राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चीन जनवादी गणराज्य की राजकीय यात्रा (24 मई से 27 मई 2016) के समापन पर वक्तव्य।
राष्ट्रपति द्वारा आज (27 मई 2016) बीजिंग से नई दिल्ली लौटते हुए विमान में दिये गए वक्तव्य का मूल पाठ :
मैंने अपनी चीन जनवादी गणराज्य की राजकीय यात्रा (24-27 मई 2016) पूरी कर ली है। मेरे शिष्ट मंडल में कपड़ा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री संतोष कुमार गंगवार, भारत के विभिन्न भागों और प्रमुख राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद के चार सदस्य-डॉ. भूषण लाल जांगड़े, श्री के सी वेणुगोपाल, श्री सुधीर गुप्ता तथा श्रीमती रंजनाबेन धनंजय भट्ट तथा राष्ट्रपति भवन और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। हमारे साथ कुलपतियों तथा उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों वाले 8 सदस्यों का शैक्षिक शिष्ट मंडल और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रतिनिधि भी आए।
अपने राजनैतिक जीवन के 3 दशक से अधिक के समय से मैं भारत-चीन संबंधों के विकास से जुड़ा रहा हूं। विभिन्न पदों पर रहते हुए अनेक बार मैंने चीन की यात्रा की है। लेकिन भारत गणराज्य के राष्ट्रपति के रूप में यह मेरी पहली यात्रा है। सितंबर 2014 में राष्ट्रपति महामहिम जी जिनपिंग की ऐतिहासिक यात्रा क बाद मेरी यह यात्रा हुई। राष्ट्रपति जी जिनपिंग की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान हमने घनिष्ठ विकास साझेदारी की।
मेरी यात्रा गोआंगडोंग प्रांत की राजधानी गोवांगझोउ से शुरू हुई। गोआंगडोंग प्रांत ने चीन के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और चीन के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 10 प्रतिशत है। गोवांगझोउ का चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से भारत से जुड़ा रहा है और अर्थव्यवस्था तथा भारत के साथ जन-जन के आदान-प्रदान में इसकी महत्वपर्ण भूमिका रही है। गोआंगडोंग प्रांत द्विपक्षीय व्यापार में 20 प्रतिशत का योगदान करता है और चीन में रह रहे भारतीय नागरिकों की 40 प्रतिशत आबादी यहीं रहती है। बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय भारत और चीन के बीच सेतु हैं।
ग्वांगझोउ में अपने प्रवास के दौरान मैं गोआंगडोंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रांतीय समिति के सचिव महामहिम श्री हू चुनहुआ, गोआंगडोंग प्रांत के गवर्नर महामहिम श्री झू जियाओडन तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संवर्धन के लिए चीन की परिषद के अध्यक्ष महामहिम श्री जियांग जेंगवी से मिला। चीन के नेताओं ने व्यापार को प्रोत्साहित करने और भारत के साथ जन-जन के संबंध को बढ़ावा देने में अपनी दिलचस्पी दिखाई। विशेषकर गुजरात राज्य से संबंध की दिलचस्पी। चीन के नेताओं ने भारत द्वारा शुरू किए गए विभिन्न विकास कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्राप्त की और व्यापार तथा निवेश बढ़ाने में नेतृत्व की भूमिका निभाने की दिलचस्पी जाहिर की। मैंने भारत-चीन बिजनेस फोरम को संबोधित किया। इसमें भारत और चीन के व्यावसायिक प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए। अपने संबोधन में मैंने दोनों पक्षों के कारोबारी क्षेत्रों से भारत और चीन में उपलब्ध अपार अवसरों का लाभ उठाने का आग्रह किया।
मैंने चीन के विभिन्न भागों तथा हांगकांग से आए भारतीय समुदाय के लोगों की बड़ी सभा को संबोधित किया। मैंने उनसे भारत के गैर आधिकारिक राजदूत के रूप में सेवा करने तथा हमारी विकास साझेदारी को मजबूत बनाने का आग्रह किया।
मैं हुआलिन मंदिर भी देखने गया। यह मंदिर छठी शताब्दी एडी में भारतीय बौद्ध भिक्षुओं के चीन आगमन का प्रतीक तथा दोनों देशों के बीच घनिष्ट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संपर्कों का साक्ष्य है।
बीजिंग में चीन जनवादी गणराज्य के राष्ट्रपति महामहिम श्री जी जिनपिंग, प्रधानमंत्री महामहिम श्री ली केकियांग, तथा नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के अध्यक्ष महामहिम श्री झांग देजियांग ने मित्रता और गर्मजोशी के साथ मेरी अगवानी की। विदेशी देशों के साथ मित्रता के लिए चीनी पीपुल्स एसोसिएशन द्वारा मेरे सम्मान में आयोजित स्वागत समारोह में चीन के उपराष्ट्रपति महामहिम श्री ली यूआनचाव शामिल हुए। इस समारोह में संस्कृति और शिक्षा क्षेत्र के प्रख्यात व्यक्ति शामिल हुए। मैंने ऐतिहासिक और प्रतिष्ठित पीकिंग विश्वविद्वालय में भी प्रमुख भाषण दिया और मैं कुलपतियों तथा दोनों देशों के उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों के बीच हुए गोलमेज सम्मेलन में भी शामिल हुआ। शैक्षिक आदान-प्रदान के महत्वपूर्ण क्षेत्र में यह अपने किस्म का पहला परस्पर संवाद था। मेरी उपस्थित में शिक्षक और विद्वार्थिंयों के आदान-प्रदान को बढ़ाने तथा शोध और नवाचार में सहयोग के लिए दस सहमति ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। मैंने पीकिंग विश्विद्वालय को संस्कृत की पुस्तकें सहित भारतीय संस्कृति और साहित्य पर 350 किताबें उपहार स्वरूप दिए।
चीनी नेताओं के साथ मेरी अनेक विषयों पर विस्तृत बातचीत हुई। चीनी नेताओं के साथ बातचीत मित्रता और सौहार्द पूर्ण माहौल में साफगोई के साथ हुई। परस्पर हित के विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। चीन के सभी चार नेताओं ने हाल की भारत यात्रा को याद करते हुए कहा कि इस राजकीय यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों के विकास को नई गति मिलेगी। आपसी समझदारी और राजनीतिक विश्वास बढ़ाने में उच्च स्तरीय यात्राओं की भूमिका को सराहा गया। हम दोनों देशों के बीच सदभाव का ठोस आधार बनाने की आवश्यकता पर सहमत हुए।
मैंने चीन के नेताओं से कहा कि भारत में भारत-चीन संबंध को मजबूत बनाने पर राष्ट्रीय सहमति है। भारत चीन के साथ अपने संबंधों को काफी महत्व देता है। विचारों में इस बात की समानता है कि दो महत्वपूर्ण शक्तियां भारत और चीन अनिश्चित वैश्विक स्थिति में एक साथ काम कर सकते हैं। वैसी वैश्विक स्थिति में जहां आर्थिक स्थिति कमजोर है, भौगोलिक राजनीतिक जोखिम बढ़ रहा है और पूरे विश्व को आतंकवाद का खतरा है। हम इस बात पर सहमत हुए कि हमारे संबंध द्विपक्षीय संबंधों से आगे भी होने चाहिए। हमने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घनिष्ट रूप से सहयोग करने के महत्व पर बल दिया। मैंने चीनी नेतृत्व से कहा कि भारत और चीन को न केवल दोनों देशों की जनता के हित में करना चाहिए बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए भी। संघाई सहयोग संगठन में भारत की सदस्यता के लिए चीन के समर्थन के प्रति हमने धन्यवाद दिया। चीन के नेताओं ने भारत की सदस्यता का स्वागत किया और कहा कि इससे संघाई सहयोग संगठन मजबूत होगा और क्षेत्रीय स्थिरता बढ़ेगी।
हम इस पर सहमत हैं कि पड़ोसियों के रूप में हमारे बीच समय-समय पर मतभेद होना स्वाभाविक है। हालांकि, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हमें अपने मतभेदों को दूर करते हुए अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने के प्रयास जारी रखने चाहिए।
चीनी नेतृत्व के साथ मेरी बातचीत में द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने पर प्रमुखता से चर्चा हुई। द्विपक्षीय व्यापार में बेहतर संतुलन लाने के लिए उनके द्वारा उठाए जा रहे कदमों से मुझे अवगत कराया गया, जिनमें भारत से कृषि और दवा उत्पादों का आयात बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करना भी शामिल है। मैंने कहा कि वैसे तो असंतुलन को खत्म करना जरूरी है, लेकिन हमें द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने का क्रम आगे भी जारी रखना चाहिए। मैंने भारत में विशेष रूप से हमारे प्रमुख कार्यक्रमों जैसे कि ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘कौशल भारत’, ‘स्मार्ट सिटी’,इत्यादि में चीनी निवेश और ज्यादा बढ़ाने का स्वागत किया। चीनी नेतृत्व ने हाल के दिनों में भारत में हुए आर्थिक विकास के साथ-साथ तेज विकास को बनाए रखने के लिए हमारे द्वारा किए जा रहे प्रयासों की काफी सराहना की। हमने आपस में व्यावहारिक सहयोग करने और रेलवे, औद्योगिक जोन, स्मार्ट सिटी, नवीकरणीय ऊर्जा, बिजली, अंतरिक्ष, विमानन, आदि जैसे क्षेत्रों में जल्द लाभ के लिए संभावित क्षेत्रों की पहचान करने पर सहमति जताई। चीनी पक्ष ने ई-वीजा की शुरुआत सहित वीजा सुविधा के लिए हमारे द्वारा अपनाए गए उपायों की सराहना की।
चीनी नेतृत्व ने सीमा विवाद का जल्द ही निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान निकालने संबंधी अपने संकल्प के बारे में जानकारी दी। मैंने चीनी नेतृत्व से इस बात पर सहमति जताई कि वैसे तो हमें सीमा विवाद का शीघ्र समाधान करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें सीमा प्रबंधन में बेहतरी लाने के साथ-साथ शांति सुनिश्चित करनी चाहिए और सीमावर्ती क्षेत्रों में सौहार्द बनाए रखना चाहिए।
आतंकवाद एक महत्वपूर्ण विषय है जिसका उल्लेख मैंने अपनी बैठकों में किया। मैंने चीनी नेतृत्व को बताया कि आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं वैश्विक चिंता का विषय है। भारत तकरीबन साढ़े तीन दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है। कोई अच्छा या बुरा आतंकवादी नहीं होता है। आतंकवाद न तो किसी विचारधारा और न ही भौगोलिक सीमाओं का सम्मान करता है। व्यापक विनाश ही इसका एकमात्र उद्देश्य है। इस वैश्विक खतरे से निपटने के लिए दुनिया के सभी देशों के बीच व्यापक सहयोग आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को निश्चित तौर पर मजबूत एवं कारगर कदम उठाने चाहिए। पड़ोसी देश होने के नाते भारत और चीन को मिलकर काम करना चाहिए। चीनी नेतृत्व ने इस बात पर सहमति जताई कि आतंकवाद समूची मानव जाति के लिए एक खतरा है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न मंचों पर आपस में सहयोग करने की इच्छा जाहिर की।
निष्कर्ष के तौर पर मेरी यात्रा के साथ-साथ चीन के नेताओं के साथ विचार-विमर्श सार्थक एवं उपयोगी रहा। चीनी नेताओं ने हमारे द्वारा अपनाए गए दूरगामी दृष्टिकोण के लिए आभार व्यक्त किया और इसके साथ ही चौतरफा आदान-प्रदान के साथ-साथ महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर उच्च राजनीतिक स्तर पर बातचीत को आगे भी जारी रखते हुए भारत-चीन रिश्ते को अगले मुकाम पर ले जाने की इच्छा जताई। अक्टूबर में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और इसी साल सितंबर में हैंगझोऊ में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन से उपर्युक्त मुद्दों पर अपनी बातचीत को आगे भी जारी रखने का अवसर मिलेगा। मैंने राष्ट्रपति जी जिनपिंग को भारत का द्विपक्षीय दौरा करने का आमंत्रण दिया, जिसे उन्होंने बड़ी शालीनता के साथ स्वीकार किया।
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हमारे द्विपक्षीय रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए चीन भी भारत की ही तरह काफी उत्सुक है, मैं इस दृढ़ विश्वास के साथ स्वदेश वापस आया हूं कि हमें 21वीं शताब्दी की इस निर्णायक भागीदारी को आपस में मिल-जुलकर निश्चित तौर पर नई गति प्रदान करनी चाहिए।
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