हुए इस करार से खुश नहीं हैं।
इससे नायडू को अपने घरेलू मैदान में अपने प्रबल विरोधी जगन मोहन रेड्डी से प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नायडू अपनी राजनीतिक मजबूरियों और एक नई राजधानी के निर्माण के दुर्गम कार्य में केंद्र सरकार की मदद की जरूरत से पूरी तरह अवगत हैं।
इस लड़ाई को लड़ते हुए ढाई साल बिताने के बाद तेदेपा प्रमुख को अहसास हुआ कि एससीएस पर केंद्र के साथ लड़ने में न ही उनके राज्य और न ही पार्टी का कोई हित है।
हालांकि, इस कदम से राज्य दो बड़े वर्गो में विभाजित हो गया है – एक जो केंद्र ने जो दिया है, उससे संतुष्ट है और दूसरा जिसकी मांग अब भी एससीएस ही है।
राज्य के सभी विपक्षी दल दूसरे वर्ग में शामिल हैं। 2014 के आम चुनाव में भाजपा-तेदेपा गठबंधन के लिए प्रचार कर चुके अभिनेता पवन कल्याण भी भाजपा के विरुद्ध खुलकर सामने आए हैं और उन्होंने केंद्र के प्रस्ताव को ‘बासी लड्ड’ करार दिया है।
केंद्र की घोषणा के एक दिन बाद ही अभिनेता ने काकीनाडा में एक जनसभा में एससीएस हासिल करने के लिए तीन चरणों में संघर्ष शुरू करने की घोषणा की थी। हालांकि इस पर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
एकमात्र विपक्षी पार्टी वायएसआर कांग्रेस ने नायडू के समझौते पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है, “चंद्रबाबू नायडू ने भले ही अपने स्वार्थ के लिए समझौता कर लिया हो, लेकिन राज्य के पांच करोड़ लोग विशेष राज्य का दर्जा हासिल करके रहेंगे।”
मोहम्मद शफीक===
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