रायपुर, 12 फरवरी। छत्तीसगढ़ के नक्सल हिंसा पीड़ित दंतेवाड़ा जिले में बहुतायत में पाए जाने वाले छिंद के पेड़ों के रस को वहां के निवासियों की आर्थिक उन्नति का जरिया बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। राज्य सरकार के निर्देश पर दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने इसके लिए व्यापक कार्य योजना बनाई गई है। इस कार्ययोजना के अनुसार ग्रामीणों को छिंद के पेड़ों से सुरक्षित ढंग से रस निकालने और गुड़ बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। हाल ही में दंतेवाड़ा जिले के रोंजे गांव में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित जनसमस्या निवारण शिविर में ग्रामीणों को रस निकालने और गुड़ बनाने का जीवंत प्रशिक्षण दिया गया।
छिंद रस से स्वादिष्ट और पौष्टिक गुड़ बनता है। गुड़ का उपयोग मिठाईयां और खीर बनाने में किया जाता है। दंतेवाड़ा जिले के होटलों में कलाकंद बनाने के लिए भी छिंद गुड़ का इस्तेमाल होता है। कार्ययोजना के अनुसार दंतेवाड़ा जिले के ग्रामीणों को छिंद के पेडों पर सही तरीके से चीरा लगाकर रस निकालना सिखाया जाएगा। अभी ग्रामीण अपने पारंपरिक तरीके से छिंद के पेड़ों से रस निकालते हैं। इस तरीके के कारण छिंद के पेड़ों की जीवन अवधि कम हो जाती है। अनेक पेड़ों से एक ही सीजन में रस निकालने के बाद सूखने की घटनाएं भी सामने आई है। वैसे छिंद पेड़ की स्वाभाविक उम्र 12 से 15 वर्ष होती है।
दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने ग्रामीणों को इसके लिए प्रशिक्षण देने का काम भी शुरू कर दिया है। पिछले दिनों दंतेवाड़ा जिले के रोंजे गांव में आयोजित जनसमस्या निवारण शिविर में ग्रामीणों को छिंद के पेड़ों में सही तरीके से चीरा लगाकर रस निकालना सिखाया गया। लोगों ने बड़ी रूचि लेकर इसे सीखा। उम्मीद की जा रही है कि उनकी रूचि और प्रशिक्षण उनके जीवन में बड़ा आर्थिक बदलाव लाएगा। छिंद गुड़ का बाजार भाव 200 रुपए किलो से भी अधिक है।
एक छिंद के पेड़ से हर दिन आधा किलो रस निकालकर गुड़ बनाया जा सकता है। रस निकालने का काम ठंड के मौसम में नवम्बर माह से शुरू होकर फरवरी तक चलता है। अगर ग्रामीण हर महीने 100 पेड़ से भी छिंद रस निकालते हैं तो उन्हें एक लाख रुपए की मासिक आमदनी हो सकती है। सीजन के दौरान रात को छिंद के पेड़ों में चीरा लगाकर बर्तन लटका दिया जाता है। सुबह बर्तन में इकट्ठा रस को निकालकर गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर छिंद गुड़ काफी उपयोगी होता है। दंतेवाड़ा जिले में अनेक गांवों में छिंद के सैकड़ों पेड़ हैं। इन पेड़ों को ग्रामीणों की आर्थिक उन्नति के महत्वपूर्ण अवसर के रूप में बदलने जिला प्रशासन ने छिंद रस से गुड़ निकालने का व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ किया है। रोंजे शिविर में विशेष रूप से छिंद रस से गुड़ बनाये जाने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया गया। लोग रुचि से मास्टर ट्रेनर से इस संबंध में जानकारी लेते रहे।
मास्टर ट्रेनर ने लोगों को बताया कि जगदलपुर में छिंद गुड़ का बड़ा बाजार है और यहां से पूरे देश में इसकी आपूर्ति होती है। सही तरीके से चीरा लगाया जाए तो छिंद के पेड़ कई बरस तक जीवित रहते हैं। छिंद रस से गुड़ निकालने की प्रक्रिया में किसी तरह का कोई निवेश नहीं है और न ही इसके लिए ज्यादा समय ग्रामीणों को लगाना पड़ता है।
Follow @JansamacharNews