विशाल गुलाटी===
कुफरी (हिमाचल प्रदेश), 28 जून| पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से मिलने वाले बर्फीले चीते के प्रजनन के लिए यहां के हिमालयन नेचर पार्क में विशेष तैयारियां हो रही हैं। बर्फीला चीता अति दुर्लभ जीव है और यह विलुप्त होने के कगार पर है।
फोटो: ‘मकालू’ नाम का दो वर्षीय नर बर्फीला चीता (फोटो: आईएएनएस)
राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन एसएस नेगी ने आईएएनएस को बताया, “दार्जिलिंग स्थित पद्मजा नायडू हिमालयन जूलोजिकल पार्क हमें बर्फीले चीते का एक जोड़ा प्रदान कर रहा है। हम इस जोड़े को बंद जगह पर रखकर प्रजनन की कोशिश करेंगे। यह काम जोड़े के खून की जांच के बाद हो सकेगा।”
दार्जिलिंग चिड़ियाघर के अलावा सिक्किम और उत्तराखंड के चिड़ियाघरों में अति दुर्लभ बर्फीला चीता है। यह जीव अति शिकार के कारण विलुप्त होने के कगार पर है।
साल 2004 में बर्फीले चीते सुभाष और उसकी जुड़वा सपना को दार्जिलिंग से यहां लाया गया था। यह काम जानवरों की अदला-बदली के कार्यक्रम के तहत किया गया था।
अधिकारियों का कहना है कि अगर बर्फीले चीते एक ही मां की संतान हैं तो फिर उनके बीच प्रजनन का प्रयास बेकार है। सपना की बीमारी के कारण 2007 में मौत हो गई।
इससे पहले कुफरी चिड़ियाघर में एक और मादा चीते की मौत हुई थी। इस मादा चीते को लाहौल स्पीति जिले में 1998 में भेंड़ चराने वालों ने देखा था। उस समय यह बच्चा थी। इसके बाद इसे कुफरी चिड़ियाघर लाया गया।
इस मादा चीते ने चिड़ियाघर में काफी समय अकेले गुजारा और जब 2013 में सुभाष को दार्जिलिंग के कुफरी लाया गया, तब इन दोनों के बीच प्रजनन का काम शुरू किया गया।
अधिकारी ने कहा, “थोड़ी हिचकिचाहट के बाद सुभाष यहां लाई जाने वाली मादा चीतों के साथ प्रजनन के लिए तैयार हो गया।”
दार्जिलिंग चिड़ियाघर बर्फीले चीतों के लिए जारी अपने 33 साल पुराने प्रजनन कार्यक्रम के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यह अब तक 56 बच्चों का जन्म हो चुका है।
हिमाचल के स्पीति वैली के अलावा पिन वैली नेशनल पार्क, किब्बर वाइल्डलाइफ सेंचुरी, द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और पांगी तथा भारमोर इलाकों (चम्बा) में काफी संख्या में बर्फीले चीते हैं।
वन्यजीव विभाग का मानना है कि स्पीति वैली में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में सात से आठ बर्फीले चीते हैं। विभाग इन चीतों की आदतों का स्वचलित कैमरों से निगरानी कर रहा है।
अब तक मिली जानकारी के मुताबिक स्पीति में 28 के करीब बर्फीले चीते हैं और राज्य में कुल 29 चीतों की पहचान हो सकी है। रेडियो कालरिंग के आधार पर इन चीतों पर नजर रखने का कार्यक्रम है।
रेडियो कॉलर काफी महंगे होते हैं। एक रेडियो कॉलर की कीमत तीन लाख रुपये है और यह 18 महीनो तक सिग्नल भेज सकता है। इससे भी अधिक महंगा रेडियो कॉलर से मिलने वाले संकतों को सुरक्षित करना है।
भारत में अंतर्राष्ट्रीय संस्था-स्नो लिपार्ड ट्रस्ट द्वारा प्रमाणित बर्फीले चीतों को बेहोश करने वाली दवा नहीं मिलती और दूसरी दवाइयों का उपयोग इनके लिए खतरनाक हो रहा है। ऐसे में बर्फीले चीतों पर नजर रखने की प्रक्रिया पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। ––आईएएनएस
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